डा. आलोक सक्सेना
कोरोनाकाल में अपनी छत पर अकेले बैठे-बैठे आकाश में सर्र… सर्र… उड़ते फाइटर विमानों को देख-देख और खुद कुछ कामकाज न कर पाने के कारण सठियाने के अलावा हमारे दद्दा के पास कोई दूसरा काम न था। लो कोरोना की लहर गई और होली आ गई। दद्दा सठियाए जरूर थे मगर उकताए नहीं थे। मैं कभी-कभी अपने ताऊ का ताऊ तो जरूर बन जाता था मगर दद्दा के सामने दद्दा कभी नहीं बन पाया।
होली आते ही दद्दा के ख्वाब सातवें आसमान पर और मन ताड़ की तरह तगड़ा हो जाता था। आसमान से गिरे खजूर पर अटकने की आदत भी नहीं थी उनकी। उनका तजुर्बा इतना था कि वह अपने बच्चों को कुछ न बना सके मगर दूसरों के बच्चों की लगाम उनके अभिभावकों से अपने सख्त हाथ में लेकर उन्हें बात-बात पर खदेड़ते रहते। ताने मारते रहते। बिना एम.ए. किए भांग पर पी-एच.डी. भए राम भरोसे लाल जी भी पहुंचे। वह ठंडाई कम भांग के गोले के अधिक शौकीन थे।
दद्दा ने उन्हें भांग के स्पेशल दो गोले दिए। तो वह बोले, ‘अरे, दद्दा, दो से मेरा क्या होगा। दो साल से अब तक सिर्फ तरस ही रहा हूं। वो तो भला हो आपका कि आपने काउंटर लगा लिया। कम से कम छह-सात गोले तो दीजिए। वर्ना रहने दीजिए…।’ दद्दा ने भी राम भरोसे लाल जी की आव देख अपनी ताव को संभाला और भांग के गोले के भावी रहस्य की आव देखी न ताव बस रामभरोसे रहकर झट से झटक कर पकड़ा दिए पूरे चार गोले राम भरोसे लाल जी को। गोले देते हुए उन्होंने अपने निर्देश की गोली भी यह कह कर साथ में दे डाली, ‘प्यारे राम भरोसे लाल, इन्हें एक साथ मत खा लेना। दो आज और दो कल खाना।’ लेकिन राम भरोसे लाल जी ने उनकी एक न सुनी। एक साथ चारों खा लिए। थोड़ी ही देर बाद वह आकाश में गुजरते सुखोई फाइटरों को देख-देखकर जोर-जोर से हंसने लगे और अपनी आंखें फाड़-फाड़कर चिल्लाए भी जा रहे, ‘होली है भई होली है…दद्दा की भंग में रंग-तरंग की बोली है, गोली है, ठिठोली है और हमजोली है।’
इस बीच अचानक जमीन पर किसी की जबरदस्त राक्षसी हंसी हंसने और चिल्लाते हुए बकने-बकाने की आवाज को सुनकर जांबाजी से ऊपर उड़ रहे फाइटर नेविगेटर योद्धा साहब ने मामला समझा तो उन्होंने इस होली पर अपने बड़े अधिकारियों की आंख में धूल झोंककर अपने सुखोई फाइटर में लगाई हुई गुप्त स्पेशल सेनिटाइजर भरी पिचकारी को खोला और दूसरी तरफ बड़ी सी ‘बंगी बास्केट’ की मदद से ढेर सारा पानी उड़ेल दिया। इससे जबरदस्त भीगकर राम भरोसे लाल जी जमीन पर बार-बार फिसले जरूर, लेकिन काफी देर तक सुखोई फाइटर पिचकारी से नहाने के बाद उनकी भांग ठंडी हो गई।
जैसे-तैसे राम भरोसे लाल जी भांग के नशे से रंग में भंग करते हुए बचे तो दद्दा की भी जान में जान वापस आई। उन्होंने तुरंत अपना काउंटर बंद करना चाहा तो ऊपर से सुखोई फाइटर योद्धा ने एक बार फिर से अपनी ‘बंगी बास्केट’ नीचे लटका दी। इस बार वो एकदम खाली थी। तेज आवाज में उसने कहा, ‘अरे, दद्दा राम-राम। जितना कुछ भी बचा हो सब मेरी ‘बंगी बास्केट’ में डाल दीजिए। एयरफोर्स स्टेशन पर मेरे साथी पायलट आपकी मशहूर ठंडाई का इंतजार कर रहे हैं। मेरी और उनकी तरफ से आपको और हमारे समस्त देशवासियों को होली बहुत-बहुत मुबारक हो।’ (साभार)
Author: samachar
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