राकेश सूद की रिपोर्ट
पहाड़ों में गरमी बढ़ रही है, लेकिन सियासी दुनिया में लू चल रही है। महज 16 महीने पहले बनी कांग्रेस सरकार दो मोर्चों पर लड़ रही है। पहले, जोड़तोड़ से कराई गई पार्टी में बगावत, दूसरे, लोकसभा चुनाव की चुनौती है। जिसमें हारना या कमतर प्रदर्शन उत्तर के इस एकमात्र राज्य में पार्टी के लिए संकट की स्थिति होगी।
उधर जीत की हैट्रिक लगाने के लिए भाजपा हर तरह की तिकड़म भिड़ा रही है। हिमाचल प्रदेश में सिर्फ चार लोकसभा सीटें शिमला, हमीरपुर, कांगड़ा और मंडी हैं। लेकिन इन चुनावों में ये अहम हो उठी हैं क्योंकि राज्य में लोकसभा के साथ छह विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव भी हो रहा है।
इससे न केवल कांग्रेस सरकार का भविष्य दांव पर है, बल्कि अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। सुखविंदर सिंह सुक्खू का नेतृत्व तो यकीनन खतरे में है ही। पहली बार मुख्यमंत्री बने सुक्खू, अपनी संगठनात्मक पृष्ठभूमि के बूते इस पद तक पहुंचे हैं। उन्हें राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा का करीबी माना जाता है। लेकिन उन्हें विधायकों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है।
यह चुनाव सुक्खू के लिए अग्निपरीक्षा है। यदि कांग्रेस को कोई लोकसभा सीट नहीं मिली, तो उनके नेतृत्व पर सवाल उठेंगे। अगर बदकिस्मती से पार्टी उपचुनाव में छह विधानसभा सीट हार जाती है, तो सरकार गिरना तय है।
भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का दावा है कि कांग्रेस सरकार वेंटिलेटर पर है। चुनाव खत्म होते ही सुक्खू के भविष्य पर सवाल उठेंगे। वे कहते हैं, “4 जून को चुनाव परिणाम घोषित होंगे, तो दो सरकारें बनेंगी। एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर पर और दूसरी भाजपा के तहत हिमाचल प्रदेश में।”
छह विधानसभा सीटों पर उपचुनाव बागी कांग्रेस विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने से हो रहे हैं। इन विधायकों ने प्रदेश में राज्यसभा की इकलौती सीट के लिए चुनाव ने भाजपा उम्मीदवार हर्ष महाजन को वोट दिया था, जो 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे।
कांग्रेस का समर्थन कर रहे तीन निर्दलीय विधायकों ने भी भाजपा को वोट दे दिया। इससे कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी हार गए, जबकि 68 सदस्यीय सदन में कांग्रेस के 40 और भाजपा के 25 विधायक थे। बागी विधायकों ने बाद राज्य के बजट को पारित करने के दौरान भी विधानसभा में पार्टी व्हिप की अवहेलना की। स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया ने इसी आधार पर उन्हें अयोग्य ठहराया।
बागियों में धर्मशाला से सुधीर शर्मा, लाहौल और स्पीति से रवि ठाकुर, सुजानपुर से राजिंदर राणा, बड़सर से इंदर दत्त लखनपाल, गगरेट से चैतन्य शर्मा और कुटलेहर से दविंदर कुमार भुट्टो शामिल थे। शर्मा और भुट्टो दोनों पहली बार विधायक बने हैं। सभी छह विधायकों को सीआरपीएफ की सुरक्षा में राज्य से बाहर ले जाया गया था। अब दोनों भाजपा में शामिल हो चुके हैं और दोनों को उपचुनाव के लिए पार्टी का टिकट भी मिल गया है।
तीन निर्दलीय विधायकों ने भी विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है और विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया पर अपना इस्तीफा स्वीकार करने का दबाव बना रहे हैं। जाहिर है, उन्हें भी उपचुनाव लड़ने के लिए भाजपा के टिकट का आश्वासन है। वे अपने इस्तीफे स्वीकार करने की मांग को लेकर राज्यपाल शिवप्रताप शुक्ला से भी मिल चुके हैं।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू कहते हैं, “भाजपा ने सरकार गिराने के लिए साजिश रची। बागी विधायकों ने विश्वासघात किया है। जिन लोगों ने उन्हें कांग्रेस के टिकट पर चुना, वे ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। भाजपा 2022 में वोट से सत्ता में नहीं लौट सकी, तो उसने नोट से अपनी सरकार बनाने का असफल प्रयास किया।’’
राजनैतिक उथल-पुथल और अनिश्चिय से सरकार चुनाव के लिए राजनैतिक नैरेटिव भी तैयार नहीं कर पा रही है। सत्तारूढ़ दल के भीतर व्याप्त अराजक स्थितियां आगामी चुनावों में उसकी संभावनाओं पर भारी पड़ सकती हैं, जिससे भाजपा को फायदा हो सकता है। हिमाचल प्रदेश की मूल भावना और पूंजी राजनैतिक नैतिकता रही है। लेकिन महत्वाकांक्षी बागी विधायकों और भाजपा ने माहौल ऐसा कर दिया है, जैसा कुछ साल पहले मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में जनादेश वाली सरकारों को पलटने के खेल में दिखा।
इस बीच सुक्खू को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार को अस्थिर करने की भाजपा की उतावली के साथ-साथ पार्टी विधायकों के गुस्से और झुंझलाहट ने आंतरिक गुटबाजी को उजागर कर दिया है। हालांकि पार्टी आलाकमान से शिमला भेजी गई केंद्रीय पर्यवेक्षकों की टीम ने इस पर अस्थायी रूप से परदा डाल दिया है, लेकिन पार्टी और सरकार अभी इससे उबर नहीं पाई है।
जानकार कांग्रेस में चल रही उथल-पुथल को आंतरिक सत्ता संघर्ष और महत्वाकांक्षाओं का टकराव मान रहे हैं। हालांकि राज्य कांग्रेस में बगावती सुर पहली बार नहीं उठे हैं, लेकिन इस बार सारी हदें पार होती दिख रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को भी सरकार और पार्टी में असंतोष का सामना करना पड़ा था। लेकिन उन्होंने अपने कद और राजनैतिक चतुराई से उस पर काबू पा लिया।
वीरभद्र सिंह के निधन के बाद सुक्खू का मुख्यमंत्री पद तक पहुंचना एनएसयूआइ के अध्यक्ष, राज्य युवा कांग्रेस और बाद में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनके संगठनात्मक कौशल के कारण संभव हुआ है। 2013-2019 के बीच बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनके वीरभद्र सिंह से रिश्ते असहज ही रहे, लेकिन मुख्यमंत्री रहते वीरभद्र की उन्हें पद से हटाने की कोशिश नाकाम रहीं
वर्तमान संकट की एक वजह सुक्खू की अपनी ताकत मजबूत करने की कोशिश बताई जा रही है। इससे कई कांग्रेसी विधायक नाराज हो उठे हैं। उन्हें दरकिनार करने और कुछ के मुताबिक उन्हें अपमानित करने की कोशिश भी हुईं। इनमें कुछेक ऐसे भी विधायक बताए जाते हैं, जो सुक्खू के मुख्यमंत्री के रूप में चयन में योगदान दे चुके हैं। इस पद के दो अन्य दावेदारों-प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह और उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के मुकाबले पार्टी के कुल 40 में से 21 विधायकों के समर्थन से सुक्खू को यह पद मिला था। इसमें प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी के साथ उनकी निकटता भी काम आई।
अब सवाल पार्टी को चुनाव में जीत दिलाने का है जो आसान तो नहीं ही लग रहा है। भाजपा सभी चार लोकसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा और विधानसभा उपचुनाव में सभी छह बागियों को टिकट देकर बढ़त ले चुकी है।
भाजपा ने मंडी लोकसभा सीट पर चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत को उतारकर चुनावी माहौल को गरमा दिया है। वे फैशन, क्वीन, गैंगस्टर और मणिकर्णिका जैसी फिल्मों में अपने काम के लिए चर्चित हैं। वे मंडी जिले के ही भांबला गांव की रहने वाली हैं। तेजतर्रार तथा अपने बयानों से विवादों में रहने वाली अभिनेत्री खुलकर प्रचार अभियान में उतर चुकी हैं और ज्यादातर स्थानीय बोली मंडयाली में बोलती हैं। वे खुद को हिमाचल प्रदेश में बेटी और बहन के रूप में पेश कर रही हैं।
मौजूदा कांग्रेस सांसद प्रतिभा सिंह भौगोलिक दायरे के मामले में देश के सबसे बड़े निर्वाचन क्षेत्रों में एक मंडी में उनके खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। मंडी संसदीय क्षेत्र छह जिलों में फैला हुआ है और काफी दुर्गम भी है। कांग्रेस ने इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक अन्य तीन निर्वाचन क्षेत्रों- शिमला, हमीरपुर और कांगड़ा के साथ छह विधानसभा क्षेत्रों में अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
भाजपा ने केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को पांचवीं बार हमीरपुर से, दो बार के सांसद सुरेश कश्यप को शिमला से और राजीव भारद्वाज को कांगड़ा से मैदान में उतारा है।
भाजपा 2014 और 2019 में मोदी लहर के बूते सभी चार सीटें जीत गई थी। लेकिन 2021 में मंडी उपचुनाव में प्रतिभा सिंह ने जीत हासिल की थी। भाजपा एक बार फिर मोदी फैक्टर और हिंदुत्व कार्ड के सहारे चारों सीटें जीतने की उम्मीद लगाए बैठी है। लेकिन इस बार महंगाई, बेरोजगारी, अग्निवीर योजना, किसानों की अनदेखी जैसे मुद्दे उसके लिए सिरदर्द बने हुए हैं। शायद इसीलिए कांग्रेस में टूट-फूट और कंगना रनौत जैसी सेलेब्रेटी का सहारा लिया जा रहा है, जो खुद को बॉलीवुड में हिंदुत्व की आवाज और राष्ट्रवादी बताती नहीं थकतीं। पहाड़ों में हवा का रुख क्या रहेगा किसी को नहीं पता।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."