📝 संतोष कुमार सोनी की रिपोर्ट
सोशल मीडिया पर आए संदेशों ने उजागर की जेल के भीतर की भयावह सच्चाई, परिजन न्याय और रिहाई की आस में टूटते हौसले
बांदा। सरहदों की लकीरें जब इंसानी मजबूरी और रोज़गार की जद्दोजहद से टकराती हैं, तब सबसे ज़्यादा कीमत आम नागरिकों को चुकानी पड़ती है। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले से सामने आया मामला इसका ताज़ा और मार्मिक उदाहरण है, जहाँ पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय मछुआरों के परिजनों को सोशल मीडिया के ज़रिये ऐसे संदेश मिले हैं, जिन्होंने पूरे इलाके को झकझोर कर रख दिया है। इन संदेशों में कैद मछुआरे अपनी जान बचाने की गुहार लगा रहे हैं और यह चेतावनी दे रहे हैं कि यदि जल्द उन्हें रिहा नहीं कराया गया, तो वे शायद जीवित नहीं बच पाएंगे।
यह मामला केवल एक व्यक्ति या एक परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि उन सैकड़ों भारतीय मछुआरों की पीड़ा को सामने लाता है, जो अनजाने में समुद्री सीमाओं का उल्लंघन कर बैठते हैं और फिर वर्षों तक विदेशी जेलों में अमानवीय परिस्थितियों में जीवन काटने को मजबूर हो जाते हैं।
तीन साल से कैद: जसईपुर के जितेंद्र की कहानी
बांदा जिले के जसईपुर गांव निवासी जितेंद्र पिछले तीन वर्षों से पाकिस्तान की जेल में बंद हैं। जुलाई 2022 में वे गुजरात के पोरबंदर बंदरगाह से मछली पकड़ने समुद्र में गए थे। मछली पकड़ते समय समुद्र की बदलती धाराओं और दिशा भ्रम के कारण उनकी नाव अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा पार कर गई। इसी दौरान पाकिस्तान की समुद्री सुरक्षा एजेंसियों ने उन्हें हिरासत में ले लिया और बाद में जेल भेज दिया।
जितेंद्र जैसे कई मछुआरे बताते हैं कि समुद्र में वास्तविक सीमाएं दिखाई नहीं देतीं। न GPS की सटीक व्यवस्था होती है और न ही मौसम हमेशा अनुकूल रहता है। ऐसे में सीमा पार होना कई बार जानबूझकर नहीं, बल्कि मजबूरी बन जाता है।
सोशल मीडिया संदेशों से खुली जेल की सच्चाई
जितेंद्र के परिजनों को समय-समय पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से पाकिस्तान की जेल से संदेश प्राप्त हुए हैं। इन संदेशों में जितेंद्र ने बताया है कि जेल के भीतर उन्हें लगातार शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी जा रही हैं। ताज़ा संदेश 11 दिसंबर को प्राप्त हुआ, जिसमें उन्होंने अपनी बिगड़ती सेहत और अमानवीय व्यवहार का उल्लेख करते हुए तत्काल मदद की गुहार लगाई है।
जितेंद्र की पत्नी रानी का कहना है कि हर नया संदेश पहले से अधिक डरावना होता जा रहा है। “वे कहते हैं कि उन्हें बीमार हालत में भी इलाज नहीं मिल रहा, खाना पर्याप्त नहीं दिया जाता और मानसिक दबाव बनाया जाता है,” रानी ने रोते हुए बताया।
दरदा गांव के उमाशंकर का दर्द
यह पीड़ा केवल जसईपुर तक सीमित नहीं है। दरदा गांव निवासी सर्वेश के भाई उमाशंकर भी पाकिस्तान की जेल में बंद हैं। हाल ही में उमाशंकर के पास से आए संदेश में भी यातनाओं का जिक्र किया गया है। दोनों परिवारों के अनुसार, जेल में बंद भारतीय मछुआरों को अक्सर कठोर श्रम कराया जाता है और छोटी-छोटी बातों पर सजा दी जाती है।
इन संदेशों ने गांवों में डर और बेचैनी का माहौल बना दिया है। परिजन हर दिन अनहोनी की आशंका में जी रहे हैं।
प्रशासन से गुहार, लेकिन समाधान नदारद
पीड़ित परिवारों का कहना है कि उन्होंने कई बार स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकार और केंद्र सरकार से संपर्क किया। ज्ञापन सौंपे गए, अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगाए गए, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई।
बीते दिनों जितेंद्र द्वारा भेजे गए एक पत्र में उन्होंने अपनी गंभीर बीमारी का हवाला देते हुए मानवीय आधार पर रिहाई की मांग की थी। इसके बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के प्रतिनिधि मंडलों ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की और हरसंभव मदद का आश्वासन दिया। हालांकि, आश्वासनों के बावजूद ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस प्रगति नहीं दिखी है।
परिजनों का टूटता सब्र और सरकार से सवाल
लगातार इंतज़ार और अनिश्चितता ने परिजनों को मानसिक रूप से तोड़ दिया है। महिलाएं और बुज़ुर्ग दिन-रात रोते हुए यही सवाल कर रहे हैं कि क्या गरीब मछुआरों की जान की कोई कीमत नहीं है? परिजन कहते हैं कि वे सरकार और अधिकारियों से गुहार लगाकर थक चुके हैं, लेकिन अब भी रिहाई की कोई स्पष्ट उम्मीद नजर नहीं आ रही।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच मछुआरों की रिहाई को लेकर कई बार समझौते हुए हैं, लेकिन राजनीतिक तनाव और कूटनीतिक जटिलताओं के कारण ये मामले अक्सर लंबित रह जाते हैं।
मानवीय आधार पर कार्रवाई की मांग
सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि ऐसे मामलों को राजनीति से ऊपर उठकर मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। जिन मछुआरों का कोई आपराधिक इरादा नहीं था, उन्हें वर्षों तक जेल में रखना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के खिलाफ है।
अब सवाल यह है कि क्या सरकारें समय रहते कदम उठाएंगी या फिर ये परिवार केवल उम्मीदों के सहारे ही जीते रहेंगे?
पाठकों के सवाल – जवाब
❓ भारतीय मछुआरे पाकिस्तान की जेल में कैसे पहुंच जाते हैं?
समुद्र में स्पष्ट सीमाएं न होने, खराब मौसम और तकनीकी संसाधनों की कमी के कारण कई बार मछुआरे अनजाने में अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा पार कर जाते हैं।
❓ क्या ऐसे मामलों में रिहाई की कोई प्रक्रिया होती है?
हां, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक वार्ता और मानवीय आधार पर मछुआरों की रिहाई की प्रक्रिया होती है, लेकिन इसमें अक्सर काफी समय लग जाता है।
❓ परिजन सरकार से क्या मांग कर रहे हैं?
परिजन तत्काल कूटनीतिक हस्तक्षेप, जेल में बंद मछुआरों की सुरक्षित वापसी और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस व्यवस्था की मांग कर रहे हैं।
❓ क्या यह मामला केवल बांदा तक सीमित है?
नहीं, देश के कई तटीय राज्यों और उत्तर प्रदेश के भी अनेक परिवार इस समस्या से जूझ रहे हैं।






