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देवरिया

भाषा की गुलामी: हस्ब ख्वाहिश, मामूर, हश्म हुलिया,अदम तकमीला आदि जैसे शब्दों के मायने एफ आई आर दर्ज करने वाली पुलिस जानती है क्या?

सर्वेश द्विवेदी और इरफान अली लारी की रिपोर्ट  

देवरियाः आजादी के 75 साल बाद भी पुलिस दस्तावेजों में बरकरार रहते हैं अरबी, फारसी और उर्दू के कठिन शब्द। भारतीय पुलिसकर्मियों के दस्तावेज़ों में अंग्रेजी के अलावा अरबी, फारसी और उर्दू भाषा के शब्द प्रयोग का अनुभव देखा जा सकता है। यह एक पुरानी परंपरा है जो अंग्रेजों की शासनकाल के समय आरंभ हुई थी, जब वे अपनी भाषा को प्रशासनिक और कानूनी मामलों में उपयोग करते थे।

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इन भाषाओं के शब्दों का प्रयोग विशेष रूप से वकीलों, कोर्टों, विभिन्न कानूनी दस्तावेज़ों और कानूनी प्रक्रियाओं में होता है। हालांकि, इन शब्दों का अर्थ आधिकारिक पुलिसकर्मियों को भी समझने में कठिनाई होती है। इसके कारण, पुलिसकर्मियों को इन शब्दों के उचित अर्थ को समझने के लिए अधिक संप्रेमित करना चाहिए ताकि वे अपने कार्यों को संभाल सकें।

यह समस्या कई जिलों में देखी जा सकती है, जहां नई पीढ़ी के पुलिसकर्मियों को इन भाषाओं के शब्दों की समझ करने में कठिनाई होती है। देवरिया जिला एक उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है और यहां पुलिसकर्मियों को अंग्रेजी के अलावा अरबी, फारसी और उर्दू भाषा के शब्दों की समझ में कठिनाई होती है। देवरिया जिले में तैनात नई पीढ़ी के पुलिसकर्मियों के लिए यह शब्दों का प्रयोग काफी मुश्किल खड़ा कर रहा है।

इस समस्या को हल करने के लिए, पुलिस विभाग को अपनी ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल करके विभिन्न भाषाओं के शब्दों की जानकारी प्रदान की जाती है। पुलिसकर्मियों को इन भाषाओं के शब्दों का उचित अर्थ समझाने और उनका प्रयोग संबंधित स्थितियों में करने की जरूरत होती है। इसके अलावा, नवीनतम तकनीकी साधनों का उपयोग करके भाषा समस्याओं को सुलझाने के लिए संगठनों ने प्रयास किए हैं। उदाहरण के लिए, अनुवाद सॉफ़्टवेयर और डिक्शनरी का उपयोग किया जा सकता है ताकि पुलिसकर्मी शब्दों के अर्थ की समझ कर सकें।

इन शब्दों का ज्यादा होता है इस्तेमाल

‘पुलिस गश्त में मामूर थी। तभी जरिए मुखबिर मालूम हुआ कि एक नफर अभियुक्त मयमाल मौजूद है। इस पर हमरान सिपाहियान संग दबिश देकर उसे पकड़ा गया है। उसका हश्म हुलिया जैल है। रूबरू संतरी प्रहरी जामा तलाशी ली गई (पहरे पर मौजूद संतरी के सामने उसके कपड़ों की पूरी तलाशी ली गई)।जिस्म जरवात पाक-साफ व ताजा है (शरीर साफ-सुथरा है और कहीं भी ताजा चोट के निशान नहीं हैं)। हस्ब ख्वाहिश खुराक पूछी गई, गमे गिरफ्तारी खुराक खाने से मुनकिर है (मुलजिम से खाने के बारे में पूछा गया, गिरफ्तारी से दुखी होकर होकर खाना खाने से इंकार किया)।’

इन शब्दों का अर्थ न तो एफआइआर लिखने वाला जानता है और न लिखवाने वाला

चिक खुराक – थाने पर आरोपित के खाने पर हुआ खर्च

नकल रपट – किसी लेख की नकल

नकल चिक – एफआइआर की प्रति

मौका मुरत्तिब – घटनास्थल पर की गई कार्रवाई

बाइस्तवा – शक, संदेह,

तरमीम – बदलाव करना अथवा बदलना

चस्पा – चिपकाना

जरे खुराक – खाने का पैसा

जामा तलाशी- वस्त्रों की छानबीन,

बयान तहरीर – लिखित कथन

नक्शे अमन- शांतिभंग

माल मसरूका- लूटी अथवा चोरी गई संपत्ति,

मजरूब- पीड़ित,

मुजामत- झगड़ा

मुचलका- व्यक्तिगत पत्र

रोजनामचा आम- सामान्य दैनिक

रोजनामचा खास- अपराध दैनिक

सफीना – बुलावा पत्र

हाजा – स्थान अथवा परिसर

अदम तामील- सूचित न होना

अदम तकमीला- अंकन न होना

अदम मौजूदगी – बिना उपस्थिति

अहकाम- महत्वपूर्ण

गोस्वारा – नक्शा

1861 में किया गया था पुलिस का गठन, तब से चलन में है यही शब्दावली

जानकारों के मुताबिक सन् 1861 में अंग्रेजों ने भारत में पुलिस अधिनियम लागू कर पुलिस प्रणाली का गठन किया था। उस समय हिंदी भाषी राज्यों में मुगलिया प्रभाव के चलते बोलचाल की भाषा में उर्दू, अरबी और फारसी शब्दों का खूब प्रयोग किया जाता था। इस मिलीजुली भाषा को अंग्रेजों ने सरकारी दस्तावेजों में लिखापढ़ी की भाषा के तौर पर इस्तेमाल किया। आजादी के 75 साल बाद अन्य विभागों ने तो अपनी भाषा बदल ली। मगर पुलिस अभी भी दस्तावेजों की लिखा पढ़ी में परंपरागत तौर पर अंग्रेजों की उसी भाषा का इस्तेमाल करती है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने भाषा को सरल बनाने का दिया था निर्देश

पुलिस विभाग और कानून के जानकारों के मुताबिक करीब तीन साल पहले एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने भी पुलिस की इस शब्दावली पर सवाल खड़े किए थे और कामकाज की भाषा को सहज और सरल बनाने का निर्देश दिया था। लेकिन इसकी कोई सार्थक पहल आज तक नहीं हुई। सिर्फ पुलिस विभाग में ही नहीं बल्कि कचहरी के कामकाज में भी इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल होता है। यही वजह है कि बहुत पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी कचहरी से संबंधित दस्तावेजों को न तो लिख सकता है और न ही लिखे हुए समझ सकता है।

अनुवादकों की भर्ती भी बंद

पुलिस विभाग को डिजिटल करने के लिए वर्ष 2016 में सीसीटीएनएस (क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग सिस्टम) लागू किया गया। इसके तहत की हुई भर्ती के बाद उम्मीद जगी कि महकमे में फारसी व उर्दू के भाषा के साथ हिन्दी को भी तवज्जो मिलेगी। मगर कुछ नया नहीं हो सका और भर्ती हुए युवा भी पुलिस की पुरानी परिपाटी पर चलते हुए फ़ारसी व उर्दू के शब्दों का ही प्रयोग करने लगे। एफआइआर व जीडी ऑनलाइन होने के बाद भी एफआइआर में फ़ारसी व उर्दू के शब्दों का ही प्रयोग होता है। जिनका अर्थ न तो एफआइआर लिखने वाला जानता है और न लिखवाने वाला।पुलिस विभाग में पहले उर्दू भाषा को पढ़ने के लिए अनुवादक की भर्ती हुआ करती थी। जिसकी अंतिम भर्ती वर्ष 1995 में की गई । उसके बाद भाषा सुधार के नाम पर 1996 से उर्दू अनुवादक की भर्ती नहीं की गई।

अवकाश प्राप्त पुलिस उपमहानिरीक्षक डॉक्टर श्रीपति मिश्र कहते हैं कि पुलिस महकमे में अरबी ,फारसी या उर्दू भाषा के प्रयोग का लिखित तौर पर कोई निर्देश नहीं है। मगर पहले से चले आ रहे शब्दों को परिपाटी के तौर पर आज भी इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बात सही है कि कठिन शब्दों की जगह सरल भाषा का प्रयोग होना चाहिए ।जिसे सभी लोग आसानी से समझ सके। इसके लिए सार्थक पहल करनी होगी।

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