दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
कानपुर। खून का दरिया बहे दो साल बीत गए। गोलियों की गूंज, बारूद की गंध, सन्नाटा चीरती बूटों की आवाज और दर-दर कुंडी खटखटाती पुलिस….। अब ऐसा कुछ भी नहीं बचा लेकिन बिकरू के बच्चों के जेहन में वह सब आज भी जिंदा है। गंगा में कितना ही पानी बह जाए, कुछ दु:स्वप्न भुलाए नहीं भूलते।
पता चला कि दो जुलाई 2020 की वह खौफनाक रात बच्चों के जेहन में पूरी कालिमा के साथ अभी जिंदा है। इन बच्चों ने विकास के जिंदा रहे आए दिन फायरिंग, मारपीट, चीखपुकार सुनी थी। कांड के बाद इन नन्हीं आंखों ने लाशें देखीं। फिर बुलडोजर से धराशायी होती खूनी कोठी देखी। गांव का घर-घर खंगालती, मारती-पीटती पुलिस देखी। और अब वे गांव में शांति के गवाह हैं। यह शांति भी उन्हें डराती है।
बच्चों को उनके माता-पिता किसी बाहरी से बात करने से रोकते हैं। प्रधान पति संजय कुमार साथ आए, तभी कुछ बच्चे बात करने को तैयार हुए। इनमें से कृष्णा तब आठ साल का था। उसने कहा, ‘जब पंडित जी जिंदा रहैं तब रोजै गोली चलती रहीं। हम पंचै छतन मा चढिके देखित रहै। 12 साल के हिमांशु न बहुत कुरेदने पर कहा- जब पंडित जी (विकास दुबे) गांव में रहते थे, हमें घरवाले बाहर निकलने से मना कर देते थे। अब कोई रोकता नहीं। नैतिक (11), सृष्टि (13), दीपिका (15), शीतल (12) और अखिल (11) ने बताया कि गांव में बहुत बदलाव आ गया है। अब झगड़ा नहीं होता।
परिजन कहते हैं कि भरी दोपहर भी कोई जोर से कुंडी खटका दे तो बच्चे चौंक जाते हैं। उन्होंने दो साल पहले के सावन में जो खून-खराबा फिर पुलिस का जो रूप देखा था, उसकी यादें उनके मन से निकल नहीं सकी हैं। पुलिस गश्त करने आती है तो ये सहम जाते हैं।
ये दहशत न केवल विकास दुबे की है बल्कि बिकरू के लोग अब पुलिस से भी डरते हैं। डर इस कदर है कि मुफलिसी में जीने वाले लोगों ने भी सीसीटीवी लगवा लिए हैं। ग्रामीणों में इस बात का डर अब भी बना है कि भविष्य में कोई आएगा, जो विकास दुबे के जैसा अपना वर्चस्व स्थापित करेगा। ग्रामीणों से बातचीत के दौरान साफ तौर पर देखने को मिला। हाल ये है कि आज भी कुछ लोग इस मुद्दे पर बात करने को तैयार नहीं है।
विकास के परिवार से फिर आएगा कोई
बिकरू की प्रधान मधू के पति संजय कुमार के अनुसार बिकरू में लोग दहशत में हैं। उन्हें लगता है कि फिर से विकास दुबे के परिवार से कोई आएगा और यहां पर अपना वर्चस्व कायम कर लेगा। मेरे द्वारा गांव में साफ सफाई कराई जाती है। एक पंचायत भवन है जिसमें विकास दुबे का कब्जा था। लगातार लिखापढ़ी के बाद भी वह वापस नहीं लिया जा सका है। वह अगर मिल जाए तो वहां पर आंगनबाड़ी केन्द्र खुलवाया जा सकता है। गांव में अमन और शांति बनी रहे इसके लिए पूरा प्रयास किया जा रहा है।
बिकरू गांव से बाहर पुलिस चौकी बनने के बाद प्रतिदिन रात में चौबेपुर पुलिस बिकरू में गश्त के लिए जाती है। पुलिस की गाड़ियों की आवाज सुनकर ग्रामीण सहम जाते हैं उन्हें लगता है कि पुलिस किसी को उठाने आई है। ऐसे में कुछ ग्रामीणों ने अपने घरों के बाहर सीसी टीवी कैमरे लगवा लिए हैं। जिससे पुलिस की कोई भी कार्रवाई उसमे कैद हो जाए।
विकास दुबे की पत्नी ऋचा दुबे भी गांव में कुछ लोगों के सम्पर्क में है। वह परिवार के कुछ लोगों से भी बात करती है। शिवली तक उसका आना जाना भी है। ग्रामीणों के मुताबिक वह अपनी सम्पत्तियों पर मालिकाना हक को लेकर लड़ाई लड़ रही है।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."