
नगर पंचायत नरैनी सूचना का अधिकार अधिनियम की अनदेखी
सोनू करवरिया की रिपोर्ट
नगर पंचायत नरैनी और लोक निर्माण विभाग (PWD) बांदा पर सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की खुलेआम अनदेखी करने के गंभीर आरोप लगे हैं। नरैनी के समाजसेवी सोनू करवरिया ने करीब 40 दिन पहले दोनों विभागों से आरटीआई (RTI) के माध्यम से कई महत्वपूर्ण जानकारियां मांगी थीं।
हालांकि, सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत किसी भी नागरिक को सूचना उपलब्ध कराने की निर्धारित समयावधि 30 दिन है। लेकिन नगर पंचायत नरैनी और PWD बांदा ने इस अवधि में कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई, जिससे कानून की धज्जियां उड़ी हैं।
सोनू करवरिया ने बताया कि, “जब नागरिकों को सूचना का अधिकार दिया गया है, तो जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा जानकारी न देना लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है। यह रवैया तानाशाही जैसा प्रतीत होता है।”
समाजसेवी ने की प्रथम अपील
नगर पंचायत नरैनी और PWD बांदा द्वारा जानकारी न देने के बाद, समाजसेवी सोनू करवरिया ने अब इस प्रकरण में प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को अपील प्रस्तुत की है।
नगर पंचायत नरैनी के मामले में अपील एडीएम (ADM) बांदा को दी गई है।
लोक निर्माण विभाग (PWD) बांदा के मामले में अपील अधीक्षण अभियंता (SE) PWD बांदा को प्रस्तुत की गई है।
सोनू करवरिया ने कहा कि यदि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी समय पर जानकारी उपलब्ध नहीं कराते हैं, तो उन्हें राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा।
नागरिकों के अधिकार पर खतरा
सूचना का अधिकार अधिनियम का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता देना है। लेकिन नगर पंचायत नरैनी और PWD बांदा के रवैये से यह सिद्ध होता है कि सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की गंभीर कमी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि, “जब सूचना का अधिकार अधिनियम लागू है, तो किसी भी विभाग का इसे नजरअंदाज करना सीधे तौर पर लोकतंत्र के मूल अधिकारों का उल्लंघन है। यह केवल कानून की अवहेलना नहीं बल्कि जनता के प्रति उपेक्षा है।”
RTI के माध्यम से मांगी गई जानकारियां
सोनू करवरिया ने नगर पंचायत नरैनी और PWD बांदा से निम्नलिखित जानकारियां मांगी थीं,
1. नगर पंचायत नरैनी द्वारा पिछले साल की गई सभी निर्माण योजनाओं और खर्चों की रिपोर्ट।
2. PWD बांदा द्वारा जिले में सड़कों और पुलों के निर्माण कार्यों की वित्तीय और तकनीकी जानकारी।
3. संबंधित अधिकारियों द्वारा अनुबंध और टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता।
4. सरकारी फंड का उपयोग और वितरण रिपोर्ट।
इन जानकारियों के अभाव में जनता को यह समझने में मुश्किल हो रही है कि उनके पैसे का सही उपयोग हो रहा है या नहीं।
समाजसेवी का जोर : लोकतंत्र में पारदर्शिता आवश्यक
सोनू करवरिया ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम केवल कागज पर नहीं बल्कि जनता के लिए वास्तविक ताकत का साधन है। “अगर नागरिकों को जानकारी नहीं दी जाएगी, तो सरकारी कार्यों में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। इसलिए नगर पंचायत नरैनी और PWD बांदा को तुरंत जवाबदेही दिखानी चाहिए।”
क्या होगा अब?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि एडीएम बांदा और अधीक्षण अभियंता PWD बांदा समय पर अपीलकर्ता को सूचना उपलब्ध कराते हैं या नहीं। यदि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी भी जानकारी नहीं देते हैं, तो समाजसेवी राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाएंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में सूचना का अधिकार अधिनियम का पालन न करना गंभीर मामला है और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
नगर पंचायत नरैनी और PWD बांदा का यह रवैया दिखाता है कि सरकारी संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही को अभी भी गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
सूचना का अधिकार अधिनियम का मूल उद्देश्य ही जनता को सरकारी कार्यों की जानकारी देना और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करना है। अगर नागरिकों को समय पर जानकारी न मिले, तो यह न केवल लोकतंत्र के लिए खतरा है बल्कि जनता का भरोसा भी डगमगा सकता है।
सोनू करवरिया जैसे समाजसेवी इन मुद्दों को उठाकर नागरिक अधिकारों की रक्षा कर रहे हैं और यह देखना महत्वपूर्ण है कि प्रशासन इस पर क्या कदम उठाता है।
