दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
पीएम नरेंद्र मोदी और एनडीए के नेता तीसरी बार सत्ता में वापसी के बारे में पूरी तरह आश्वस्त नजर आते हैं। उनके इतने आश्वस्त होने का राज क्या है? पीएम मोदी जब बिहार आते हैं तो कहते हैं- ‘नौकरी के बदले जमीन लेने वाले बख्शे नहीं जाएंगे। उनका जेल जाना पक्का है।’
उनका इशारा लालू यादव के परिवार की ओर होता है। वे 400 पार के अपने नारे पर अब भी अडिग हैं। वे पिछड़ों-दलितों के आरक्षण में किसी भी तरह की कटौती से भी इनकार करते हैं। वे इसमें कटौती कर मुस्लिमों को आरक्षण देने की विपक्ष की तैयारी का भी ‘राजफाश’ करते हैं।
पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) को मोदी मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भारत का हिस्सा बताते हुए हर हाल में उसे भारत के साथ लाने की बात करते हैं। इससे एक बात तो समझ में आती ही है कि मोदी हैट्रिक लगाने के प्रति आश्वस्त हैं।
BJP की तो कार्यशैली ही ऐसी रही है
मोदी की इस आश्वस्ति को समझने के लिए भाजपा की कार्यशैली को समझना पड़ेगा। भाजपा किसी चुनाव के आने का इंतजार नहीं करती। उसकी चुनावी तैयारी पूरे साल चलती रहती है। भाजपा चुनाव जीतने की दीर्घकालिक रणनीति बनाती है।
2014 में केंद्र की सत्ता में आने से पहले ही भाजपा ने तय कर लिया था कि उसे 2019 का चुनाव जीतने के लिए क्या-क्या करना है। तीन तलाक खत्म करना, जम्मू कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति और अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का स्केच भाजपा ने उसी वक्त बना लिया था।
पिछले दो आम चुनावों में भाजपा अगर लगातार सशक्त होती रही तो इसके पीछे यही मुद्दे थे। दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार ने सीएए, संसद और विधानमंडलों में महिलाओं के आरक्षण के अलावा राम मंदिर का संकल्प पूरा कर लिया है। भाजपा ने हिन्दुत्व के अपने बुनियादी सिद्धांत को तो सफलता का सोपान ही मान लिया है।
2014 और 2019 तो 2024 क्यों नहीं!
सवाल उठता है कि जिन मुद्दों पर 2014 में लोगों ने नरेंद्र मोदी को वोट दिया था, वे 2019 तक मोदी के कामों में कोई खोट नहीं खोज पाए। उल्टे मोदी काम उन्हें इतने भाए कि 2019 में उन्हें और ताकतवर बना दिया।
फिर 2024 में शंका की गुंजाइश कहां बचती है। मोदी न मुद्दों से भटके दिख रहे हैं और न उन्होंने भाजपा के बुनियादी सिद्धांतों से भटकने का कोई संकेत ही दिया है, जिससे खफा होकर उनके समर्थक उनकी सीटें घटाएंगे। 2014 में लोगों को मोदी का हिन्दुत्व वाला चेहरा दिखा था।
राम मंदिर का भाजपा का संकल्प लोगों को पहले से पता था। लोगों ने गुजरात का सीएम रहते मोदी की बेदाग छवि देखी। मोदी अगर आज भी उस पर कायम हैं, लोगों के निराश होने का कोई कारण नजर नहीं आता।
विपक्ष को 1977 रिपीट होने की उम्मीद
विपक्ष ने गोलबंदी की। इंडी अलायंस बनाया। गठबंधन के बावजूद विपक्ष में खटपट बनी रही। क्षेत्रीय क्षत्रप कांग्रेस को अपने इशारों पर नचाते रहे। बिहार में लालू यादव की चली तो बंगाल मे ममता बनर्जी की। ममता इंडी अलायंस में रह कर भी कांग्रेस को ललकारती-दुत्कारती रही हैं।
यूपी में अखिलेश यादव साथ तो हैं, पर सीटों के बंटवारे तक जो खिटपिट हुई, उससे इंडी गठबंधन की छीछालेदर ही हुई। विपक्ष ने एकजुट होने का इस उम्मीद में प्रयास किया कि 1977 की पुनरावृत्ति हो जाएगी। पर, विपक्षी गठबंधन की अंत अंत तक किचकिच से जनता मन बदलने के बजाय भ्रमित होने लगी।
ऐसे में मोदी का परखा चेहरा लोगों के सामने है। विपक्ष अब भी 1977 की तरह बाद में चेहरा तय करने के मंसूबे बांधे हुए है। बड़े ही साफ मन से 1977 में बनी सरकार का हश्र भी लोगों ने देखा है। शायद यही वजह है कि मोदी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त दिखाई देते हैं।
कमोबेश सभी दे रहे मोदी को बहुमत
लोकसभा चुनाव के सात चरणों में से छह का मतदान खत्म हो चुका है। आखिरी चरण का मतदान एक जून को होगा। चार जून को नतीजे का ऐलान भी हो जाएगा। तब यह भी साफ हो जाएगा कि जीत के प्रति मोदी का आत्मविश्वास सही था या विपक्ष का अनुमान।
विपक्ष में कांग्रेस के सीनियर लीडर जयराम रमेश का दावा है कि छठे चरण में ही विपक्षी गठबंधन बहुमत के 272 के आंकड़े को पार कर चुका है। सातवें चरण में विपक्ष को मिलने वाली सीटें बहुमत के अतिरिक्त होंगी।
हालांकि चुनावी विशेषज्ञ भी एनडीए की सीटें घटने का अनुमान तो लगा रहे, लेकिन विपक्ष को बहुमत से दूर बता रहे हैं। सटीक जानकारी तो चार जून को ही मिलेगी कि किसके दावे में कितना दम है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."