आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। सियासी दलों ने 2024 के लोकसभा चुनाव में जीत के लिए समीकरण साधना और पसीना बहाना शुरू कर दिया है। केंद्र की सत्ता पर काबिज होने की इस लड़ाई के बीच यूपी में दिल्ली और प्रदेश के उच्च सदन के लिए भी चुनावी चौसर बिछेगी। राज्यसभा में यूपी के कोटे की 10 सीटों का कार्यकाल 2 अप्रैल, 2024 को खत्म हो रहा है। वहीं, विधान परिषद में भी विधायक कोटे की 13 सीटें 5 मई को खाली हो जाएंगी। इसलिए, लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने के साथ दलों को इन सीटों का गुणा-गणित साधने के लिए भी पसीना बहाना पड़ेगा।
राज्यसभा की जो 10 सीटें खाली हो रही हैं, उसमें 9 सीटें भाजपा के पास हैं। सपा से इकलौती सीट जया बच्चन की खाली हो रही है। चुनाव आयोग मार्च में चुनाव कार्यक्रम घोषित कर सकता है। वहीं, विधान परिषद में खाली हो रही 13 सीटों में 10 भाजपा, 1 उसके सहयोगी अपना दल और 1-1 सपा और बसपा के पास है। 5 मई के पहले इन सीटों पर भी चुनाव प्रस्तावित है।
सपा के लिए राज्यसभा में बढ़ेगा मौका
मार्च 2018 में 10 सीटों के लिए हुए राज्यसभा चुनाव में सपा ने जया बच्चन को उतारा था। 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले मायावती से दोस्ती का हाथ बढ़ाने की कोशिश में सपा ने बसपा उम्मीदवार भीमराव आंबेडकर को समर्थन दिया था। हालांकि, क्रॉस वोटिंग व संख्या गणित में भाजपा भारी पड़ी और उसने अपने 9 उम्मीदवार जिता लिए। सपा से जया बच्चन जीतीं, लेकिन बसपा से भीमराव हार गए थे। 2022 के चुनाव के बाद विधानसभा के बदले गणित के चलते इस बार भाजपा के लिए सभी सीटों को बचा पाना मुश्किल होगा, जबकि सपा के पास राज्यसभा में संख्या बढ़ाने का मौका होगा।
विधानसभा की मौजूदा सदस्य संख्या के हिसाब से राज्यसभा से एक प्रत्याशी जिताने के लिए 37 वोट की जरूरत होगी। सपा के पास 109 और रालोद के पास 9 विधायक हैं। ऐसे में 118 विधायकों के साथ सपा कम से कम तीन सीटें जीतने की स्थिति में होगी। सत्तारूढ़ गठबंधन के पास कुल 279 (भाजपा : 254, अपना दल (एस) : 13, निषाद पार्टी : 6, सुभासपा : 6) विधायक हैं। ऐसे में 7 सीटों पर उसकी जीत पक्की है। इसके अलावा कांग्रेस के पास 2, जनसत्ता दल के पास 2 व बसपा के पास 1 विधायक है।
जनसत्ता दल का समर्थन आम तौर पर भाजपा को रहता है। पिछले एमएलसी चुनाव में कांग्रेस व बसपा ने किसी का समर्थन नहीं किया था। हालांकि, लोकसभा चुनाव के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों ओर नए दोस्तों को जोड़ने-तोड़ने की कोशिशें चल रही हैं। ऐसे में चुनाव के समय तक तक दोस्ती व निष्ठा के टिकने-डिगने के आधार पर संख्या व समीकरण बदल भी सकते हैं।
बसपा शून्य, सपा पाएगी नेता प्रतिपक्ष का पद!
पिछले साल जुलाई में कांग्रेस पहली बार यूपी के विधान परिषद में शून्य पर पहुंच गई। अगर कोई ‘दोस्त’ नहीं मिला तो विधानसभा में 1 पर पहुंची चुकी बसपा मई में विधान परिषद में शून्य हो जाएगी। उसके पास केवल 1 विधायक है और इस आधार पर उसका उम्मीदवार पर्चा भी नहीं भर सकता, क्योंकि नामांकन के लिए भी 10 प्रस्तावक की जरूरत होती है। विधानसभा के मौजूदा गणित के हिसाब से विधान परिषद में एक प्रत्याशी जिताने के लिए 29 विधायक की जरूरत होगी।
अगर सत्ता और विपक्ष अपने मौजूदा सभी सहयोगियों को तब तक साथ रखने में सफल रहे तो भाजपा गठबंधन कम से कम 9 और सपा-रालोद गठबंधन 4 सीटें जीतने की स्थिति में होगा। इसका एक बड़ा फायदा सपा के लिए यह होगा कि एक बार फिर वह विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की सीट की दावेदार हो जाएगी। परिषद में अभी उसके 9 सदस्य हैं और नेता प्रतिपक्ष के लिए जरूरी 1/10 सदस्य के मानक से वह एक पीछे है।
5 मई को खाली हो रही सीटों के हिसाब से सपा की सदस्य संख्या घटकर 8 रह जाएगी। सपा के पास अपने 109 विधायक हैं। ऐसे में कम से कम 3 सीट वह अपने दम पर भी जीतने की स्थिति में है। लिहाजा, परिषद में उसका दहाई में जाना तय है और उसे नेता प्रतिपक्ष का पद वापस मिल जाएगा।
राज्यसभा में इनका कार्यकाल होगा पूरा
भाजपा : अनिल अग्रवाल, अशोक वाजपेयी, अनिल जैन, कांता कर्दम, सकलदीप राजभर, जीवीएल नरसिम्हा राव, विजय पाल तोमर, सुधांश त्रिवेदी, हरनाथ सिंह यादव
सपा : जया बच्चन
विधान परिषद में इनका कार्यकाल होगा पूरा
भाजपा : यशवंत सिंह, विजय बहादुर पाठक, विद्या सागर सोनकर, सरोजनी अग्रवाल, अशोक कटारिया, अशोक धवन, बुक्कल नवाब, महेंद्र कुमार सिंह, मोहसिन रजा, निर्मला पासवान।
अपना दल (एस) : आशीष पटेल
सपा : नरेश चंद्र उत्तम
बसपा : भीमराव आंबेडकर
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."