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November 23, 2024 2:19 am

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श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा तो हो गई अब लोकतंत्र की प्राण कब होगी प्रतिष्ठित? 

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मोहन द्विवेदी की रिपोर्ट

बार-बार आंखें भीग जाती हैं। मन सुबकने लगता है। चेहरा दीवार की ओर करना पड़ता है, ताकि आंसू सार्वजनिक न हो जाएं। आज तीनों लोक आनंदित होंगे, चराचर में उत्साह और उल्लास होगा, असीम आसमान तक हरेक मंजर आह्लादित होगा। सनातन के ‘प्राण’ श्रीराम का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह हुआ है, तो भावुक होना स्वाभाविक है। भीतर आत्मा से सवाल उभरते हैं कि भारत के ‘प्राण’ की प्राण-प्रतिष्ठा की नौबत ही क्यों आई? इस सवाल के साथ पुरानी स्मृतियां भी ताजा हो गई हैं, जब एक-एक ‘रामशिला’ के साथ सवा रुपया भी देने का संकल्प निभाया जा रहा था। विहिप के मुताबिक, ऐसा करीब 68 करोड़ भारतीयों ने किया था। हम सौभाग्यशाली हैं कि शिला और पनपते आंदोलन के भी साक्षी बने और अब कमोबेश टीवी चैनल के जरिए प्राण-प्रतिष्ठा का अलौकिक-सा दौर भी देख रहे हैं।

सवाल ये भी मौजू लगते हैं कि प्रधानमंत्री के तौर पर वीपी सिंह ने ‘राम मंदिर’ के लिए जगह देने का वायदा किया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने कथित बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का ऐलान किया था। यह दीगर है कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक हालात के दबावों के कारण कोई भी प्रधानमंत्री मस्जिद को दोबारा खड़ा नहीं कर सका। हमने राम मंदिर आंदोलन के स्वत: स्फूर्त उभार और उफान को भी देखा है।

लाख प्रयत्न करने के बावजूद मुझे आज तक इतिहास में इस बात का सुबूत नहीं मिल पाया कि आज़ादी के बाद लोकतंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा हुई थी या नहीं। पर अब मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं कि पिछले दस सालों से राष्ट्र में राम राज्य की नींव को गहरा करने के लिए देश की जड़ों में जिस गति से मार डाला जा रहा है, वह अयोध्या के अधूरे मन्दिर में होने वाली राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ सम्पन्न हो जाएगा।

अंग्रेज़ी में राम राज्य का निकटतम शाब्दिक अनुवाद यूटोपिया है, जिसे हिन्दी में आदर्शलोक भी कहा जा सकता है। देश में हुई हर ग़लती के जि़म्मेदार नेहरू ने आज़ादी के बाद भारत को राम राज्य घोषित नहीं किया था। जिसके चलते अब तक देश में राम राज्य पूरी तरह उतर नहीं पाया था। लेकिन देश में सौ स्मार्ट सिटी बनाने और उसमें बुलेट ट्रेन दौड़ाने के बाद मोदी भारत सरकार ने ठान लिया है कि वह पूरे भारत को राम राज्य बनाकर ही दम लेगी। भले इसमें देश को टीबी हो या दमा।

दिल्ली पहले ही राम राज्य की सान चढ़ चुका है। वहां अब सर्दियों में क्या, पूरा साल ही लोगों को साँस लेने में दिक्कत आती है। देश में जो राम राज्य पसर रहा है, उसका कार्य 2047 तक पूरा हो जाएगा। भले उसे देखने के लिए हम मानव रूप में जिंदा न रहें, पर मुझे यक़ीन है कि हम श्वान योनि में उस राम राज्य का सम्पूर्ण आनन्द उठाएंगे, जहाँ हमें जी-20 देशों की बैठक से पहले कुत्तों की तरह घसीटने के बाद पिजरों में बंद नहीं किया जाएगा। हाँ, मैं इस बात का दावा नहीं कर सकता कि आज की तरह बयासी करोड़ लोगों को उस वक्त पाँच किलो राशन मिलेगा या नहीं। क्योंकि तब तक देश विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन चुका होगा और आम भारतीय की मासिक आय कम से कम एक करोड़ रुपये महीना होगी। इतना ही नहीं विश्व गुरू के हर घर में गोबर शोधन और प्रसंस्करण के प्लांट स्थापित होंगे, जिनसे तरह-तरह के व्यंजन और केक बनाए जाने से अन्न उत्पादन में आ रही गिरावट से निपटने में मदद मिलेगी।

राशन के थैलों पर चिपके हँसते हुए विश्व गुरू के फोटो शोधित गोबर से बने व्यंजनों के डिब्बों पर नजऱ आएंगे। क्योंकि मसला तो प्रचार का है और यह भी संभव है कि प्रचार की ओवर डोज़ के चलते लोग राम राज्य की जगह नमो राज्य या विश्व गुरू राज्य कहना शुरू कर दें। भले तब तक देश गुरू घंटाल बन चुका हो। यह प्रचार की अति या ओवर डोज़ का ही नतीजा है कि राजस्थान सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में मंच संचालक प्रधानमंत्री को मुख्य मंत्री कह जाता है या नया मुख्य मंत्री पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से दी जाने वाली श्रद्धांजलि को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अर्पित कर देता है। अदम गोंडवी का एक शे’र है : ‘काजू भुने प्लेट में, व्हिसकी गिलास में, उतरा है राम राज्य विधायक निवास में।’ समय से पहले पैदा होने का यही नुक़सान होता है कि आदमी न केवल आने वाली सुख की छाँव से वंचित हो जाता है बल्कि उसका लिखा भी समय के साथ खऱा नहीं उतर पाता। अगर वह आज जि़न्दा होते तो इस शे’र में विधायक निवास की जगह संसद का जिक्र करते। वह भी नए संसद भवन का। संसद के अन्दर प्रधानमंत्री की मिमक्री और एक सांसद द्वारा दूसरे सांसद को दी गई गालियों और संसद के सभापतियों द्वारा विपक्षी सांसदों को बेबात निष्कासित करते हुए देखकर गोंडवी साहिब इस पर एक छोटा सा शे’र या गज़़ल क्या, पूरा महाकाव्य रच सकते थे। जितना न्याय संसद के सभापतियों ने विपक्ष के सांसदों के साथ किया है, उतना न्याय तो गोंडवी की कविता ‘मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको’ के थानेदार ने सरजूपार की मोनालिसा, मंगल और अन्य लोगों के साथ भी नहीं किया था। मुझे गोंडवी साहिब से हमदर्दी है कि उनके भाग्य में राम राज्य का सुख नहीं लिखा था। यह विशेषाधिकार प्रभु राम ने हमारे ही भाग्य में लिखा है।

अयोध्या में राम के चरण पूरे देश के भ्रमण में आस्था के कई महाकुंभ और प्रतीकात्मक बिंदुओं पर बदलते अंदाज की कहानी बयां कर रहे हैं। जश्न मनाती टोलियों का हुलिया यह हवाला दे गया कि देश किस दिशा में सोच रहा है। बहता हुआ एक रास्ता मिल गया, हम तो निकले थे तेरे दीदार में। राम के दर्शन का मायावी स्वरूप और जयघोष के उन्मादी रूप में जिंदगी भाग निकली, बाहर निकली। यह जश्न इतिहास को गांव की दहलीज तक और राष्ट्र के विषयों को लगभग खारिज करके सोच रहा है कि धर्म के रास्ते जन्नत की तस्वीर उभर आई है। एक पल के लिए देश के सारे मुद्दे गौण और पीड़ा के सारे कान बंद हैं, सिर्फ शंखनाद है या तिलिस्म जिसने देश को व्यस्त कर दिया। हिमाचल से या हिमाचल की आस्था सोमवार के दिन जमीन मापती हुई दूर निकल गई ताकि खबर हो कि किसने पटका बांधा, किसने लंगर लगाया। वैसे यह अद्भुत छुट्टी थी जिसकी रचना कांग्रेस सरकार ने की। ऐसे में राम किसी एक के नहीं हो सकते, लेकिन इवेंट तो हो सकता है और यह हुआ यूं ही नहीं। पिछले कई दिनों से हिमाचल की गलियां कानाफूसी कर रही थीं।

राम के सेवक दौड़ रहे थे, तो घर-घर अक्षत पहुंच कर संदेश दे रहे थे। ऐसे में राष्ट्रीय निमंत्रण पत्रों पर उठे विवाद ने कांग्रेस को कोने पर पहुंचा दिया, लेकिन अगर मुद्दे में राम को देखेंगे, तो कहीं राजीव गांधी व नरसिम्हा राव भी न•ार आएंगे। मुद्दे में राम ने कभी शांता कुमार की सरकार छीन ली थी, तो पालमपुर अधिवेशन में पार्टी ने ‘मंदिर अयोध्या में बनाएंगे’, का उद्घोष चुना था। इसलिए पालमपुर में शांता कुमार के लिए राम की गाथा में उनकी नीतियों का रामराज्य बोल रहा है। यह वह दौर था जब भाजपा अपने सिद्धांत पर सर्वोपरि थी, भले ही सत्ता रहे या दोबारा न मिले। अब जबकि अयोध्या में राम की राजनीतिक उपासना को अलग करके नहीं देखा जा सकता, भाजपा इस धार्मिक धरोहर और उत्सव की वारिस होने के सारे प्रमाण देश भर में जुटा रही है। कहना न होगा कि जिस तरह समारोह का शृंगार हुआ और इसका मंचन नागरिक समाज तक हुआ, उससे जाग्रत भावनाएं उद्घोष कर रही हैं। कल अगर यही उद्घोष चुनावी उद्घोष बन गया, तो वर्तमान सियासी स्थिति में ही उफान आएगा, वरना देश का मूड अब इस फुर्सत में नहीं कि देश की कोई अन्य चर्चा शुरू की जाए।

बहरहाल राम मंदिर ने भले ही वर्षों अपने ऊपर विवादों की पपड़ी देखी होगी, लेकिन उल्लास की नगरी बनी अयोध्या अब एक नई शुरुआत है समाज, समाज के व्यवहार, समाज के आचरण में देश और देश के आचरण में समाज को देखने की। एक वक्त था जब भारत अपनी सरहद से समाज को संबोधित करता था और जब उद्घोष में ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा लगता था। लाल बहादुर शास्त्री के दौर में आर्थिक व खाद्यान्न संकट से जूझते देश ने सप्ताह में एक दिन व्रत शुरू कर दिया था। अब राष्ट्र के नारे, राष्ट्र के इशारे और राष्ट्र की बुलंदी में इतिहास बदल रहा है। हमारे प्रतीक चुनाव लड़ा रहे हैं और मध्यस्थ की भूमिका में निर्णय सुना रहे हैं। इस बार जय श्री राम ही राष्ट्रीय उद्बोधन है और यही देश के कान सुन रहे हैं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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