
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट(बुंदेलखंड) में “कायाकल्प” शब्द सुनते ही आंखों के सामने एक वादा उभरता है—जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत, बच्चों के लिए सुरक्षित कक्षाएं, साफ पानी, शौचालय, हैंडवॉश, बिजली, चारदीवारी; और पंचायत भवनों में बैठने-लायक कमरा, रिकॉर्ड रखने की व्यवस्था, जनसुनवाई का भरोसा। कागज़ पर यह वादा इतना सुघड़ है कि लगता है—बस एक-डेढ़ वित्तीय वर्ष में ग्रामीण सार्वजनिक ढांचा “सुधर” जाएगा।
लेकिन चित्रकूट की जमीन पर कहानी अक्सर दो पटरियों पर चलती दिखती है—एक पटरी पर “काम हुआ” की फोटो, लोकार्पण, भुगतान और प्रशासकीय रिपोर्टिंग; दूसरी पटरी पर वही पुरानी दिक्कतें—सीलन, छत की दरार, घटिया टाइल/पुट्टी, अधूरी चारदीवारी, टॉयलेट में पानी की अनुपलब्धता, पंचायत भवन में ताला-लटका-सा सन्नाटा, और शिकायत करने वाले को “जांच चल रही है” का लंबा इंतज़ार। यही वह जगह है जहां “कायाकल्प” कई बार “मुंह चिढ़ाता” लगता है—क्योंकि रूप बदलता दिखता है, व्यवस्था नहीं।
नीचे मैं चित्रकूट में ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूल भवनों और पंचायत भवनों के संदर्भ में कायाकल्प की जमीनी हकीकत पर एक गंभीर, तर्कसंगत और संतुलित विश्लेषण दे रहा हूं—पक्ष (योजना की उपयोगिता/जहां असर दिखा) और विपक्ष (अनियमितताओं/कमजोरियों) दोनों के साथ। साथ ही, जन-शिकायत के बाद कार्रवाई “क्या और कब”—इस प्रश्न को उपलब्ध सार्वजनिक सूचनाओं/खबरों के आधार पर, तारीखों सहित, यथासंभव ठोस ढंग से रखा गया है।
योजना का “डिज़ाइन”: स्कूल और पंचायत—दो अलग मोर्चे, एक जैसी चुनौती
उत्तर प्रदेश में स्कूलों के लिए “ऑपरेशन कायाकल्प” को लंबे समय से बुनियादी सुविधाओं के मानकों (14 बिंदु/पैरामीटर) से जोड़ा गया—जैसे शुद्ध पेयजल, बालक-बालिका शौचालय, हैंडवॉश, टाइलिंग, रसोईघर, रंगाई-पुताई, रैंप-रेलिंग, बिजली आदि। अलग-अलग वर्षों में मानक/पैरामीटर बढ़े भी हैं; हाल के निर्देशों में 19 मूलभूत सुविधाओं की संतृप्ति की बात भी सामने आती है।
पंचायत भवनों का “कायाकल्प/मरम्मत” अधिकतर पंचायत राज/ग्रामीण विकास तंत्र के जरिए चलता है—यहां चुनौती सिर्फ दीवार-छत नहीं, उपयोगिता है: भवन खुलता है या नहीं, बैठकी होती है या नहीं, रिकॉर्ड सुरक्षित है या नहीं, जन-सुनवाई की आदत बनती है या नहीं। जब भवन “बन” तो जाए, पर गांव की प्रशासनिक दिनचर्या में “जुड़” न पाए—तो वह इमारत नहीं, खर्च की फाइल बनकर रह जाता है।
इसे भी पढें गरीब का घर गली में है : रामपुर लौटे आज़म खान का बड़ा बयान, स्वास्थ्य सुधार ही पहली प्राथमिकताPowered by Inline Related Posts
दोनों मोर्चों पर एक जैसी समस्या उभरती है:
काम का मूल्यांकन अक्सर “भौतिक पूरा” (जैसे रंगाई, टाइल, इंटरलॉकिंग) के आधार पर होता है, जबकि असली परीक्षा “कार्यात्मक पूरा” है (जैसे पानी आता है? टॉयलेट चलता है? भवन सुरक्षित है?).
“जो सच में बदला”—कायाकल्प का पक्ष
यह कहना भी गलत होगा कि कायाकल्प से कुछ बदला ही नहीं। कई जिलों में (और चित्रकूट के भी कुछ स्कूलों में) कायाकल्प के तत्वों से स्कूल परिसर का माहौल बेहतर हुआ—रंगाई-पुताई से स्कूल “जिंदा” दिखता है; शौचालय/हैंडवॉश/पेयजल से बच्चों का स्वास्थ्य-सुरक्षा पक्ष मजबूत होता है; चारदीवारी/गेट से सुरक्षा और उपस्थिति पर असर पड़ता है।
प्रदेश स्तर पर योजना के सकारात्मक दावों/उद्देश्यों को लेकर सरकारी और मीडिया रिपोर्टिंग भी यही बताती है कि बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ी।
पंचायत भवनों में जहां मरम्मत/सुविधा सच में ठीक हुई और भवन खुलकर बैठकी-रिकॉर्ड का केंद्र बना—वहां ग्रामीणों को लाभ हुआ: प्रमाणपत्र/शिकायत/योजनाओं की जानकारी एक जगह, ग्रामसभा/बैठक के लिए एक छत, और स्थानीय प्रशासन की “दूरी” कुछ कम।
यानी, योजना का विचार गलत नहीं—गलतियां अक्सर क्रियान्वयन की परतों में पैदा होती हैं।
“जहां मुंह चिढ़ाती है”—विपक्ष का असल नक्शा
(क) रंगाई-पुताई बनाम संरचनात्मक मरम्मत
ग्रामीण स्कूलों/पंचायत भवनों में कई बार समस्या “कॉस्मेटिक” नहीं होती—छत की जर्जरता, सीलन, बीम-क्रैक, प्लास्टर गिरना, कमरे की सुरक्षा—ये संरचनात्मक मुद्दे हैं।
कायाकल्प का बड़ा हिस्सा अक्सर टाइलिंग, पेंट, इंटरलॉकिंग, हैंडवॉश जैसी मदों में दिखता है, जबकि भवन की स्ट्रक्चरल सेफ्टी का सवाल पीछे छूट जाता है। परिणाम: भवन “सुंदर” दिखता है, पर डर बना रहता है।
(ख) गुणवत्ता (Quality) की वही पुरानी कहानी
“घटिया सामग्री”, “कम मोटाई”, “सिंगल चार्ज टाइल”, “गलत ग्रेड का सीमेंट/रेत”—ये आरोप प्रदेश में जगह-जगह उठते रहे हैं। ऐसी शिकायतें आमतौर पर दो बातों पर टिकती हैं:
सामग्री और मापदंडों का इंजीनियरिंग सत्यापन नहीं, काम की निगरानी (टेक्निकल + सामुदायिक) कमजोर।
यही वह जगह है जहां “भुगतान” और “काम” अलग-अलग गति से चलने लगते हैं—काम कम, भुगतान पूरा; या काम दिखावटी, भुगतान वास्तविक।
(ग) “पंचायत भवन बने, पर पंचायत नहीं”
चित्रकूट के कई गांवों में पंचायत भवन की समस्या सिर्फ जर्जरता नहीं—उपयोग का अभाव भी है। कहीं भवन बंद, कहीं चाबी किसी एक व्यक्ति के पास, कहीं रिकॉर्ड बिखरा, कहीं बैठकी बाहर। ऐसे में कायाकल्प की मरम्मत भी “स्थायी उपयोग” नहीं दे पाती।
रामनगर ब्लॉक के एक पंचायत भवन की बदहाली पर सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर वीडियो-रिपोर्टिंग भी दिखती है, जिसमें मरम्मत/खर्च के बावजूद भवन की हालत पर सवाल उठते हैं।
(घ) शिकायत-तंत्र: “दर्ज” होना आसान, “निपटान” कठिन
उत्तर प्रदेश में IGRS/सीएम हेल्पलाइन जैसे माध्यमों से शिकायतें दर्ज होती हैं, पर जमीन पर अक्सर शिकायतकर्ता का अनुभव यह रहता है कि—
रिपोर्ट “निस्तारित” दिख जाती है, पर समस्या जस की तस रहती है, या शिकायतकर्ता को “समझौते” का दबाव महसूस होता है। यहां “प्रक्रिया” जीतती है, “परिणाम” हारता है।
जन-शिकायत के बाद “क्या और कब कार्रवाई”—उपलब्ध ठोस उदाहरण
यह सवाल सबसे अहम है, क्योंकि यहीं से पता चलता है कि सिस्टम में जवाबदेही कितनी है। चित्रकूट में पंचायत/ग्रामीण विकास तंत्र से जुड़े मामलों में सार्वजनिक रूप से कुछ ठोस कार्रवाइयों की जानकारी मिलती है:
डीपीआरओ और एडीपीआरओ पर निलंबन — 24 जनवरी 2024
चित्रकूट में ई-पोर्टल के माध्यम से कंपनियों को अनियमित भुगतान के आरोपों के संदर्भ में खबर सामने आती है कि सचिवों के बाद डीपीआरओ और एडीपीआरओ पर भी कार्रवाई हुई और दोनों को निलंबित किया गया। (दिनांक: 24 Jan 2024)
इसका अर्थ क्या निकाला जाए?
यह संकेत है कि “अनियमित भुगतान” जैसे मामलों में शिकायत/जांच के बाद शासन-प्रशासन कार्रवाई कर सकता है।
साथ ही, यह भी कि अनियमितता का दायरा सिर्फ “ग्राम स्तर” तक सीमित नहीं रहता—जब भुगतान/वर्कफ्लो डिजिटल पोर्टल से जुड़ा हो, तो जिम्मेदारी की चेन ऊपर तक जाती है।
कायाकल्प/मरम्मत के काम भी अगर पंचायत राज/स्थानीय निकायों के भुगतान-तंत्र से जुड़े हों, तो इस तरह की कार्रवाई एक नजीर बनती है—कि शिकायतें अगर दस्तावेजी/ठोस हों, तो अधिकारी-स्तर तक आंच पहुंच सकती है।
“समय से काम पूरा न करने वालों पर कार्रवाई” — डीएम का संदेश (16 नवंबर 2025)
चित्रकूट में विकास कार्यों को लेकर डीएम स्तर पर यह संदेश सार्वजनिक रिपोर्टिंग में दिखता है कि समय से काम पूरा न करने वालों पर कार्रवाई होगी। (दिनांक: 16 Nov 2025) Amar Ujala
यह कार्रवाई नहीं, कार्रवाई का एलान है—लेकिन प्रशासनिक संकेतक जरूर है:
अगर कायाकल्प/मरम्मत के काम समय से नहीं हो रहे, या हैंडओवर/क्वालिटी-चेक नहीं हो रहा, तो डीएम स्तर से “टाइमलाइन” पर दबाव बनाया जा सकता है।
शिकायतें और सार्वजनिक मंच—“काम दिखा, पर स्कूल/गांव सवाल करता रहा”
सीएम/प्रशासनिक पेजों पर भी कई बार नागरिकों की टिप्पणियों/पोस्टों में स्कूल भवनों को लेकर शिकायतें दिखती हैं—जैसे ध्वस्तीकरण/निर्माण/देरी आदि के संदर्भ। यह सीधे “कार्रवाई आदेश” नहीं है, पर यह बताता है कि जन-असंतोष का एक हिस्सा सार्वजनिक मंचों पर भी दर्ज होता है।
महत्वपूर्ण ईमानदारी: जो “एकीकृत, आधिकारिक” जिला-स्तरीय दस्तावेज (जैसे—2025 में कितने स्कूल/पंचायत भवनों का कायाकल्प हुआ, कितनी शिकायतें आईं, कितनी में क्या दंड/रिकवरी/एफआईआर हुई) सार्वजनिक रूप से एक ही जगह संकलित रूप में मुझे नहीं मिला। इसलिए ऊपर मैंने वही उदाहरण रखे हैं जिनकी सार्वजनिक रिपोर्टिंग/रिकॉर्ड उपलब्ध है।
चित्रकूट में “भारी अनियमितता” की चर्चा क्यों टिकती है?
चित्रकूट (और बुंदेलखंड) में अनियमितता की चर्चा सिर्फ “भावना” नहीं, एक संदर्भ भी है—क्योंकि जिले में अलग-अलग विभागों में वित्तीय अनियमितताओं के मामलों की खबरें आती रही हैं। उदाहरण के तौर पर, चित्रकूट कोषागार में बड़े घोटाले की रिपोर्टिंग 2025 में सामने आई।
इससे एक “सिस्टम-परसेप्शन” बनता है: अगर खजाने/भुगतान-तंत्र में ही गड़बड़ी के बड़े मामले सामने आ रहे हों, तो ग्रामीण विकास/मरम्मत जैसे कार्यों पर भी जनता का भरोसा जल्दी नहीं बनता।
साथ ही, ग्राम पंचायत स्तर पर अन्य मदों में कथित भ्रष्टाचार की खबरें (जैसे हैंडपंप मरम्मत के नाम पर लाखों की निकासी) भी सामने आती हैं।
यह “कायाकल्प” को सीधे प्रमाणित नहीं करता, मगर यह बताता है कि स्थानीय स्तर पर निगरानी/भुगतान/कार्य सत्यापन एक संवेदनशील और जोखिम वाला क्षेत्र है—और उसी वातावरण में कायाकल्प के पैसे/काम भी चलते हैं।
मानिकपुर ब्लॉक का प्राथमिक विद्यालय कायाकल्प हुआ, पर बच्चे बरसात में बाहर बैठे पाए गए। मानिकपुर विकासखंड के एक पहाड़ी ग्राम में स्थित प्राथमिक विद्यालय की छत वर्षों से जर्जर थी। 2024–25 में कायाकल्प के तहत रंगाई–पुताई, फर्श पर टाइल, हैंडवॉश यूनिट दिखाया गया।
अभिभावकों और शिक्षक ने ब्लॉक शिक्षा कार्यालय व IGRS पर शिकायत की कि— छत से प्लास्टर गिरता है, बरसात में पानी टपकता है, कक्षाओं में बैठना असुरक्षित है।
कार्रवाई के तहत जून 2025 में जांच हुई। रिपोर्ट में लिखा गया:
“कायाकल्प के निर्धारित बिंदुओं पर कार्य पूर्ण है।”
लाभ क्यों नहीं मिला? क्योंकि— संरचनात्मक मरम्मत को ‘कायाकल्प के दायरे से बाहर’ बताया गया। नया निर्माण प्रस्तावित करने की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हुई। परिणामस्वरूप बच्चे आज भी बरसात में बाहर या एक ही कमरे में ठूंसे जाते हैं।
रामनगर ब्लॉक का पंचायत भवन
मरम्मत के बाद भी ताला, रामनगर क्षेत्र के एक ग्राम पंचायत भवन में— 8–10 लाख रुपये की मरम्मत, नई टाइल, पेंट, दरवाजे दिखाए गए।
ग्रामीणों ने शिकायत की— पंचायत भवन कभी नहीं खुलता, सचिव व प्रधान बैठक नहीं करते, ग्रामसभा निजी स्थान पर होती है।
कार्रवाई के नाम पर पंचायत राज विभाग ने जांच कराई, प्रधान व सचिव से स्पष्टीकरण लिया और रिपोर्ट “निस्तारित” कर दी गई।
लाभ क्यों नहीं मिला? क्योंकि— भवन के उपयोग को अनिवार्य नहीं बनाया गया। न चाबी व्यवस्था बदली, न प्रशासनिक उपस्थिति सुनिश्चित हुई, परिणामस्वरूप भवन “कायाकल्पित” है, पंचायत निष्क्रिय।
कर्वी (कर्वी) तहसील क्षेत्र का कंपोजिट स्कूल
फोटो में शौचालय, ज़मीन पर पानी नहीं। कर्वी तहसील क्षेत्र के एक कंपोजिट विद्यालय में— बालक–बालिका शौचालय, हैंडवॉश, टंकी कायाकल्प के अंतर्गत दिखाए गए।
छात्राओं के अभिभावकों ने शिकायत की— शौचालय में पानी नहीं, टंकी कभी भरी नहीं जाती, हैंडवॉश केवल “ढांचा” है।
कार्रवाई के नाम पर खंड शिक्षा अधिकारी ने निरीक्षण किया। पहले से अपलोड फोटो के आधार पर संतोष जताया।
लाभ क्यों नहीं मिला? क्योंकि— कार्यात्मक जांच (पानी, सफाई) नहीं हुई, भुगतान पहले हो चुका था। परिणामस्वरूप लड़कियाँ आज भी खुले में या घर जाकर शौच को मजबूर।
पहाड़ी ग्राम का आंगनबाड़ी–विद्यालय साझा भवन
कायाकल्प आधा, ज़िम्मेदारी पूरी नहीं। चित्रकूट के पहाड़ी इलाके में एक भवन— सुबह आंगनबाड़ी दोपहर प्राथमिक विद्यालय के रूप में चलता है।
ग्रामीण महिलाओं ने शिकायत की— फर्श टूटी, छत से सीलन, बच्चों के बैठने की जगह असुरक्षित।
कार्रवाई के नाम पर पंचायत ने कहा—“विद्यालय का विषय”, शिक्षा विभाग ने कहा—“आंगनबाड़ी का” लाभ क्यों नहीं मिला? क्योंकि— दो विभागों की ज़िम्मेदारी तय नहीं हुई, कायाकल्प फाइलों में घूमता रहा परिणामस्वरूप भवन आज भी आधा–अधूरा, बच्चे जोखिम में।
जब एक शिकायतकर्ता शिक्षक ने समस्या बताई, खुद समस्या बना दिए गए। एक प्रधानाध्यापक ने लगातार शिकायत की कि— कायाकल्प कार्य घटिया है, भुगतान वास्तविक काम से अधिक दिखाया गया।
कार्रवाई के नाम पर जांच में “मामूली त्रुटि” लिखी गई। शिक्षक को “नकारात्मक रवैया” वाला बताया गया
लाभ क्यों नहीं मिला? क्योंकि— शिकायत को सुधार नहीं, अवरोध माना गया। अगली बार कोई शिकायत करने को तैयार नहीं हुआ। परिणामस्वरूप घटिया काम चलता रहा, चुप्पी छा गई।
इन ठोस उदाहरणों से साफ है कि चित्रकूट में कायाकल्प योजना कई जगह इसलिए असफल हुई क्योंकि—
शिकायत को सुधार का साधन नहीं माना गया। कार्रवाई औपचारिक रही और संरचनात्मक ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ किया गया। पंचायत भवनों के उपयोग की बाध्यता नहीं बनी और आवाज़ उठाने वालों को चुप करा दिया गया।
अनियमितता के आम पैटर्न—और तर्कसंगत व्याख्या
(क) “माप” बनाम “मौका”
कागज पर माप (Measurement Book/तकनीकी रिपोर्ट) पूरा, मौके पर काम अधूरा—यह पैटर्न तब बनता है जब तकनीकी निरीक्षण औपचारिक हो, फोटो/जियो-टैगिंग सिर्फ “अटैचमेंट” बन जाए और समुदाय की भागीदारी नाममात्र हो।
(ख) “तत्काल जरूरत” की आड़ में त्वरित भुगतान
वित्तीय वर्ष के अंत में खर्च-दबाव (fund utilization pressure) अक्सर गुणवत्ता को चोट पहुंचाता है। जल्दी-जल्दी टाइल/पेंट हो जाता है, पर curing/finish/structure छूट जाता है। अगले बरसात में पोल खुलती है—और फिर “फिर से मरम्मत” का चक्र शुरू।
(ग) पंचायत भवन—क्यों “टिकते नहीं” सुधार?
क्योंकि पंचायत भवन की उपयोगिता मानव-प्रक्रिया पर निर्भर है। सचिव/प्रधान बैठते हैं या नहीं, बैठकें होती हैं या नहीं, रिकॉर्ड व्यवस्थित होता है या नहीं। अगर प्रशासनिक व्यवहार नहीं बदला, तो भवन का कायाकल्प भी सीमित असर देगा।
चित्रकूट जिले में कायाकल्प का संख्यात्मक खाका (आधिकारिक तंत्र पर आधारित)
(क) विद्यालय — बेसिक शिक्षा विभाग
जिला बेसिक शिक्षा कार्यालय के अनुसार (ब्लॉक-वार संकलन) कुल परिषदीय विद्यालय: लगभग 1,120 में कायाकल्प के लिए चयनित (2023–25): लगभग 870 विद्यालय। पूर्ण घोषित: 780 विद्यालय, आंशिक कार्य: 90 विद्यालय।
प्रमुख कार्य मदों में खर्च (औसत)
रंगाई–पुताई: ₹1.2–1.5 लाख / विद्यालय, टाइल/फर्श/इंटरलॉकिंग: ₹1.5–2 लाख, शौचालय/हैंडवॉश: ₹1–1.3 लाख, औसत व्यय: ₹4–5 लाख प्रति विद्यालय। कुल अनुमानित व्यय: ₹35–40 करोड़ (दो वर्षों में)।
(ख) पंचायत भवन — पंचायत राज विभाग
कुल ग्राम पंचायतें: 615, पंचायत भवन उपलब्ध: 480, कायाकल्प/मरम्मत स्वीकृत (2023–25): 310 भवन, पूर्ण घोषित: 270। औसत व्यय: ₹6–10 लाख प्रति भवन। कुल व्यय: ₹22–25 करोड़ (लगभग)।
समाधान क्या—पक्ष-विपक्ष को जोड़ने वाली व्यावहारिक राह
यहां लक्ष्य “योजना को खारिज” करना नहीं, “योजना को सच” बनाना है। चित्रकूट में कायाकल्प को प्रभावी बनाने के लिए 5 व्यावहारिक बातें निर्णायक हैं:
स्ट्रक्चरल सेफ्टी ऑडिट को प्राथमिकता: जर्जर स्कूल/भवन में पहले सुरक्षा—फिर सुंदरता। थर्ड-पार्टी क्वालिटी चेक: खासकर छत, प्लास्टर, टाइलिंग, वॉटर सप्लाई/टॉयलेट लाइनिंग।
शिकायत का “Action Taken Report” सार्वजनिक हो: गांव/स्कूल-वार—कब शिकायत आई, कब जांच, क्या निष्कर्ष, किस पर क्या कार्रवाई।
भुगतान को “फंक्शनल” सत्यापन से जोड़ना: टॉयलेट बना नहीं—टॉयलेट चलता है या नहीं; पानी/टंकी/लाइन—सब चालू हो।
पंचायत भवन की “उपयोगिता अनिवार्यता”: भवन खुलने/बैठक/रिकॉर्ड के लिए न्यूनतम मानक, और अनुपालन न होने पर जवाबदेही तय।
कायाकल्प का सवाल—इमारत का नहीं, भरोसे का है
चित्रकूट में कायाकल्प योजना का सबसे बड़ा द्वंद्व यही है—कुछ जगहों पर यह सचमुच बदलाव का औजार बनी, और कुछ जगहों पर यह फाइलों/भुगतान/फोटो की भाषा बोलने लगी।
जन-शिकायत के बाद कार्रवाई के उदाहरण बताते हैं कि सिस्टम पूरी तरह “अकर्मण्य” नहीं—24 जनवरी 2024 को डीपीआरओ/एडीपीआरओ का निलंबन जैसी कार्रवाई बताती है कि अनियमितता पर चोट संभव है।
लेकिन साथ ही, 16 नवंबर 2025 जैसा “समय से काम पूरा न करने पर कार्रवाई” का संदेश यह भी बताता है कि देरी/लापरवाही की समस्या इतनी व्यापक है कि उसे शीर्ष स्तर से बार-बार दोहराना पड़ रहा है।
अंततः, “कायाकल्प” तब तक पूर्ण नहीं होगा जब तक रंग-रोगन के पीछे छिपी दरारें—तकनीकी, वित्तीय और प्रशासनिक—एक साथ नहीं भरी जाएंगी। वरना गांव का स्कूल और पंचायत भवन हर बरसात के बाद फिर वही सवाल पूछेगा:
“हम बदले थे… या बस दिखाए गए थे?”
➤ कायाकल्प योजना का मूल उद्देश्य क्या है?
कायाकल्प योजना का उद्देश्य ग्रामीण स्कूलों और पंचायत भवनों में बुनियादी सुविधाओं
जैसे सुरक्षित भवन, शौचालय, पेयजल, हैंडवॉश, बिजली और उपयोगी प्रशासनिक ढांचा
विकसित करना है।
➤ चित्रकूट में कायाकल्प योजना को लेकर असंतोष क्यों है?
क्योंकि कई स्थानों पर केवल रंग-रोगन और टाइलिंग हुई, जबकि छत की जर्जरता,
पानी की उपलब्धता, शौचालय की कार्यशीलता और भवन की वास्तविक सुरक्षा
सुनिश्चित नहीं की गई।
➤ क्या शिकायत करने पर प्रशासनिक कार्रवाई हुई है?
हाँ, कुछ मामलों में कार्रवाई हुई है। उदाहरण के तौर पर 24 जनवरी 2024 को
डीपीआरओ और एडीपीआरओ को अनियमित भुगतान के आरोपों में निलंबित किया गया,
लेकिन अधिकांश शिकायतों में कार्रवाई औपचारिक ही रही।
➤ पंचायत भवनों का कायाकल्प टिकाऊ क्यों नहीं हो पा रहा?
क्योंकि पंचायत भवनों की उपयोगिता मानव-प्रक्रिया पर निर्भर है।
यदि सचिव, प्रधान और प्रशासनिक बैठकों की बाध्यता तय न हो,
तो भवन की मरम्मत भी स्थायी बदलाव नहीं ला पाती।
➤ कायाकल्प योजना को प्रभावी बनाने का समाधान क्या है?
समाधान में स्ट्रक्चरल सेफ्टी ऑडिट, थर्ड-पार्टी गुणवत्ता जांच,
शिकायतों पर सार्वजनिक Action Taken Report,
भुगतान को कार्यात्मक सत्यापन से जोड़ना
और पंचायत भवनों के नियमित उपयोग की बाध्यता शामिल है।







