अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
हाय, I.N.D.I.A. गठबंधन की पार्टी तो शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई लगती है। ये मुझे स्कूल के एक दोस्त की याद दिलाता है। उसे माता-पिता से घर पर पार्टी देने की इजाजत मिल गई थी। उसने अगले कुछ हफ्तों में पूरी योजना बनाई – संगीत, खाना, साज-सज्जा, निमंत्रण – यह सोचकर कि वह इसे सबसे अच्छी पार्टी बनाएगा।
दुर्भाग्य से, पार्टी से एक हफ्ते पहले, हमारे पास स्कूल का टेस्ट था। मेरे दोस्त का प्रदर्शन खराब रहा, वह कक्षा में अंतिम स्थान पर रहा। बस, वही हुआ। उसके माता-पिता ने पार्टी की अनुमति वापस ले ली।
कुछ ऐसा ही इंडिया गठबंधन के साथ भी हुआ लगता है। उसके मुख्य साझेदार कांग्रेस को हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है। इसकी तुलना कुछ महीने पहले से करें, जब विपक्ष में उत्साह था।
नाम में क्या रखा है?
कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीता था; बीजेपी को हराया था। विपक्ष एक साथ आया, खुद को I.N.D.I.A. नाम का उपहार दिया। मास्टरस्ट्रोक। इस चतुर शब्द-खेल को एक तरह की जीत के रूप में देखा गया। मानो खुद को I.N.D.I.A. का नाम देने का मतलब था कि आपने भारत जीत लिया है। आश्चर्य है कि उन्होंने खुद का नाम विश्व या सौर मंडल क्यों नहीं रखा?
खैर, इंडिया नाम ने कुछ चर्चा बटोरी। ध्यान खींचा। मंच पर तमाम पार्टियों के नेताओं के ग्रुप फोटो खिंचवाए गए। इतने सारे लोगों के साथ, यह किसी क्लास के ग्रुप फोटो की तरह लग रहा था, हालांकि बिना स्कूल यूनिफॉर्म के।
सपनों की उड़ान और हकीकत का थप्पड़
कई लोगों को लगा था कि इतने सारे लोग एक साथ आएंगे तो भाजपा और एनडीए को बड़ा झटका लगेगा। इसके बाद, इंडिया गठबंधन ने 14 टीवी न्यूज एंकरों का बहिष्कार किया। थोड़ी देर के लिए यह ट्रेंड में रहा। उन्हें सुर्खियों में रखा। तीन उत्तरी राज्यों के विधानसभा चुनावों के ऑपिनियन पोल में कांग्रेस को बढ़त दिख रही थी।
लय, लहर, हवा, तूफान- कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए क्या ऐसा कुछ होने जा रहा था? एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर विपक्षी गठबंधन के समर्थक कुलीन वर्ग ने समय से पहले जश्न मनाना शुरू कर दिया।
ऑनलाइन मिर्च-मसाला
कांग्रेस ने अपने सोशल मीडिया गेम को मजबूत किया। उन्हें आखिरकार चतुर मीम्स का पता चल गया। इंडिया ग्रुपिंग ने कहा कि भाजपा रक्षात्मक है, खासकर विधानसभा चुनावों में पार्टी के दिग्गजों को उतारना दिखाता है कि वह बैक फुट पर है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ – कांग्रेस के लिए इन सभी को जीतने का एक अच्छा मौका था। भारत जोड़ो यात्रा को उचित श्रेय मिल रहा था।
दुख की बात है कि यह सब एक झटके में खत्म हो गया। भाजपा ने इन विपक्षी सपनों पर लगाम लगा दी। भाजपा जहां पहले से सत्ता में थी, वहां भी जीत हासिल की। जहां वह सत्ता में नहीं थी, वहां भी जीत हासिल की। कांग्रेस के पास कोई बहाना नहीं था।
कुछ भी नया नहीं
हां, कांग्रेस ने तेलंगाना जीता जरूर, लेकिन ये बड़े उत्तरी राज्य हैं जो लोकसभा चुनावों का खेल बना-बिगाड़ सकते हैं। तेलंगाना में भी, भाजपा ने अपनी सीट संख्या और वोट शेयर में सुधार किया, जिसके नतीजे आने वाले वर्षों में दिखाई देंगे।
आमतौर पर, जब ऐसा होता है तो अखबारों में कांग्रेस को सलाह देने वाले कॉलम की एक बाढ़ सी आ जाती है, जिसका पूर्वानुमान होता है। इनमें मैं भी शामिल रहा हूं। अतीत में मैंने भी ‘कांग्रेस को 5 सलाह’ लेख लिख चुका हूं। क्रिप्टो, शेयर बाजार ट्रेडिंग और ड्रॉपशीपिंग कोर्स के बाद, शायद सबसे लोकप्रिय ऑनलाइन कोर्स है ‘कांग्रेस के लिए सबक’।
पहले ही कांग्रेस को बिन मांगी सलाहों की बाढ़ आई हुई है। ऐसे में में कांग्रेस को और सलाह नहीं दूंगा। बार-बार हार का कारण सलाह की कमी या रणनीति नहीं, बल्कि जुनून की कमी है। कांग्रेस के पास ये सारा ज्ञान है, लेकिन भाजपा और उसके नेतृत्व के पास जुनून का वो नशा है, जो उन्हें आगे बढ़ाता है। वो भूख, लगन और मेहनत की ताकत है, जो उन्हें दूसरों से आगे रखती है।
कांग्रेस नेतृत्व में वो जुनून नदारद है। उनके लिए हर चुनाव, हर रैली, हर बूथ बराबर महत्वपूर्ण नहीं है। उनकी सोच सिर्फ फौरन जीत या खुशियों तक ही सीमित है, भविष्य की भूख नहीं है। उनमें वह जुनून नहीं है कि सही सलाह को अपना लें, भले ही उसे लागू करना कितना भी मुश्किल हो।
न सुनने का रोग
क्या 2018 में जब कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश जीते थे, तब कई लोगों ने ये नहीं कहा था कि सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए? अगर 2018 में इन नेताओं को संभाला होता, तो क्या 2023 में नतीजे अलग नहीं होते? लेकिन नहीं, कांग्रेस समझती थी कि वो सब जानती है। वो जनता से जुड़ने की कोशिश नहीं करती, जहमत नहीं उठाती जहां युवा मुख्यमंत्री के तौर पर एक युवा चेहरा चाहते थे।
कांग्रेस कम में खुश है। सोशल मीडिया पर कुछ कुलीन समर्थन, अंग्रेजी बोलने वालों से मिल रही कुछ तारीफ और कभी-कभार राज्य की जीत से उसे संतुष्टि मिल जाती है। ये उनकी भूख को ही मार देता है। भाजपा के ठीक उलट, जिसकी हर चुनाव में एक अतृप्त भूख होती है।
जिंदगी का लुत्फ
इसलिए, कांग्रेस या इंडिया गठबंधन को अब और चुनाव जीतने की सलाह नहीं। वो ठीक हैं। सिर्फ एक सुझाव है कि विपक्ष में रहने का आनंद लें, भरपूर लुत्फ उठाएं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."