चित्रकूट जिले में अवैध प्लॉटिंग, फर्जी बैनामे, राजस्व–कर्मचारियों की मिलीभगत और ग्राम सभा की जमीन पर हो रहे खुलेआम अवैध कब्ज़ों की विस्तृत पड़ताल—मानिकपुर के सरहट प्रकरण सहित।
चित्रकूट—जहाँ धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत सदियों पुरानी है—आज उसी पवित्र धरती की मिट्टी में असुरक्षा और अराजकता के बीज पनप रहे हैं। ग्राम सभा की जमीनें, बंजर भूमि, तालाब, नाले, अस्पताल की जमीन—सब कुछ दबंगों के कब्ज़े और राजस्व तंत्र की मिलीभगत का आसान शिकार बनते जा रहे हैं।
इस रिपोर्ट की शुरुआत हमने जिले में बढ़ती अवैध प्लॉटिंग, फर्जी बैनामों और दबंग माफियाओं के नेटवर्क से की थी, परंतु मानिकपुर तहसील के ग्राम पंचायत सरहत का प्रकरण इस समस्या की तीव्रता और प्रशासनिक कमजोरी का सबसे तीखा उदाहरण बनकर उभरता है।
भूमि माफिया नेटवर्क और फर्जी दस्तावेज़ों का संगठित खेल
चित्रकूट में अवैध प्लॉटिंग और फर्जी बैनामों की संख्या लगातार बढ़ रही है। तलैया तरौंहा की अवैध प्लॉटिंग, 4.15 हेक्टेयर की फर्जी रजिस्ट्री और कई नामजद आरोपियों का सामने आना यह साबित करता है कि यह पूरा खेल बिना विभागीय संरक्षण के संभव ही नहीं।
इन मामलों में प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
- अमित श्रीवास्तव (उपनिबंधक)
- विमलेश, केशव लाल, राज कुमार यादव, महेंद्र, आकाश, अरुण सिंह — फर्जी बैनामा प्रकरण में
- विकास सचान — सहायक कोषागार अधिकारी
- रामखेलावन राजकिशोर एवं सोहन — अवैध प्लॉटिंग से जुड़े
भूमाफिया केवल बदमाश नहीं—वे दस्तावेज़ों, नेटवर्क और प्रशासनिक छिद्रों के विशेषज्ञ होते हैं।
दबंगई और कब्ज़ों का नया चेहरा—मानिकपुर सरहट की कहानी
अब बात उस सबसे चर्चित और गंभीर प्रकरण की—मानिकपुर तहसील मुख्यालय स्थित ग्राम पंचायत सरहत के गाटा संख्या 293 की, जहाँ ग्राम सभा की बंजर भूमि और नाले पर अवैध निर्माण किया जा रहा है।
● बंजर भूमि और नाले पर अवैध कब्ज़ा — सामने आए कमलेश द्विवेदी और बृजेंद्र यादव के नाम
स्थानीय लोगों ने बताया कि:
- यह भूमि कर्वी–मानिकपुर मुख्य मार्ग से सटी है
- जगह अत्यंत कीमती है, इसलिए दबंगों ने इसे निशाना बनाया
- कमलेश द्विवेदी और बृजेंद्र यादव के नाम कब्ज़ाधारकों में प्रमुख रूप से सामने आए हैं
- अवैध निर्माण तेज़ी से कराया गया
यह केवल कब्ज़ा नहीं—यह ग्रामीण न्याय व्यवस्था को खुला चुनौती है।
लेखपाल अरबाज सिद्दीकी की भूमिका—स्थानीय लोग सवाल उठा रहे हैं
ग्राम सभा सरहट का राजस्व क्षेत्र लेखपाल अरबाज सिद्दीकी के अधीन आता है। ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है:
- कब्जाधारकों को लेखपाल की मौन सह मिली
- मौके की वास्तविक रिपोर्ट अधिकारियों तक नहीं भेजी गई
- पूर्व शिकायतों पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई
राजस्व प्रणाली की यह चुप्पी ही माफियाओं की सबसे बड़ी ताकत है।
ग्रामीणों की आवाज़: “सरकारी जमीन बचाओ, नहीं तो गाँव बचेगा कैसे?”
ग्रामीणों ने शिकायत मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश तक पहुंचाई। इसके बाद जिलाधिकारी ने:
- एसडीएम मानिकपुर को सख्त निर्देश दिए
- फटकार लगाई
- अवैध कब्ज़ा हटाने का आदेश दिया
लेकिन भूमि पर वास्तविक कार्रवाई शून्य रही, और इसी बीच दबंगों ने पक्का मकान खड़ा कर दिया।
मानिकपुर: दबंग भू–माफियाओं का नया ठिकाना?
मानिकपुर क्षेत्र में वर्षों से:
- बिना नक्शा
- बिना ग्राम सभा अनुमति
- बिना रजिस्ट्री सत्यापन
- बिना राजस्व निरीक्षण
निर्माण होते आए हैं। अस्पताल, मंदिर और नाले की जमीन पर भी कब्ज़ों का इतिहास सामने आया है।
वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह राणा ने कई बार शिकायतें दीं, प्रमाण जुटाए, निरीक्षण किया—लेकिन कार्रवाई आज भी कागज़ों में सिमटी है।
प्रशासन की चुप्पी = माफियाओं की ताकत
शिकायतकर्ताओं का कहना है:
“जिलाधिकारी आदेश देते हैं, पर SDM और लेखपाल उस आदेश को फाइलों में ही दबा देते हैं। जब अधिकारी की कार्रवाई जमीन पर दिखाई ही नहीं देती, तब दबंगों का मनोबल और बढ़ता है।”
यह स्थिति बताती है कि प्रशासन या तो दबाव में है या फिर भ्रष्टाचार उसकी जड़ों में गहरा बैठ चुका है।
सरहट का प्रकरण क्यों महत्वपूर्ण है?
यह सिर्फ एक गाँव का मामला नहीं—यह पूरा मॉडल उजागर करता है:
- सरकारी जमीन कैसे चिन्हित की जाती है
- दबंग किस तरह कब्ज़ा जमाते हैं
- लेखपाल और SDM की मिलीभगत कैसे काम करती है
- ग्रामीणों की शिकायतें कैसे अनसुनी होती हैं
- निर्माण पूरा होने पर कार्रवाई “असंभव” बताकर मामला ठंडा कर दिया जाता है
यह उत्तर प्रदेश के ग्रामीण प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार और माफियातंत्र की गहरी जड़ें उजागर करता है।
ग्रामीणों में बढ़ता आक्रोश
संजय सिंह राणा द्वारा चलाया जा रहा अभियान “जीत आपकी—चलो गाँव की ओर” इन अवैध कब्ज़ों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
लेकिन जब:
- प्रशासन आदेशों का पालन न करे
- अवैध निर्माण जारी रहे
- कब्जाधारक खुलेआम निर्माण करते नजर आएँ
तो ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ना स्वाभाविक है।
चित्रकूट की लड़ाई अब न्याय और अस्तित्व की लड़ाई है
भूमाफिया केवल जमीन नहीं हड़पते—वे गाँव की पहचान, अधिकार और भविष्य हड़प लेते हैं।
मानिकपुर का सरहट प्रकरण साबित करता है:
- जब प्रशासन मौन हो
- लेखपाल मिलीभगत करे
- SDM कार्रवाई न करे
- दबंग खुलेआम निर्माण करवाएँ
तब लोकतंत्र का सबसे कमजोर हिस्सा—ग्रामीण नागरिक—पूरी तरह असहाय हो जाता है।
❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्र1: क्या सरहट की जमीन पर हो रहा निर्माण अवैध है?
हाँ, यह ग्राम सभा की बंजर भूमि और नाले की जमीन है, जिस पर किसी भी प्रकार का निजी निर्माण पूर्णतः अवैध है।
प्र2: क्या इस कब्ज़े की जानकारी अधिकारियों को है?
हाँ। शिकायत मुख्य सचिव और जिलाधिकारी दोनों तक पहुँची है, लेकिन SDM स्तर पर कार्रवाई नहीं हुई।
प्र3: किनका नाम अवैध निर्माण में सामने आया है?
कमलेश द्विवेदी और बृजेंद्र यादव के नाम कब्ज़े में स्पष्ट रूप से सामने आए हैं।
प्र4: लेखपाल अरबाज सिद्दीकी पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?
ग्रामीणों का आरोप है कि लेखपाल ने सही रिपोर्ट अधिकारियों तक नहीं भेजी और कब्जाधारकों को मौन सह दी।
प्र5: क्या प्रशासन अभी भी कब्ज़ा हटा सकता है?
हाँ, जिला प्रशासन चाहे तो तुरंत निर्माण गिराने और जिम्मेदारों पर मुकदमा दर्ज करने की पूरी शक्ति रखता है।
प्र6: अवैध कब्ज़ा रोकने में प्रशासन नाकाम क्यों रहा?
यह कमजोर निगरानी, राजनीतिक/सामाजिक दबाव और राजस्व विभाग की मिलीभगत का परिणाम प्रतीत होता है।
प्र7: ग्राम सभा की जमीन पर कब्ज़े का सबसे बड़ा नुकसान क्या है?
इससे गाँव की सामुदायिक जमीन, चारागाह, तालाब, विकास कार्य और ग्रामीण अधिकार खत्म होते जाते हैं।






