दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में एक बस के बिजली के तार की चपेट में आ जाने से हुए हादसे से एक बार फिर यही साबित हुआ है कि सरकार की ओर से जारी तमाम आश्वासनों के बावजूद बहुस्तरीय लापरवाही कायम है और उसमें कई बार नाहक ही लोग मारे जाते हैं।
विवाह के मौके पर बस में अड़तीस यात्री सवार होकर जा रहे थे कि बस के ऊपर उच्च क्षमता का बिजली का तार गिर गया और बस में आग लग गई। किसी तरह लोगों ने जलती बस से निकलने की कोशिश की, मगर पांच लोग जिंदा जल गए।
अब सरकार की ओर से मुआवजे की घोषणा की गई है, मगर अफसोस कि कई बार यह लापरवाही की भरपाई लगती है, क्योंकि संबंधित महकमों को जिस वक्त बिजली के खंभों या तारों के रखरखाव की जिम्मेदारी ईमानदारी से पूरी करनी चाहिए, निर्धारित वक्त पर जांच करते रहना चाहिए था, तब कोताही बरती जाती है।
गाजीपुर में हुआ हादसा लापरवाही का नतीजा है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की जरूरत है।
विडंबना यह है कि जब कोई गंभीर हादसा हो जाता है तब आनन-फानन में मुआवजे की बात होने लगती है, मगर उसके लिए जिम्मेदारी तय करने को लेकर उतनी सजगता नहीं देखी जाती।
सवाल है कि सड़क के ऊपर उच्च क्षमता का तार अगर गुजर रहा था तो उसे इस कदर असुरक्षित हालत में कैसे छोड़ा गया था कि वह लोगों के लिए जानलेवा बना? कई बार आम लोग भी सावधानी नहीं बरतते।
मगर इंसानी गतिविधियों या आबादी वाले क्षेत्रों में अगर बिजली के खंभे आदि लगाए जाते हैं तो क्या इससे संबंधित कोई नियम-कायदा है कि उनका पूरी तरह दुरुस्त और सुरक्षित होना सुनिश्चित किया जाए? तकनीकी खराबी एक अचानक उपजी स्थिति हो सकती है, लेकिन उसे समय पर दुरुस्त करने को लेकर थोड़ी भी कोताही नहीं बरती जानी चाहिए।
ऐसी घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं, जब बिजली का तार हादसे की वजह बनता है। यह सुनिश्चित करना जरूरी नहीं समझा जाता कि खासकर उच्च क्षमता के तार इंसानी आबादी या व्यस्त सड़कों के ऊपर से न गुजरें या फिर खतरे की वजह न बनें।
Author: samachar
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