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November 22, 2024 8:16 pm

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ये ‘जाति’ है कि ‘जाती’ नहीं फिर यहाँ से कहाँ चली जाएगी…….?

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नवीन कृष्ण
बिहार में जब जातिगत सर्वे के नतीजे आने वाले थे उसी दौरान फरीदाबाद में बिहार के 17 साल के किशोर अजय यादव की हत्या कर दी गई। अजय बिहार के सुपौल जिले के थे और फरीदाबाद में उनकी मां रोड किनारे सब्जी बेचती थी। मां ने एक सूदखोर से ब्याज पर आठ हजार रुपये लिए थे। इसे लेकर विवाद हुआ, बहस हुई और आरोप है कि इसके पांच-छह दिनों बाद 20 सितंबर की शाम सूदखोर ने अजय की गोली मारकर हत्या कर दी। इस घटना के करीब 10 दिन बाद जातीय सर्वे के नतीजे आए थे। यादवों की आबादी प्रदेश में सबसे अधिक 14 फीसदी बताई गई थी।

10 अक्टूबर की रात दिल्ली के महिपालपुर में एक कैब ड्राइवर की नृशंस तरीके से हत्या कर दी गई। कैब ड्राइवर बिजेंद्र शाह 1996 में बिहार के मोतिहारी जिले से दिल्ली आए थे। कैब लुटेरों ने उनकी हत्या कर दी। जातीय सर्वे के नतीजे बताते हैं कि ओबीसी बिहार में सबसे बड़ा जातीय समूह है।

इस बीच, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि जाति आधारित गणना के आधार पर आरक्षण के दायरे में विस्तार या कोई अन्य फैसला सभी दलों की सहमति से लिया जाएगा। यह भी कहा कि इससे जुड़ी सभी जानकारी सदन के पटल पर रखी जाएगी।

बिहार सरकार में शामिल दलों को यकीन है कि इस सर्वे से जातियों के उत्थान की योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। बिहार में लंबे समय तक या तो कांग्रेस की सरकार रही है या लालू-नीतीश ने सरकार का नेतृत्व किया है। राजद-जेडीयू और कांग्रेस इन तीनों दलों की निगाह मे जातीय सर्वे बहुत महत्वपूर्ण है और उनका मानना है कि इससे उनके उत्थान की योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी।

1996 में बिजेंद्र शाह बिहार से दिल्ली पहुंचे थे, रोजी-रोटी की तलाश में। रोजगार क्या मिला, रिक्शा चलाने का। यह वह दौर था जब लालू यादव पिछड़ा उत्थान की दुहाई देते हुए दोबारा मुख्यमंत्री बन चुके थे। 1994 के अंत में उन्होंने पटना के गांधी मैदान में विशाल गरीब रैली आयोजित कर पिछड़ों के बीच अपनी लोकप्रियता दिखाई थी। पहले मुख्यमंत्रित्व काल में वह चरवाहा विद्यालय समेत कई कथित कल्याणकारी योजनाएं चला चुके थे। उस समय तक पिछड़ा वोट पर कब्जे की चाहत में नीतीश कुमार लालू यादव से अलग होकर समता पार्टी बना चुके थे। बाद में जब नीतीश सीएम बने तो पिछड़ों में अति पिछड़ा, दलितों में महादलित और मुसलमानों में पसमांदा का नारा लेकर आए थे।

दो दिन पहले 11 अक्टूबर को जेपी की जयंती थी। उस जेपी की जिन्होंने जातिविहीन समाज की कल्पना की थी। उन्होंने युवाओं से अपना जातिगत सरनेम हटाने की अपील की थी। कई लोगों ने इस पर अमल भी किया। जो लोग उन दिनों संघर्ष वाहिनी में शामिल थे, उनके लिए तो जातिसूचक सरनेम हटाना अनिवार्य था। जब उन्हीं जेपी के राजनीतिक शिष्य लालू-नीतीश बिहार में सत्ता में हैं तो वहां जातीय सर्वे सरकारी खर्च पर हुआ है।

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर बिहार में अपने जन सुराज संपर्क अभियान में इस मसले पर भी बोलते हैं। वह कहते हैं कि लालू यादव जाति की नहीं, बल्कि परिवार की राजनीति करते हैं। बकौल प्रशांत किशोर, लालू यादव यह कभी नहीं कहते कि उनकी जाति में जो सबसे काबिल युवा हो वह सीएम बने और पूरी जाति के लोग उसे वोट करें। इसके बजाय वह यह कहते हैं कि उनका लड़का सीएम बनेगा और तमाम स्वजातीय लोग इसके लिए वोट करें।

इस सर्वे के नतीजे पर विवाद भी शुरू हो गया है। जेडी यू के एक प्रदेश महासचिव सोशल मीडिया पर दावे कर रहे हैं कि उनकी जाति के लोगों की संख्या अधिक है लेकिन सर्वे में उसे कम दिखाया गया है।

बिहार की राजनीति को देखें तो बीजेपी की कोशिश होगी कि हिंदू एक हों। दूसरी तरफ, I.N.D.I.A. गठबंधन की कोशिश होगी कि जातियों का मसला गरम रहे। दोनों को इसमें अपना फायदा दिखता है। बिहार में बीजेपी के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जिसे वह सीएम के तौर पर प्रस्तुत कर सके। करीब एक साल पहले बिहार के प्रवेश द्वार बक्सर में बड़ा यज्ञ हुआ था। आयोजकों के नाम पर संदेह रहा, लेकिन उसमें बीजेपी के तमाम बड़े नेता और केंद्र के मंत्री तक शामिल हुए। इसे हिंदू समाज की गोलबंदी के तौर पर देखा गया। इसके तुरंत बाद मुजफ्फरपुर की कुढ़नी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी की जीत से इस बात को और बल मिला था कि बीजेपी बिना चेहरे के भी इस फॉर्म्युले पर बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर सकती है।

विकास के लिए जातिगत सर्वे की क्यों जरूरत है? क्या सड़क जाति के हिसाब से बनेगी? क्या स्कूल-कॉलेज जाति के हिसाब से खोले जाएंगे? अगर आरक्षण देने के लिए जातिगत सर्वे हुआ है तो उसे विकास का कवर चढ़ाकर बताना क्यों जरूरी है? दैनिक मजदूरी करने के लिए, रिक्शा चलाने के लिए, रेहड़ी-पटरी पर सब्जी बेचने के लिए, पांच हजार-दस हजार रुपये की नौकरी के लिए जब बिहार के युवाओं का पलायन थम नहीं रहा है तो सरकार जातीय सर्वे करवाकर कैसे विकास करवा लेगी? सरकार सिर्फ इतना ही बताए कि युवाओं का प्रदेश से पलायन रोकने का उसके पास क्या प्लान है? देश भर में रोजाना अपमानित हो रहे बिहारी शब्द के सम्मान के लिए भी सरकार कोई सर्वे करवाएगी क्या? (साभार)

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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