सुरेंद्र मिन्हास की रिपोर्ट
बिलासपुर । भारतवर्ष ऋषि मुनियों की तपोभूमि है समय समय पर जनमानस के कष्ट दूर करने के लिए ऋषि मुनियों साधुसतों महात्मात्माओं ने जन्म लेकर इस धरती को पवित्र किया है इसीलिए भारतवर्ष को पुण्यभूमि कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश भी वीरभूमि के साथ साथ देवभूमि भी कहलाती है। सारा इतिहास इससे भरा पड़ा है जिसकी विवेचना संक्षिप्त शब्दों में सम्भव नहीं है। यदि हम बिलासपुर की बात करें तो बिलासपुर भी तपोभूमि है, बिलासपुर व्यास जी की कर्मभूमि है जिनके नाम पर यह स्थान व्यासपुर था जो बाद में बिलासपुर हो गया, अभी भी विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ बार बार इसका नामकरण व्यासपुर करने के लिए प्रयासरत हैं परन्तु अभी तक कुछ हो नहीं सका है जिसकी टीस लोगों के मन में है।
व्यास जी ने सतलुज नदी के तट पर व्यासगुफा में वेद पुराण उपनिषद इत्यादि की रचना की तथा तपस्या की। मार्कण्डेय में ऋषि मारकंडे ने घोर तप करके अमृत्त्व प्राप्त किया बाबा बंगाली बाबा बसदी अनेकों महान संतों ने अपने चमत्कारों से इस भूमि को पवित्र किया है।
व्यासपुर के जनमानस में अत्यधिक लोकप्रिय और जन जन के मन में बसे काला बाबा को कौन नहीं जानता। वृन्दावन से यात्रा करते हुए जब बाबा जी व्यासपुर आए तो यहीं के होकर रहा गए व्यासधरा को ही अपनी कर्मभूमि बना लिया।
बाबा कल्याणदास जी को काला बाबा इस लिए कहा जाता था कि उनकी देह श्यामवर्ण धारण किए थी गंभीर मुद्रा चाल ढाल झूठे आडमबरों से दूर लम्बी काया वस्त्र के नाम पर केवल श्वेत धोती खड़ाँव पहने जब बाबा शहर का चक्कर लगाते तो हज़ारों भक्तों में पाँव छूकर आशीर्वाद लेने की होड़ लग जाती। बाबा जी भी सबको खुलेमन से आशीर्वाद देने में कोई कमी नहीं रखते। बच्चोँ को बड़ा प्यार करते व महिलाओं को मईया कहकर पुकारते।
लाला जमुनादास संख्यान, मास्टर रामदास ठाकुर, रामलाल ठाकुर, संजीव कुमार पप्पा, सुरेन्द्र मिन्हास, स्वतन्त्रता सेनानी एवं कवि कन्हैया लाल दबड़ा, रोशल लाल शर्मा, कमलेन्द्र कश्यप और न जाने कितने ही भक्तों ने उनके सानिध्य में रहकर अपना जीवन निहाल किया।
व्यासपुर शहर में ही बाबा जी की कुटिया है जो काला बाबा की कुटिया के रूप में मशहूर है जहां पर गुफ़ा भी है जो आगे चलकर संकरी होती जाती है, लेखक को भी उनके दिव्य दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है तथा जीवन धन्य हुआ है।
बाबा जी के चमत्कारों की बात करें तो इसकी कोई सीमा नहीं है बाबाजी ने जीवन भर अनाज ग्रहण नहीं किया किन्तु उन्हें माँ अन्नपूर्णा की असीम कृपा प्राप्त थी भंडारे का आयोजन कुटिया में करते जिसमें मालपुए बनते जमनादाससंख्यान सुखदेव संख्यान व अन्य लोगों को कहते भंडारा करना है तो आयोजन सफल बनाने के लिए लोगों की भीड़ लग जाती बाबाजी भंडारे में तुलसी के बीज डालते और अटूट भंडारा चलता रहता इसमें कभी भी कमी नहीं आई।
मैंने भी बाबाजी को अपने विवाह का निमंत्रण दिया पहले बोले अरे मैं क्या करूंगा वहाँ आकर गुस्से में बोले में निराश हुआ फिर पुचकार के बोले ज़रूर आऊंगा धाम में आए बल्टोहियों में तुलसी के बीज डाले। कहा भोग लगाओ यह अटूट धाम निरंतर रात्रि एक बजे तक चलती रही। ये उनकी ही कृपा का चमत्कार है।
राधेश्याम हमेशा ही कहते अनगिनत मंदिर राधेकृष्ण के मंदिर बनवाए व सरायों का निर्माण करवाया हरिद्वार में भी सराय बनवाई जिसका जनता को भरपूर लाभ मिला। जो धन मिलता निर्माण कार्य में लगा देते धन को कभी हाथ तक नहीं लगाया लोग पोटली में अपनी श्रद्धानुसार डाल देते ऐसे थे हमारे बाबाजी।
सोलग में भी बाबाजी का आश्रम है जो आस्था का केंद्र है जहा शुद्ध जल की अविरल धारा बहती है इस पवित्र स्थान पर पहुंचकर असीम आनंद की अनुभूति होती है।
बाबाजी के जीवन पर बिलासपुर लेखक संघ ने एक पुस्तक भी लिखी है जो बड़ी लोकप्रिय हुई है इस पुस्तक को लिखने में लेखकों ने कड़ा परिश्रम किया है कन्हैया लाल दबड़ा, नरैणु राम हितेशी, रोशनलाल शर्मा, सुरेन्द्र मिन्हास की अत्यंत भूमिका रही है। जिसके लिए इनकी सभी महानुभावों की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
25 अप्रेल को 2005 को बाबाजी अपनी सांसारिक यात्रा पूर्ण करके गोलोक प्रस्थान कर गए हज़ारों लोगों ने ऐतिहासिक लुहणु में अपनी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित की इतना जनसैलाब कहाँ से आया किसी अचम्भे से कम नहीं था आसमान में एकाएक काले बादल आए घनघोर घटाएं छा गईं वर्षा होने लगी मानो स्वर्ग से समस्त देवता उनका स्वागत कर रहे थे थोड़ी ही देर बाद बादल छट गए मौसम साफ हो गया बाबाजी जी गए नहीं हमारे बीच ही हैं उनकी असीम कृपा समस्त भक्तों पर बनी रहे। ऐसे हैं काला बाबाजी जो जन जन के मन में बसते हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."