एजेंसी इनपुट और एसडी डेस्क
यूक्रेन में रूस के हमले लगातार आठवें दिन भी जारी हैं। राजधानी कीव, खार्किव सहित अन्य बड़े शहरों में रूसी सेना मिसाइलें दाग रही हैं। इसी बीच उत्तरी कीव से लगभग 80 किलोमीटर दूर चेर्नीहीव, सुकाची, बुका शहर की सैटेलाइट इमेज सामने आई हैं। इन तस्वीरों में तबाही का मंजर साफ दिखाई दे रहा है। यह इमेज रूसी सेना के निर्माण पर नजर रखने वाली अमेरिका की मैक्सार टेक्नोलॉजीज ने जारी की है।
यूक्रेन में हालात बदतर हो गए हैं। रूस के हमले गुरुवार को आठवें दिन भी जारी हैं। 10 से ज्यादा शहर बर्बाद हो चुके हैं। कई इलाके खंडहर और वीरान जैसे लगने लगे हैं। सड़कें बमबारी की दहशत से सूनी हो गई हैं। यूएन के आंकड़ों के मुताबिक,10 लाख से ज्यादा लोग देश छोड़ चुके हैं। जो बचे हैं वे हताश और निराश हैं। पूछ रहे हैं आगे हमारा क्या होगा? रोजगार, परिवार, संपत्ति जैसे सबकुछ बिखर गया है।
शांति की कोशिशें जारी
हमले के साथ ही शांति की कोशिशें भी चल रही हैं। दोनों देशों के टॉप अफसर बेलारूस-पोलैंड बॉर्डर पर बैठक कर रहे हैं। इससे पहले यूक्रेन ने मांग की है कि रूस को ग्लोबल इंटरनेट पर भी बैन किया जाए, जिससे उसके झूठ का प्रचार रुके।
भारतीयों के साथ बुरा सलूक
‘यूक्रेन की पुलिस और आर्मी स्टेशन पर सिर्फ अपने देश के लोगों को ही प्राथमिकता दे रही है। दूसरे देश के लोगों और खासतौर पर भारतीयों के साथ मारपीट कर रहे हैं। लड़कियों तक को पुलिसवालों ने नहीं बख्शा। लड़कों को यूक्रेन की आर्मी ने साफ-साफ कह दिया कि अगर ट्रेन में चढ़े तो सीधे गोली मार देंगे। हमें भारतीय ऐंबैसी ने कह दिया है कि 6 बजे तक खार्किव छोड़ दें।
एक तरफ हमें हमारे हॉस्टल लौटने नहीं दिया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ हमें ट्रेन में नहीं चढ़ने दिया जा रहा। अब हमें समझ नहीं आ रहा कि हम क्या करें। बाहर निकलेंगे तो क्रॉस फायरिंग में मारे जाने का डर है। हम यहां पर फोन निकाल कर फोटो भी नहीं ले सकते, यूक्रेन पुलिस वाले सीधा शूट करने की धमकी देते हैं।’
खार्किव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट दिव्यांश दीक्षित ने हमें ये तब बताया जब वो खार्किव स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। दिव्यांश उत्तर प्रदेश के बरेली के रहने वाले हैं। दिव्यांश के साथ सिद्धांत, अंशुल, उज्जवल, प्रिया जैसे करीब 1,000 हजार छात्र स्टेशन पर मौजूद थे।
दरअसल ये हालात इसलिए बने क्योंकि 2 मार्च शाम 4.47 पर यूक्रेन में भारतीय ऐंबैसी ने अर्जेंट एडवाइजरी जारी करके कहा कि खार्किव में मौजूद सभी भारतीय तत्काल प्रभाव से शहर छोड़ दें। भारतीय खार्किव से सटे पश्चिमी इलाकों जैसे पेसोचिन, बाबाये और बेजलयुदोवका की तरफ बढ़ें। ठीक एक घंटे बाद फिर से एजवाइजरी जारी करते हुए भारतीय ऐंबैसी ने कहा कि भारतीय ‘तत्काल मतलब तत्काल प्रभाव से’ खार्किव छोड़कर निकल जाएं।’
यूक्रेन की आर्मी ने लड़कियों के साथ की बदसलूकी’
खार्किव में रूसी अटैक का खतरा बढ़ता जा रहा था। 2 मार्च को सुबह 6 बजे दिव्यांश अपने साथियों के साथ खार्किव के वकजाल रेलवे स्टेशन के लिए निकले। करीब 10 किमी का पैदल सफर तक करके जब वो रेलवे स्टेशन पहुंचे, तो वहां के हालात देखकर दंग रह गए। पीठ पर अपना सामान लादे थके हारे छात्रों को सहारा देने की बजाय, उल्टा यूक्रेन की आर्मी और पुलिस ने टॉर्चर किया। सुबह 8 बजे से 2 बजे तक इन छात्रों ने इंतजार किया। छात्र लगातार यूक्रेनी पुलिस से ट्रेन में बैठने के लिए मिन्नतें करते रहे, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। ना ही उन्हें ट्रेन में चढ़ने दिया गया, उल्टा बदसलूकी की गई। दिव्यांश बताते हैं कि यूक्रेनी आर्मी के एक जवान ने भारतीय छात्रों को डराने के लिए हवा में गोलियां दागना शुरू कर दिया, ऐसा कई बार हुआ। इससे सभी सहम गए। कुछ लड़कियों के साथ भी बदसलूकी की गई और उन्हें चोट भी आई।
‘अलग-अलग तरह से किया गया टॉर्चर’
हजार लोगों में मौजूद एक और छात्रा ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर कहा कि ‘यूक्रेन की पुलिस सिर्फ अपने देश के लोगों को ही जाने दे रही है। जब हमने खूब हाथ-पैर जोड़े तो उन्होंने पहले सिर्फ भारतीय लड़कियों को जाने दिया, इसके बाद पुलिस आई और लड़कों की जमकर पिटाई की। लड़कों को अलग-अलग तरह से टॉर्चर किया। हमारे एक साथी को अस्थमा की दिक्कत थी, उसको टॉर्चर करने के लिए इस हद तक ले आए उसकी सांस उखड़ने लगी। इसके बाद अलग-अलग गेम खिलाने के नाम पर टॉर्चर किया गया।’
एक और छात्रा ने बताया, ‘यूक्रेन पुलिस सिर्फ यूक्रेन के नागरिकों को ही सुरक्षित रूप से जाने दे रही है। भारतीय छात्रों को बिना किसी कारण के सजा दी जा रही है।’
‘दो बिल्डिंग दूर एयर स्ट्राइक, फिर हम शेल्टर की तरफ भागे’
दिव्यांश बताते हैं, ‘हम लोग इस बदसलूकी के बाद पीछे हट गए। हमने अपने साथियों को इकट्ठा किया। तभी हमसे दो बिल्डिंग दूर ही एयर स्ट्राइक हो गई थी, इसलिए हम शेल्टर में चले गए थे। जब ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया तो 1,000 में से करीब 700-800 छात्रों ने तय किया कि वो खार्किव से करीब 15 किमी पश्चिम की तरफ पेसोचिन के लिए पैदल ही निकल पड़ें। हमने सोचा कि एग्जिट रूट का इंतजार करने से अच्छा है कि हम पैदल ही खार्किव से बाहर चले जाएं। एक डर ये भी था कि हम क्रॉस फायर में ना फंस जाएं।’
‘हमारे एकदम करीब बम गिरा, साथी घायल होते-होते बचा’
छात्र बताते हैं, ‘हमें जिस रास्ते से जाना था, उसमें हमें यूक्रेन के मुख्य मिलिट्री एरिया को पार करना था। हमें डर था कि कहीं रशियन हम पर हमला ना कर दें। जब हम रास्ते में चल रहे थे तो हमसे करीब सिर्फ 100 मीटर दूर बम गिरा। मेरे एक दोस्त को चोट लगते-लगते बची। फिर हम वहां से दौड़ते-भागते तीन घंटे चले और पेसोचिन पहुंचे। यहां पर हम 2 मार्च की रात को पहुंच गए हैं और भारतीय ऐंबैसी ने यहां हमारे रुकने के लिए एक यूक्रेनियन स्कूल में व्यवस्था की है।’
पिछले 6 दिन से बंकर में काट रहे थे वक्त
दिव्यांश और उनके साथी युद्ध के सातवें दिन खार्किव छोड़कर निकले। इसके पहले 6 दिन वो हॉस्टल के पास ही बंकर में छिपे रहे। लगातार बमबारी के बीच उन्हें कुछ मिनट के लिए ही बाहर निकलने को मिला। इसी वक्त में उन्हें वॉशरूम जाना होता है और खुद के लिए कुछ खाने, पीने के पानी का इंतजाम करना पड़ता था। वहां के लोगों की बंकर में रहने की सख्त चेतावनी थी। बंकर में भी हालात बद से बदतर हो रहे थे और मेंटल स्ट्रेस बढ़ रहा था।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."