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28 December 2024 4:38 pm

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दावे तो ऐतिहासिक जीत की थी लेकिन प्रदर्शन….. सबने देखा… बिखरता I. N. D. I. A. 

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

लखनऊ: मध्य प्रदेश के चुनाव परिणाम में तमाम राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया है। चुनाव से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का फैक्टर चलने का दावा किया जा रहा था। तमाम राजनीतिक विश्लेषक मध्य प्रदेश में कड़ा चुनावी मुकाबला होने का दावा कर रहे थे। चुनाव परिणाम तमाम दावों के उलट रहा।

भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में 54 सीटों की बढ़त के साथ 163 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हुई। वहीं, कांग्रेस को 2018 के चुनाव परिणाम के मुकाबले 48 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। पार्टी 66 सीटों पर सिमटी।

एमपी इलेक्शन 2023 में तमाम राजनीतिक दलों ने बड़े-बड़े दावे किए थे। उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुख्य विपक्ष की भूमिका निभा रहा समाजवादी पार्टी पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरा। पहले विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के सहारे और आसरे अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश की राजनीति में बड़ा राजनीतिक विकल्प बनने का दावा किया। कांग्रेस के साथ गठबंधन टूटा तो अखिलेश ने अकेले दम पर चुनावी मैदान में बड़ी सफलता के दावे करने शुरू कर दिए। पार्टी ने 46 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन सफलता कहीं भी हाथ नहीं लगी। सपा के तमाम उम्मीदवारों के जमानत जब्त हुए।

अखिलेश के ट्रंप कार्ड मिर्ची बाबा पूरी तरह फेल

अखिलेश यादव की रणनीति पर अब सवाल उठने लगे हैं। अखिलेश यादव ने यूपी चुनाव 2022 में प्रदेश में बड़ी जीत के दावे के साथ सत्ता में वापसी का दम भरा था। लेकिन, योगी- मोदी के चेहरे के सहारे भाजपा यूपी की सत्ता में वापसी करने में कामयाब हो गई।

अखिलेश को प्रदेश में सफलता नहीं मिली तो उन्होंने पार्टी को राष्ट्रीय पहचान दिलाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया। विधानसभा चुनावों के परिणाम ने अखिलेश यादव की रणनीति पर ही बड़ा प्रश्न चिह्न लगा दिया है।

मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने 46 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। अखिलेश ने उम्मीदवारों के पक्ष में जोरदार प्रचार किया। सभाओं में उन्होंने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों पर हमले किए। राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. की वकालत करने वालों को यह अच्छा नहीं लगा। अब भले ही I.N.D.I.A. के सहयोगी कांग्रेस पर आरोप लगा रहे हैं। लेकिन, अखिलेश की रणनीति भी सवालों के घेरे में है।

अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उनके गढ़ में चुनौती देने के लिए महामंडलेश्वर स्वामी वैराज्ञानंद उर्फ मिर्ची बाबा को टिकट दे दिया। हिंदुत्व की राजनीति के जरिए उन्होंने प्रदेश के सबसे नेता के खिलाफ उम्मीदवार देकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की। इसका लाभ तो नहीं मिला।

सपा को मिलने वाले परंपरागत वोटर भी छिटक गए। पिछली बार पार्टी ने एक सीट जीती थी। करीब पांच सीटों पर उनके उम्मीदवार टक्कर में दिखे थे। लेकिन, इस बार किसी भी सीट पर पार्टी का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा।

शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ बुधनी से उतरे मिर्ची बाबा ने लखनऊ में जिस प्रकार का माहौल बनाया था। शिवराज को हराने तक का दम भर दिया था। वह बुधनी से कुल मिलाकर 136 वोट हासिल करने में कामयाब हुए।

शिवराज सिंह चौहान 1,64,951 वोट हासिल करने में कामयाब हुए। उन्होंने कांग्रेस के विक्रम मस्तल शर्मा को 1,04,974 वोटों से हराया। विक्रम शर्मा महज 59,977 वोट हासिल कर सके। शिवराज को क्षेत्र के 70.7 फीसदी मतदाताओं का समर्थन मिला। वहीं, दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस 25.71 फीसदी वोट हासिल कर सकी। वहीं, अखिलेश के कथित दमदार उम्मीदवार ने 0.06 फीसदी वोट हासिल किया। वे पूरी तरह से फेल साबित हुए।

चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक

समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन मध्य प्रदेश चुनाव में निराशाजनक रहा। पार्टी के प्रदेश की 46 सीटों पर उतरे उम्मीदवारों में से किसी ने जीत हासिल करने में कामयाबी नहीं पाई। एमपी चुनाव में सपा को महज 0.46 फीसदी वोटरों के वोट मिले। प्रदेश में पार्टी का खाता नहीं खुल पाया।

प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के अलावा भारत आदिवासी पार्टी ही एक मात्र दल रही, जिसके एक उम्मीदवार जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। अखिलेश यादव की सपा प्रदेश में नोटा को मिले कुल वोट प्रतिशत 0.98 फीसदी के आधे से भी कम वोट हासिल कर पाई। 

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यह पहला प्रदेश का चुनाव था, जहां सपा ने पूरा जोर लगाया था। इसमें पार्टी को कोई खास कामयाबी नहीं मिल पाई।

न पीडीए चला, न जातीय जनगणना का मुद्दा

अखिलेश यादव पीडीए यानी पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक की राजनीति को जमीन पर उतारने की रणनीति के साथ चुनावी मैदान में थे। वे एक साथ कांग्रेस और भाजपा को पीडीए की जमीन पर धराशायी करने का दावा कर रहे थे, लेकिन रणनीति में बड़ी चूक ने उन्हें फायदा नहीं दिलाया।

मध्य प्रदेश के राजनीतिक जानकारों का दावा है कि समाजवादी पार्टी ने बिना समीकरणों को समझे टिकट बांट दिया। इसका उन्हें नुकसान झेलना पड़ा। पार्टी अपने मजबूत पक्ष को भुनाने में कामयाब नहीं रही।

पहले माय समीकरण के जरिए प्रदेश के यूपी से सटे भागों में पार्टी प्रभाव छोड़ने में सफल होती थी, लेकिन इस बार पीडीए का फॉर्मूला काम नहीं आया। इसका कारण प्रदेश में पिछड़ा वर्ग से आने वाले सीएम शिवराज सिंह चौहान रहे।

जातीय जनगणना का मुद्दा भी इसी कारण प्रभावी नहीं रहा, क्योंकि यहां पर सीएम से लेकर पीएम तक इसी वर्ग से आते लोगों को दिखे। ऐसे में उन्हें विकल्पों की तरफ जाने की जरूरत महसूस नहीं हुई।

यादवों के बीच भी अखिलेश नहीं रहे प्रभावी

मध्य प्रदेश के जातीय समीकरण को देखें तो यहां पर यादव जनसंख्या ठीक- ठाक है। मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर करीब 12 से 14 फीसदी आबादी यादवों की है। मध्य प्रदेश का बहुतायत यादव समुदाय भाजपा का परंपरागत वोटर रहा है।

प्रदेश की करीब 80 से 90 लाख आबादी को साधने की कोशिश मुलायम करते रहते थे। उन्हें कुछ चुनावों में कामयाबी भी मिली। लेकिन, यादव की बात छोड़ अखिलेश ने पीडीए की चर्चा शुरू की, यादव वोट बैंक भी सपा से दूर होता दिखा। वहीं, भाजपा और कांग्रेस में राज्यस्तर पर कई बड़े यादव नेता हैं। कांग्रेस ने तो अरुण यादव को बुंदेलखंड संभाग की जिम्मेदारी सौंपी थी।

वहीं, भाजपा में शिवराज सरकार में मंत्री मोहन यादव का रसूख बड़ा है। हालांकि, इस बार के चुनावों में यादव वोट बैंक एक बार फिर भाजपा की तरफ जाता दिखा। यह अखिलेश की चिंता बढ़ाने वाला होगा। साथ ही, यह परिणाम उन्हें रणनीति बदलने के भी संकेत देता दिख रहा है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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