अनिल अनूप
मीडिया के ऐसे परिदृश्य में, जहां कई अख़बारों का इतिहास तक़रीबन 200 साल पुराना है, ‘समाचार दर्पण 24’ का पांच साल पूरे करना शायद बहुत महत्वपूर्ण न लगे। लेकिन भारत में डिजिटल पत्रकारिता को आए अभी कम ही समय हुआ है, लेकिन इसी छोटी समयावधि में इसने कई चुनौतियां देखी हैं- तेजी से बदलती तकनीक से लेकर वित्तीय संसाधनों की कमी और शासकीय द्वेष।
पांच साल पहले जब आज ही के दिन ‘समाचार दर्पण 24’ शुरू हुआ था, तब इस क्षेत्र की स्थितियां ज्यादा अनिश्चित थीं। आज से मुकाबले यहां काफी कम लोग थे और हमारा पूंजी कमाने या निवेशकों को लाने के बजाय एक नॉट फॉर प्रॉफिट (गैर-लाभकारी) संस्थान बनाने के फैसले को कहीं ज्यादा जोखिमभरा माना गया था।
लेकिन इस बात की गवाही तो हमारे पाठक और दर्शक देंगे कि हमने गैर-लाभकारी रहने का जो जोखिम लिया था- जिससे हमारी पत्रकारिता आज़ाद और किसी भी दबाव से मुक्त रहे- वो सही साबित हुआ है।
सच तो यह है कि हमारा किसी ‘बॉस’ को जवाब न देना ही हमें उन रिपोर्ट्स को सामने लाने में मदद करता है, जो चाहे किसी के भी खिलाफ जाती हों।
लेकिन जैसे-जैसे डिजिटल मीडिया ने पांव फैलाए हैं, ऑनलाइन रहने वाले पाठकवर्ग को विभिन्न विकल्प मिले हैं, लेकिन पूरी न्यूज़ इंडस्ट्री या पत्रकारिता के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता।
इन बीते सालों में प्रेस की आजादी पर लगातार हमले हुए, अंदर से भी और बाहर से भी, जिसने न केवल इसकी आजादी बल्कि विश्वसनीयता भी कम की है।
सरकार मीडिया को एक साथी की तरह देखती है और इसकी मदद से अपनी छवि चमकाती है। कई बड़े मीडिया हाउस स्वेच्छा से इस योजना का हिस्सा बने हैं।
कई चर्चित अखबार और टीवी चैनल सरकारी भोंपू बन चुके हैं, जो सरकार के दावों को दिखाते हैं और अपनी आलोचना इसके विरोधियों के लिए बचा लेते हैं।
सरकार या इसके नेतृत्व से कोई महत्वपूर्ण सवाल नहीं किया जाता, जवाबदेही की कोई मांग सामने नहीं आती। चीखते हुए चैनलों, नफरत और धर्मांधता उगलते बेशर्म एंकरों के बारे में कम ही कहा जाए तो बेहतर है।
बहादुर पत्रकार, जो अपने पेशे के उसूलों के साथ खड़े होते हैं, उन्हें अक्सर इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। कुछ की हत्या कर दी गई, कइयों की नौकरी गई और कुछ के खिलाफ अदालतों में मामले चल रहे हैं।
‘समाचार दर्पण 24’ को सहयोग देने का यही समय है। अगर ‘समाचार दर्पण 24’ अब तक बचा हुआ है, तो इसकी वजह हमारे पाठकों और दर्शकों का साथ रहना है।
वे हमारे साथ खड़े रहे और नियमित रूप से आर्थिक सहयोग देकर हम पर अपना भरोसा जताया। इस आर्थिक सहयोग के बगैर हम वहां नहीं होते जहां आज हैं।
सच्ची पत्रकारिता बची रहेगी
भारतीय पत्रकारिता अभी बहुत नाजुक दौर में है। ऐसे लोग भी हैं जो मानते हैं कि अब भारत का मीडिया सुधारों से परे जा चुका है और यह कभी अपनी पेशेवर ईमानदारी वापस नहीं पा सकेगा।
हो सकता है उनके पास ऐसा कहने की वजह हों। लेकिन हिंदुस्तान में अब भी ऐसे अखबार, टीवी चैनल और वेबसाइट हैं, जो ये लड़ाई लड़ना चाहते हैं। साथ ही बहुत से पत्रकार- जिनमें कई युवा भी हैं, बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं।
इसी के साथ देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे स्वतंत्र पत्रकारों की संख्या बढ़ रही है, जो जनता के हित के लिए काम करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि बड़े मीडिया संस्थानों की चुप्पी के बीच उनकी आवाज जगह बना सके।
अब भी हजारों कहानियां बाकी हैं। लॉकडाउन की चुनौतियों के बीच, जिन लोगों को मुख्यधारा का हिस्सा होने के बावजूद शायद ही कभी मुख्यधारा के मीडिया में जगह मिलती है, वे हमारी चेतना का हिस्सा बन चुके हैं।
पूरे देश में पत्रकार इस मौके पर खड़े हुए हैं और उनकी कहानियां बता रहे हैं, हालांकि कुछ मीडिया संस्थानों ने इसकी खिल्ली उड़ाने की कोशिश की है, लेकिन भारतीय सच जानना चाहते हैं न कि सजा-संवरा प्रचार। और यही वजह है कि सच्ची और अच्छी पत्रकारिता हमेशा आगे बढ़ेगी।
‘समाचार दर्पण 24’ का मकसद अपने पाठकों और दर्शकों तक जनवादी पत्रकारिता लाना है और हम जानते हैं कि आप हमारा सहयोग करते रहेंगे।
जैसा कि हमने पांच साल पहले कहा था कि हम नये तरीके से ऐसे मीडिया का निर्माण करना चाहते हैं जो पत्रकारों, पाठकों और जिम्मेदार नागरिकों का संयुक्त प्रयास हो।
हम अपने इस सिद्धांत पर टिके रहे हैं और यही आगे बढ़ने में हमारी मदद करेगा।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."