आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी के सामने कई चुनौतियां हैं। कांग्रेस के साथ गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ रही सपा यूपी की 62 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। एक तरफ जहां सपा की गाड़ी बसपा छोड़कर पार्टी में आए दलबदलुओं के सहारे है, वहीं दूसरी ओर भाजपा भी सपा का गढ़ माने जाने वाले कई क्षेत्रों में उसे कड़ी चुनौती दे रही है।
सपा के 57 में से 14 उम्मीदवार पुराने बसपाई
यूपी में सपा ने अब तक 57 उम्मीदवारों की घोषणा की है। उनमें से 14 बहुजन समाज पार्टी से सपा में आए हुए हैं। बसपा से सपा में आए इन नेताओं में से अधिकांश गैर-यादव अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदायों से हैं, जिनके बीच सपा अपनी उपस्थिति दर्ज करने की कोशिश कर रही है।
दलबदलू नेता जिन्हें सपा ने दिया टिकट
बाबू सिंह कुशवाहा– सपा ने इन्हें जौनपुर लोकसभा सीट से उतारा है। उन्होंने 2007 से 2012 तक मायावती कैबिनेट में मंत्री के रूप में कार्य किया था। 2011 में, उन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) घोटाले में संलिप्तता के कारण पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। ओबीसी समुदाय से आने वाले कुशवाहा एक साल बाद भाजपा में शामिल हो गए लेकिन उन्हें वहां भी पार्टी से निकाल दिया गया। 2016 में उन्होंने जन अधिकार पार्टी बनाई। बाबू सिंह की JAP ने 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM और अन्य छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन में 40 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक भी सीट जीतने में असफल रही।
बाबू सिंह कुशवाहा इस बार सपा के साथ गठबंधन में हैं और उसके चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ रहे हैं।
लालजी वर्मा– समाजवादी पार्टी ने लालजी को अंबेडकर नगर से टिकट दिया है। वह बसपा के बड़े नेताओं में गिने जाते थे लेकिन 2021 में पंचायत चुनाव के दौरान पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए लालजी को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। कुर्मी ओबीसी समुदाय से आने वाले लालजी वर्मा नवंबर 2021 में सपा में शामिल हुए थे। उन्होंने 2022 में कटेहरी विधानसभा सीट सपा के चुनाव चिन्ह पर जीती थी।
नारायण दास अहिरवार– सपा ने इन्हें जालौन से चुनाव मैदान में उतारा है। कांशीराम के करीबी रहे नारायण दास बसपा के संस्थापक सदस्यों में से थे। 2007 में मायावती के मंत्रिमंडल के सदस्य रहे नारायण दास को 2010 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। वह 2022 में सपा में शामिल हो गए।
आर के चौधरी– यह सपा के टिकट पर मोहनलालगंज से चुनाव मैदान में हैं। बसपा के संस्थापकों में से एक रहे और कांशीराम के विश्वासपात्र आर के चौधरी चार बार के विधायक हैं। 1993 से 1995 तक वह मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सपा-बसपा सरकार में मंत्री थे। पासी (एससी) समुदाय से आने वाले चौधरी ने 2001 में बसपा छोड़ दी और राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी बनाई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वह बसपा में लौट आए और मोहनलालगंज से चुनाव लड़ा लेकिन भाजपा के कौशल किशोर से हार गए। 2017 में आर के चौधरी सपा में शामिल हो गए थे।
राजा राम पाल– यह अकबरपुर से चुनाव मैदान में हैं। राजा राम 2004 में बिहौर से बसपा सांसद चुने गए लेकिन एक साल बाद पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए। पाल (ओबीसी) समुदाय से आने वाले राजा राम ने 2009 का लोकसभा चुनाव अकबरपुर से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीता था। उन्होंने 2014 और 2019 में भी इस सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन जीत का स्वाद नहीं चख सके। राजा राम पाल 2021 में सपा में शामिल हो गए थे।
रमेश गौतम– सपा ने इन्हें बहराइच लोकसभा सीट से मैदान में उतारा है। पासी (एससी) समुदाय से आने वाले गौतम 1989 में बसपा में शामिल हुए थे। उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनावों में मनकापुर से चुनाव लड़ा था पर जीत नहीं सके थे। रमेश गौतम 2020 में सपा में शामिल हुए थे।
राम शिरोमणि वर्मा– सपा ने इन्हें श्रावस्ती से टिकट दिया है। कुर्मी समुदाय से आने वाले राम शिरोमणि यहां से मौजूदा सांसद हैं और हाल ही में सपा में शामिल हुए हैं। 2019 में जब सपा और बसपा गठबंधन में थे तो राम शिरोमणि वर्मा ने बीएसपी उम्मीदवार के रूप में यह सीट जीती थी।
भीमा शंकर ‘कुशल’– सपा के टिकट पर डोमरियागंज से भीमा शंकर मैदान में हैं। ब्राह्मण समुदाय से आने वाले भीमा शंकर ने अपना करियर भाजपा के साथ शुरू किया था। बसपा उम्मीदवार के रूप में उन्होंने 2008 के उपचुनाव में और फिर 2009 में संत कबीर नगर लोकसभा सीट जीती लेकिन 2014 और 2019 में वह भाजपा के जगदंबिका पाल से हार गए। भीमा शंकर 2021 में सपा में शामिल हुए थे।
राम प्रसाद चौधरी– यह बस्ती से चुनाव मैदान में हैं। कप्तानगंज से पांच बार विधायक और 1997 में मायावती सरकार में मंत्री रहे राम प्रसाद चौधरी पहली बार 1989 में जनता दल के टिकट पर सांसद चुने गए थे। वह कुर्मी समुदाय से हैं और 2019 का लोकसभा चुनाव बसपा के टिकट पर हार गए थे। बसपा ने उन्हें 2019 में निष्कासित कर दिया था जिसके बाद वह 2020 में सपा में शामिल हो गए।
रमा शंकर राजभर– यह सपा के टिकट पर सलेमपुर से चुनाव मैदान में हैं। 2009 में रमा शंकर राजभर बसपा के टिकट पर सलेमपुर से सांसद चुने गए थे। ओबीसी राजभर समुदाय से आने वाले रमा शंकर को 2014 में टिकट नहीं दिया गया और पार्टी से निकाल दिया गया था। 2017 में वह सपा में शामिल हुए।
अफजाल अंसारी– वह गाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। अफजाल अंसारी पहली बार 2004 में सपा उम्मीदवार के रूप में गाजीपुर से सांसद चुने गए थे। पांच साल बाद उन्होंने बसपा उम्मीदवार के तौर पर इस सीट से चुनाव लड़ा और हार गए। 2019 में वह बसपा के टिकट पर गाजीपुर सीट से सांसद चुने गए। माफिया-डॉन मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल सीपीआई के टिकट पर चार बार विधायक चुने जा चुके हैं। फरवरी 2024 में वह बसपा छोड़कर सपा में शामिल हो गए।
सुनीता वर्मा– सपा के टिकट पर वह मेरठ से चुनावी मैदान में हैं। बसपा ने नवंबर 2019 में सुनीता वर्मा को निष्कासित कर दिया था जिसके बाद वह जनवरी 2021 में सपा में शामिल हो गईं। सुनीता एससी जाटव समुदाय से हैं।
अमरनाथ मौर्य– वह फूलपुर से चुनाव मैदान में हैं। अमरनाथ 1990 के दशक से एक सक्रिय बसपा नेता थे और उन्होंने 2002 में डॉन से नेता बने अतीक अहमद के खिलाफ इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे। अमरनाथ मौर्य ओबीसी समुदाय से हैं। 2016 में वह बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए और 2022 में सपा में चले गए।
नीरज मौर्य– सपा के टिकट पर नीरज आंवला लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं। वह जलालाबाद से दो बार के विधायक (बसपा के टिकट पर) रह चुके हैं। 2017 में नीरज मौर्य बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। 2022 में वह सपा में चले गये।
मायावती की चाल से सपा-कांग्रेस को नुकसान
लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा उत्तर प्रदेश में बीजेपी और इंडिया गठबंधन का राजनीतिक गणित फेल करने की कोशिश कर रही है। मायावती ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में सात सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। ये सीटें- अमरोहा, मुरादाबाद, संभल, सहारनपुर, रामपुर, आंवला और पीलीभीत हैं। इन सीटों पर बसपा के उम्मीदवार इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों के वोट में सेंध लगाएंगे जिसका गठबंधन को नुकसान होगा और इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."