इरफान अली लारी की रिपोर्ट
23 अक्टूबर, 2006 को मेरठ स्थित चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी की लेक्चरर (अंशकालिक प्रवक्ता) डॉ. कविता चौधरी बुलंदशहर स्थित अपने गांव से मेरठ के लिए निकलीं थी। घरवालों ने मेरठ पहुंचने की जानकारी के लिए 24 अक्टूबर को नंबर मिलाया, तो मोबाइल बंद मिला। दूसरे दिन तक फोन बंद रहने के साथ ही सविता से बात नहीं हो सकी।
अनहोनी की आशंका पर 25 अक्टूबर को भाई सतीश मलिक ने यूनिवर्सिटी पहुंच जानकारी करने की कोशिश की, लेकिन कुछ पता नहीं चला। कविता के परिचितों से संपर्क करने पर भी कोई जानकारी नहीं मिली। आखिरकार, 27 अक्टूबर को मेरठ के सिविल लाइन थाने में अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करवाई गई।
हाई प्रोफाइल मामला
पहले तो पुलिस ने मामले को हल्के से लिया, लेकिन जब डॉ. कविता के अपहरण को लेकर मीडिया में खबरें आने लगी, तो पुलिस ने छानबीन शुरू की। मेरठ पुलिस डॉ. कविता चौधरी के इंदिरा आवास गर्ल्स हॉस्टल के कमरे में पहुंची। वहां मिले पत्र और नोट्स देख कर पुलिस वालों के चेहरों से हवाइयां उड़ने लगी। आनन-फानन में उच्चाधिकारियों को सूचना दी गई। अधिकारी मौके पर पहुंचे और वहां पत्रों और नोट्स को कब्जे में लिया। रिटायर्ड आईपीएस अफसर राजेश पांडेय बताते हैं कि पत्र और नोट्स के आधार पर पूरा मामला ‘सेक्स रैकेट, सत्ता और ब्लैकमेलिंग’ का लग रहा था।
अधिकारियों ने कविता के मोबाइल की कॉल डिटेल निकलवाने के आदेश दिए। हॉस्टल के कमरे से मिले पत्रों में एक पत्र बार-बार पुलिस अधिकारियों में घूम रहा था। इसमें लिखा था कि ‘तत्कालीन मंत्री का करीबी रविंद्र प्रधान हत्या करना चाहता है और वो रविंद्र प्रधान के साथ जा रही है।’ इस पत्र के आधार पर पुलिस ने रविंद्र प्रधान की तलाश शुरू कर दी।
कौन था रविंद्र प्रधान
बुलंदशहर निवासी रविंद्र प्रधान यूपी के तत्कालीन बेसिक शिक्षा मंत्री किरण पाल सिंह का करीबी और दबंग था। कविता 2005 में उसके संपर्क में आई।
दरअसल 2005 में गांव के एक विवाद में पुलिस ने कविता के भाई को जेल भेजा था। भाई को जेल से निकलवाने के लिए कविता पहली बार रविंद्र से मिलीं। रविंद्र पहली मुलाकात में ही कविता पर फिदा हो गया और उसके भाई को जेल से निकलवाने में मदद की। इसके बाद दोनों की नजदीकियां बढ़ती गईं। कविता के अपहरण के बाद पुलिस लगातार रविंद्र की तलाश में जुटी थी। आखिरकार, 24 दिसंबर 2006 को रविंद्र पुलिस के हत्थे चढ़ गया।
हिल गई तत्कालीन सपा सरकार
मेरठ के तत्कालीन एसएसपी नवनीत सिकेरा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में रविंद्र को पेश करते हुए बताया कि कविता की हत्या कबूल कर ली है। इस दौरान रविंद्र प्रधान ने जो खुलासे किए, उससे यूपी की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार हिल गई।
बताया कि कविता के संबंध रालोद नेता और दो सितंबर, 2006 को सिंचाई मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले डॉ. मेराजुद्दीन समेत कई अन्य रसूखदारों से हैं। कविता चौधरी के उनसे शारीरिक संबंध थे और उसने अश्लील सीडी भी बना ली थी। इसके बाद अलीगढ़ निवासी योगेश के साथ मिलकर सबको ब्लैकमेल कर रही थी।
रविंद्र ने पुलिस की मौजूदगी में मीडिया के सामने खुलासा किया था कि सीडी के जरिए पूर्व सिंचाई मंत्री डॉ. मेराजुद्दीन से 35 लाख रुपये वसूले थे। रविंद्र के मुताबिक कविता के पास चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी आरपी सिंह और ललित कला अकादमी के अध्यक्ष कुंवर बिजेंद्र सिंह की भी अश्लील सीडी थी।
बताया कैसे की हत्या
रविंद्र ने बताया कि वसूली की रकम के बंटवारे को लेकर कविता से झगड़ा हो गया था। वसूली की रकम में वह बड़ा हिस्सा चाहती थी। इससे परेशान होकर उसने योगेश के साथ मिलकर कविता की हत्या का प्लान बनाया। इसके बाद दोनों 24 अक्टूबर को कविता को इंडिका कार से बुलंदशहर की तरफ ले गए। रास्ते में लाल कुआं में जूस पिया। उसने कविता के जूस में नशीली गोलियां मिला दी थीं। बेहोश होने पर दादरी से एक लुंगी खरीदकर कविता का गला घोंट दिया। कुछ दूर आगे चल कर लाश सनौटा पुल से नहर में फेंक दी। इसके बाद पुलिस ने नहर में तलाश करवाई, लेकिन कविता की लाश नहीं मिली।
इस्तीफों का सिलसिला
वरिष्ठ पत्रकार विष्णु मोहन बताते हैं कि हत्याकांड ने यूपी के सियासी हलकों में तूफान मचा दिया था। वजह, तत्कालीन सपा सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री किरण पाल, राष्ट्रीय लोकदल के आगरा से विधायक और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बाबूलाल और सिंचाई मंत्री रहे डॉ. मेराजुद्दीन का नाम जुड़ना था। तहकीकात में सामने आया कि कविता चार मोबाइल फोन इस्तेमाल करती थी। इसमें से एक उसके नाम और बाकी दूसरों के नाम से थे।
यह भी खुलासा हुआ एक सितंबर से 23 अक्टूबर 2006 के बीच कविता और तत्कालीन मंत्री बाबूलाल के बीच 857 बार बातचीत हुई। इस दौरान कविता की 34 बार मंत्री किरण पाल से भी बातचीत हुई थी।
इस खुलासे के बाद मंत्री बाबूलाल ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि, उन्होंने दावा किया कि हत्याकांड से उनका कोई लेना देना नहीं है। हत्याकांड में नाम आने के बाद पूर्व मंत्री डॉ.मेराजुद्दीन ने रालोद से इस्तीफा दे दिया। उधर, खुलासा होने के बाद पुलिस ने रविंद्र के साथ योगेश, सुल्तान, रविंद्र कुमार और उसके भतीजे के साथ उक्त चार हाई प्रोफाइल लोगों को भी आरोपित बनाकर तहकीकात शुरू की।
जांच सीबीआई को, नहीं मिल पाई लाश
मामला इतना हाई प्रोफाइल हो गया कि तत्कालीन सरकार की संस्तुति पर 10 जनवरी 2007 को सीबीआई ने जांच शुरू कर दी। करीब ढाई महीने की विवेचना के बाद सीबीआई ने 23 मार्च 2007 को उक्त पांच आरोपितों के खिलाफ सीबीआई विशेष कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया। इसके साथ ही चार हाई प्रोफाइल लोगों डॉ. मेराजुद्दीन, बाबू लाल, किरणपाल सिंह और यूनिवर्सिटी के वीसी आरपी सिंह के खिलाफ यह कहते हुए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की उनके खिलाफ हत्याकांड से संबंधित कोई साक्ष्य नहीं मिला है। वहीं, सीबीआई भी लाश नहीं तलाशने में नाकाम रही।
सीबीआई ने भी अपने आरोप पत्र में इस बात का खुलासा किया था कि रविंद्र ने कविता के साथ मिलकर धन कमाने के लिए कई राजनीतिज्ञों को कथित रूप से ब्लैकमेल करने की योजना बनाई थी। इसके लिए दिल्ली के पालिका बाजार से कैमरा और अन्य उपकरण भी खरीदे थे। इसी कैमरे से कविता ने एक मंत्री समेत कई से अंतरंग संबंधों की विडियो तैयार की थी।
मुख्य आरोपित की जेल में मौत
मामले की सुनवाई के दौरान डासना जेल में बंद हत्याकांड के मुख्य आरोपित रविंद्र प्रधान की 30 जून, 2008 संदिग्ध हालात में मौत हो गई। विसरा रिपोर्ट में रविंद्र की मौत की वजह जहर बताया गया।
रविंद्र प्रधान की मां बलबीरी देवी ने जेल में हत्या का आरोप लगाया। जबकि, कविता के भाई सतीश मलिक ने आरोप लगाते हुए कहा था कि पूर्व मंत्री किरण पाल और अन्य के इशारे पर ही कविता की हत्या हुई और इसी वजह से रविंद्र भी मारा गया।
उधर, सुनवाई के बाद 23 सितंबर 2011 को गाजियाबाद में सीबीआई की विशेष अदालत ने योगेश, रविंद्र कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई। जबकि, सुल्तान को तीन साल की सजा मिली थी। कोर्ट ने रविंद्र के भतीजे अशोक कुमार को बरी कर दिया था।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."