पीतल को सोना बताकर ठगते-ठगते मथुरा का ये गांव बन गया साइबर ठगी की ‘यूनिवर्सिटी’?

📝 के के सिंह की रिपोर्ट

पीतल को सोना बताकर ठगते-ठगते मथुरा का ये गांव बन गया साइबर ठगी की ‘यूनिवर्सिटी’?

ब्रजभूमि की पहचान आस्था, भक्ति और परंपरा से रही है, लेकिन समय के साथ मथुरा जनपद के गोवर्धन क्षेत्र के कुछ गांवों में एक समानांतर आपराधिक अर्थव्यवस्था विकसित हो गई है। देवसेरस, मोडसेरस, मंडौरा और नगला मेव जैसे गांव आज साइबर ठगी के बड़े केंद्र के रूप में सामने आ रहे हैं। बीते दो दशकों में यहां ठगी के तौर-तरीकों ने ऐसा रूप ले लिया है कि पुलिस और जांच एजेंसियां भी इसे ‘मिनी जामताड़ा’ कहने लगी हैं।

गुरुवार तड़के मथुरा पुलिस द्वारा की गई बड़ी कार्रवाई ने इस पूरे नेटवर्क को उजागर कर दिया। अहले सुबह जब गांव के लोग नींद में थे, तभी पुलिस ने खेतों की पगडंडियों से गांव को चारों ओर से घेर लिया। इस छापेमारी में करीब 40 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया, जबकि लगभग 120 आरोपी खेतों और कच्चे रास्तों के सहारे फरार हो गए।

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कैसे शुरू हुई ठगी की परंपरा

करीब बीस साल पहले इस गिरोह की पहचान ‘टटलू’ ठगी से होती थी। पीतल को सोना बताकर सस्ते सौदे का लालच दिया जाता, फिर बाहर से आए लोगों को रास्ते में लूट लिया जाता था। कई मामलों में पीड़ितों को बंधक बनाकर परिजनों से फिरौती भी वसूली जाती थी। कारोबारी, बिल्डर और तीर्थयात्री इनके मुख्य निशाने पर रहते थे।

समय के साथ अपराधियों ने अपने तरीके बदले और डिजिटल दुनिया में कदम रखा। बीते एक दशक में यह गिरोह संगठित साइबर फ्रॉड नेटवर्क में बदल गया। फेसबुक और इंस्टाग्राम आईडी हैक करना, बैंक अधिकारी बनकर कॉल करना, ओटीपी हासिल कर खाते खाली करना अब इनके प्रमुख हथकंडे बन चुके हैं।

देवसेरस बना ठगी नेटवर्क का केंद्र

देवसेरस गांव को इस पूरे नेटवर्क का मुख्य संचालन केंद्र माना जाता है। अनुमान है कि गांव की 60 से 70 प्रतिशत आबादी किसी न किसी रूप में ठगी के इस धंधे से जुड़ी रही है। कई युवक गांव से बाहर रहकर साइबर ठगी को अंजाम देते हैं और पुलिस की सक्रियता बढ़ते ही हरियाणा या राजस्थान की ओर भाग निकलते हैं।

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गांव के एक बुजुर्ग ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यहां बेरोजगारी बेहद ज्यादा है और जल्दी अमीर बनने की चाह युवाओं को अपराध की ओर धकेल देती है। यही वजह है कि ठगी यहां पीढ़ी दर पीढ़ी फैलती चली गई।

अब तक की सबसे बड़ी पुलिस कार्रवाई

इस ऑपरेशन में चार आईपीएस अधिकारी, चार सीओ, 26 इंस्पेक्टर और करीब 400 पुलिस व पीएसी के जवान शामिल थे। कार्रवाई पूरी तरह गोपनीय रखी गई थी। पुलिस की गाड़ियां गांव से दूर रोकी गईं और जवान पैदल रास्तों से गांव में दाखिल हुए, जिससे अपराधियों को भागने का समय न मिल सके।

हालांकि बड़ी संख्या में आरोपी फरार हो गए, लेकिन पुलिस का कहना है कि यह कार्रवाई सिर्फ शुरुआत है। फरार आरोपियों की तलाश के लिए अलग-अलग टीमें बनाई गई हैं और डिजिटल सबूतों के आधार पर शिकंजा लगातार कसा जाएगा।

‘मिनी जामताड़ा’ क्यों कहा जा रहा है

देवसेरस और आसपास के गांवों में जिस तरह से साइबर ठगी का समानांतर नेटवर्क विकसित हुआ है, वह झारखंड के कुख्यात जामताड़ा मॉडल से मिलता-जुलता है। गांव स्तर पर ठगी का प्रशिक्षण, संगठित नेटवर्क और राज्य सीमा पार संचालन ने इसे साइबर अपराध की ‘यूनिवर्सिटी’ जैसा रूप दे दिया है।

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देवसेरस को साइबर ठगी की यूनिवर्सिटी क्यों कहा जा रहा है?

क्योंकि यहां ठगी के पारंपरिक और डिजिटल दोनों तरीकों का संगठित प्रशिक्षण और संचालन वर्षों से चल रहा है।

पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

राज्य सीमाओं की नजदीकी और डिजिटल सबूतों को तेजी से नष्ट किया जाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है।

क्या सिर्फ छापेमारी से ठगी खत्म हो जाएगी?

नहीं, इसके लिए रोजगार, शिक्षा और डिजिटल जागरूकता पर दीर्घकालिक रणनीति जरूरी है।

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