हिमांशु नौरियाल की प्रस्तुति
झलकारी बाई के बारे में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कविता में लिखा है-
जा कर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी ।
गोरों से लडना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी ।।”
हर देशवासी को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर नाज है लेकिन उन्हें नाज था अपनी सखी और अद्वितीय वीरांगना झलकारी बाई पर…।
28 साल की एक मस्तमौला, पक्के इरादे रखने वाली झलकारी बाई को शायद कम ही लोग जानते हैं। झलकारी बाई एक प्रसिद्ध दलित महिला योद्धा थीं, जिन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की महिला सेना में झांसी की लड़ाई के दौरान 1857 के भारतीय विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
लक्ष्मीबाई की विश्वसनीय सलाहकार झलकारी बाई एक दलित परिवार में पैदा हुई थी। उन्हें उनके साहस और बलिदान के लिए याद किया जाता है। चलिए आपको बताते हैं कि कौन है झलकारी बाई, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में इतना नीचे दबा है…
कौन थी झलकारी बाई?
झलकारी बाई सदोबा सिंह और जमुना देवी की इकलौती बेटी थीं। उनका जन्म 22 नवंबर, 1830 को झांसी के निकट भोजला गांव में हुआ था। उनका परिवार कोली जाति का था।
मां की मृत्यु के बाद, उनके पिता ने झलकारी बाई का पालन-पोषण किया। उन्हें बेहद कम उम्र में ही हथियारों का उपयोग, घोड़े की सवारी और योद्धा की तरह लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया गया।
बचपन से ही थी योद्धा बनने के गुण
बचपन से ही उनके साहस और वीरता के किस्से नामापुर झांसी के पूरन ने सुने थे, जो खुद कोरी जाति के थे।
उन्होंने एक जंगली तेंदुए को लाठी से मार डाला, जिसे वह जवानी में मवेशियों को चराने के लिए इस्तेमाल करती थी। झांसी के सेनापति प्रसिद्ध पहलवान पूरम सिंह, जो तीरंदाजी में अनुभवी और घुड़सवारी, आग्नेयास्त्रों और तलवार चलाने में भी माहिर थे, उन्होंने झलकारी से शादी करने की इच्छा जाहिर की। पूरम की मां और झलकारी बाई के पिता इसके लिए राजी हो गए और 1843 में उनका विवाह संपन्न हुआ।
ऐसे लडी मर्दानी
….झलकारी ने अपना श्रृंगार किया. बढ़िया से बढ़िया कपड़े पहने, ठीक उसी तरह जैसे लक्ष्मीबाई पहनती थीं। गले के लिए हार न था, परंतु काँच के गुरियों का कण्ठ था। उसको गले में डाल दिया।
प्रात:काल के पहले ही हाथ मुँह धोकर तैयार हो गईं।
पौ फटते ही घोड़े पर बैठीं और ऐठ के साथ अंग्रेज़ी छावनी की ओर चल दिया। साथ में कोई हथियार न लिया. चोली में केवल एक छुरी रख ली। थोड़ी ही दूर पर गोरों का पहरा मिला। टोकी गयी….
झलकारी ने टोकने के उत्तर में कहा, ‘हम तुम्हारे जडैल के पास जाउता है।’
यदि कोई हिन्दुस्तानी इस भाषा को सुनता तो उसकी हँसी बिना आये न रहती।
एक गोरा हिन्दी के कुछ शब्द जानता था. बोला, ‘कौन?’
रानी – झाँसी की रानी, लक्ष्मीबाई, झलकारी ने बड़ी हेकड़ी के साथ जवाब दिया। गोरों ने उसको घेर लिया।
उन लोगों ने आपस में तुरंत सलाह की, ‘जनरल रोज़ के पास अविलम्ब ले चलना चाहिए।’
उसको घेरकर गोरे अपनी छावनी की ओर बढ़े। शहर भर के गोरों में हल्ला फैल गया कि झाँसी की रानी पकड़ ली गयी। गोरे सिपाही ख़ुशी में पागल हो गये। उनसे बढ़कर पागल झलकारी थी।
उसको विश्वास था कि मेरी जाँच – पड़ताल और हत्या में जब तक अंग्रेज़ उलझेंगे तब तक रानी को इतना समय मिल जावेगा कि काफ़ी दूर निकल जावेगी और बच जावेगी…”
आपने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कहानियां तो सुनी होंगी। लेकिन क्या उनकी सेना की बहादुर सिपाही झलकारी बाई के बारे में आप जानते हैं। झलकारी बाई ने लक्ष्मीबाई के प्राणों की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ ऐसी चाल चली जिसे देखकर ब्रिटिश सेना के होश उड़ गए।
झलकारी बाई के सिर पर न रानी का ताज था न ही झांसी की सत्ता। लेकिन फिर भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए उन्होंने अपने प्राणों की आहूति दे दी।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और झलकारी बाई का पहली बार आमना सामना एक पूजा के दौरान हुआ। झांसी की परंपरा के अनुसार गौरी पूजा के मौके पर राज्य की महिलाएं किले में रानी का सम्मान करने गईं। इनमें झलकारी भी शामिल थीं। जब लक्ष्मीबाई ने झलकारी को देखा तो वो हैरान रह गईं। क्योंकि झलकारी बिल्कुल लक्ष्मीबाई जैसी दिखती थीं। जब उन्हें झलकारी की बहादुरी के किस्से सुनने को मिले तो उन्हें सेना में शामिल कर लिया।
झांसी की सेना में शामिल होने के बाद झलकारी ने बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी का प्रशिक्षण लिया।
डलहौजी की नीति के तहत झांसी को हड़पने के लिए ब्रिटिश सेना ने किले पर हमला कर दिया। इस दौरान पूरी झांसी की सेना ने लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब दिया।
अप्रैल 1858 में झांसी की रानी ने अपने बहादुर सैनिकों के साथ मिलकर कई दिनों तक अंग्रेजों को किले के भीतर नहीं घुसने दिया। लेकिन सेना के एक सैनिक दूल्हेराव ने महारानी को धोखा दे दिया। उसने अंग्रेजों के लिए किले का एक द्वार खोल कर अंदर घुसने दिया। ऐसे में जब किले पर अंग्रेजों का अधिकार तय हो गया तो झांसी के सेनापतियों ने लक्ष्मीबाई को किले से दूर जाने की सलाह ही। इसके बाद वो कुछ विश्ववसनीय सैनिकों के साथ किले से दूर चली गईं।
किले के भीतर हुए इस युद्ध में झलकारी बाई के पति शहीद हो गए। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अंग्रेजों को खिलाफ एक योजना बनाई। उन्होंने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और सेना की कमान अपने हाथ ली।
इतना ही नहीं अंग्रेजों को इस बात की भनक न पड़ पाए कि लक्ष्मीबाई किले से जा चुकी हैं ये सोचकर वो अंग्रेजों को चकमा देने के लिए किले से निकलकर ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज के कैंप में पहुंच गईं। जब तक अंग्रेज उन्हें पहचान पाते तब तक लक्ष्मीबाई को पर्याप्त समय मिल गया।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और झलकारी ने बड़ी हेकड़ी के साथ जवाब दिया। गोरों ने उसको घेर लिया। उन लोगों ने आपस में तुरंत सलाह की, ‘जनरल रोज के पास अविलम्ब ले चलना चाहिए।’ उसको घेरकर गोरे अपनी छावनी की ओर बढ़े। शहर भर के गोरों में हल्ला फैल गया कि झांसी की रानी पकड़ ली गई. गोरे सिपाही खुशी में पागल हो गये। उनसे बढ़कर पागल झलकारी थी. उसको विश्वास था कि मेरी जांच – पड़ताल और हत्या में जब तक अंग्रेज उलझेंगे तब तक रानी को इतना समय मिल जावेगा कि काफी दूर निकल जावेगी और बच जावेगी।”
झलकारी रोज के समीप पहुंचाई गई। वह घोड़े से नहीं उतरी। रानियों की सी शान, वैसा ही अभिमान, वही हेकड़ी- रोज भी कुछ देर के लिए धोखे में आ गया।”
दूल्हेराव ने जनरल रोज को बता दिया कि ये असली रानी नहीं है। इसके बाद रोज ने पूछा कि तुम्हें गोली मार देनी चाहिए। इस पर झलकारी ने कहा कि मार दो, इतने सैनिकों की तरह मैं भी मर जाऊंगी। झलकारी के इस रूप को अंग्रेज सैनिक स्टुअर्ट बोला कि ये महिला पागल है। इस पर जनरल रोज ने कहा नहीं स्टुअर्ट अगर भारत की 1 फीसदी महिलाएं भी इस जैसी हो जाएं तो अंग्रेजों को जल्दी ही भारत छोड़ना पड़ेगा ‘। रोज ने झलकारी को नहीं मारा। झलकारी को जेल में डाल दिया गया और एक हफ्ते बाद छोड़ दिया गया।
रानी लक्ष्मीबाई की विश्वासपात्र होने के नाते, झलकारीबाई ने युद्ध की योजना बनाने और रणनीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1857 में भारत की स्वतंत्रता के पहले युद्ध के दौरान एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभरीं। झलकारीबाई का जन्म सूबा सिंह और जमुना देवी के घर हुआ था।
उनकी बहादुरी के किस्से झांसी और उसके बाहर के घरों में मशहूर थे। ऐसा कहा जाता है कि एक बार जब धोखेबाजों ने उनके गांव को नष्ट करने की कोशिश की, तो झलकारी ने अकेले ही उन्हें भगा दिया।
कुछ किंवदंतियों के अनुसार, उन्होंने एक बार जंगल में एक बाघ को कुल्हाड़ी से मार डाला था, जब उस जानवर ने उन पर हमला करने की कोशिश की थी। झलकारीबाई की शादी झांसी की सेना के एक सैनिक से हुई थी।
झांसी के किले में एक उत्सव के दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें देखा और झलकारीबाई की उनसे अनोखी समानता देखकर सुखद आश्चर्य हुआ। जब रानी को झलकारीबाई के बहादुरी भरे कारनामों के बारे में बताया गया, तो उन्होंने तुरंत उन्हें अपनी सेना की महिला शाखा में शामिल कर लिया और उन्हें युद्ध में और प्रशिक्षित किया।
1858 में जब ब्रिटिश फील्ड मार्शल ह्यूग रोज़ ने झांसी पर हमला किया, तो रानी लक्ष्मीबाई ने 4,000 सैनिकों की सेना के साथ अपने किले से ब्रिटिश सेना का सामना किया। हालांकि, उनके एक सेनापति ने उन्हें धोखा दिया और वे हार गईं।
अपने सेनापतियों की सलाह पर, लक्ष्मीबाई घोड़े पर सवार होकर चुपचाप झांसी से निकल गईं। लेकिन झलकारीबाई वहीं रहीं और एक शेरनी की तरह लड़ती रहीं, कई ब्रिटिश सैनिकों को मार डाला और वेश बदलकर जनरल रोज़ के शिविर में चली गईं और खुद को रानी घोषित कर दिया। उनकी गलत पहचान की वजह से भ्रम की स्थिति बनी रही और पूरे दिन लक्ष्मीबाई को भागने का पर्याप्त समय मिल गया।
झलकारीबाई 4 अप्रैल, 1858 को अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते हुए अपनी रानी की रक्षा करते हुए मर गईं। बुंदेलखंड में दलित समुदाय आज भी उन्हें देवी के रूप में देखते हैं और हर साल “झलकारीबाई जयंती” मनाते हैं।
उनके साहस ने लाखों लोगों के लिए अनुकरणीय विरासत छोड़ी है। 2001 में ग्वालियर में उनके सम्मान में एक प्रतिमा स्थापित की गई है। भारत सरकार ने झलकारीबाई की स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया, जो एक योद्धा थी जो अपने लोगों और अपने देश की रक्षा करते हुए जीयी और मर गई।
मेरी व्यक्तिगत मत मैं झलकारी बाई एक अविश्वसनीय योद्धा थीं जिसने झांसी की महान रानी लक्ष्मीबाई के साथ कई ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराते हुए एक शेरनी की तरह लड़ाई लड़ी, जब तक कि युद्ध के मैदान में उनकी मृत्यु नहीं हो गई।
हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की गुमनाम नायक या नायिका, जैसा कि आप उन्हें कह सकते हैं, झलकारीबाई के नाम से अनंत काल तक जानी जाएंगी।
Author: कार्यकारी संपादक, समाचार दर्पण 24
हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं