देवभूमि की मनमोहक दहलीज़ पर आपका स्वागत “आइए न देवभूमि हरिद्वार! यहां कुछ अद्भुत भी है… और कुछ चुभन भी”





आइए न देवभूमि हरिद्वार! यहां कुछ अद्भुत भी है… और कुछ चुभन भी

लेखक: हिमांशु नौरियाल

विशेष रूप से समाचार दर्पण के लिए लिखा गया फीचर

हरिद्वार—जहां श्रद्धा और प्रकृति एक-दूसरे में घुल जाते हैं

जब कोई पूछता है कि उत्तराखंड की यात्रा कहां से शुरू की जाए, मैं बिना सोचे कह देता हूँ—हरिद्वार।
लेकिन साथ ही यह सच भी जोड़ देता हूँ कि यह शहर जितना अद्भुत है, उतना ही कहीं-कहीं चुभन भी देता है।
दिव्यता और अव्यवस्था, शांति और शोर, श्रद्धा और असहजता—हरिद्वार इन सबका अनोखा संगम है।

हरिद्वार में प्रवेश—पहाड़ों की हवा का स्वागत और आध्यात्मिकता की पहली दस्तक

जैसे ही आप हरिद्वार में प्रवेश करते हैं, हवा का स्पर्श ही बता देता है कि आप किसी सामान्य शहर में नहीं आए।
गंगा की नमी, पहाड़ी हवा की ठंडक और स्टेशन के बाहर आरती की धीमी ध्वनि—ये सब मिलकर एक अद्भुत शांति रचते हैं।
ठेले पर मिलती चाय की सुगंध, फूल-मालाओं की महक और पुजारियों की आवाजें—सब ऐसा लगता है जैसे शहर आपका स्वागत कर रहा हो।

गंगा का पहला दर्शन—जब आंखें भीगती हैं और मन शांत होता है

मैंने पहला कदम हर की पौड़ी की ओर ही बढ़ाया।
गंगा के पास पहुंचते ही मन भीतर तक शांत हो जाता है।
गंगा का स्पर्श ऐसा है जैसे मां के हाथ की थपकी—उसमें अपनापन है, करुणा है और एक अदृश्य सुरक्षा भी।
बहता जल सिर्फ जल नहीं, बल्कि आशीर्वाद की धारा लगता है।

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सांध्य आरती—जब गंगा और मन, दोनों रोशनी से भर जाते हैं

शाम होते ही हर की पौड़ी एक स्वर्णिम आभा में बदल जाती है।
दीपों का प्रकाश, घंटों की गूँज और पुजारियों का मंत्रोच्चार—ये सब मिलकर एक दिव्य दृश्य रचते हैं।
आरती के समय ऐसा लगता है मानो गंगा स्वयं सांस ले रही हो।
पास खड़े एक बुजुर्ग ने धीमे से कहा—
“बेटा, यह आरती गंगा की नहीं… हमारी आत्मा की होती है।”
यह वाक्य आज भी मन में गूंजता है।

दिव्यता के बीच छिपी चुभनें—हरिद्वार की कुछ कड़वी सच्चाइयाँ

हरिद्वार जितना सुंदर है, उतनी ही उसकी कमियाँ भी स्पष्ट दिखती हैं।
इन कमियों को कह देना भी जरूरी है, क्योंकि सच्चा प्रेम वही है जो गलतियों को सुधारना चाहता है।

भीड़ और अव्यवस्था—आस्था का उत्सव कई बार अव्यवस्था का रूप बन जाता है

आरती के समय हरिद्वार में भीड़ इतनी बढ़ जाती है कि सुरक्षा व्यवस्था अक्सर टूटने लगती है।
धक्का-मुक्की, टूटे बैरिकेड, पुलिस की कमी और स्थल तक पहुंचने में कठिनाई—ये सब भक्तों के अनुभव को बाधित करते हैं।
ऐसा लगता है जैसे शहर अपनी क्षमता से दो गुना बोझ उठाने को मजबूर है।

गंगा किनारे फैली गंदगी—मां गंगा पर श्रद्धालुओं का बोझ

सबसे दुखद दृश्य वही है—गंगा किनारों पर फैली गंदगी।
फूल, प्लास्टिक, पूजा सामग्री, कपड़े, बोतलें—ये सब गंगा की मर्यादा को चोट पहुंचाते हैं।
मां कहकर उसी मां को दूषित छोड़ देना सबसे बड़ा विरोधाभास है।
सफाई कर्मी रोज सफाई करते हैं पर श्रद्धालुओं की बेपरवाही सब कुछ फिर से वैसा ही कर देती है।

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ट्रैफिक और पार्किंग की समस्या—यात्रा से अधिक कठिन हो जाती है पहुँच

हरिद्वार की सड़कों पर ट्रैफिक जाम एक सामान्य दृश्य है।
मुख्य मार्ग इतने संकरे हैं कि हर त्योहार, हर वीकेंड और हर छुट्टी शहर लगभग थम सा जाता है।
पार्किंग ढूंढने में समय और पैसा दोनों खर्च होते हैं।

होटल और धर्मशालाएँ—दिव्यता के बीच व्यवसाय की तल्खी

धर्मशालाओं की परंपरा अब व्यावसायिक रूप ले चुकी है।
कई होटल अत्यधिक महंगे, कई गंदे और कई बेढंगे नजर आते हैं।
एक कमरे की खिड़की खोलते ही पीछे कूड़े का ढेर देखकर मन कटुता से भर गया।
ऐसा लगा—“हरिद्वार सुंदर है, पर इसे संभालने वाले कहाँ हैं?”

दुकानदारों और दलालों का जाल—श्रद्धा को व्यापार में बदल देना

पहली बार आने वाले यात्रियों को कई दुकानदार और दलाल तुरंत घेर लेते हैं—
“असली गंगा जल”,
“स्पेशल आरती सीट”,
“पंडित जी की विशेष पूजा”,
“जीवन बदल देने वाले उपाय”…
इन सबके बीच श्रद्धा दरकती है और व्यापार अपनी जड़े फैलाता जाता है।

लेकिन इसके बावजूद… हरिद्वार का आकर्षण अपनी कमियों से कहीं बड़ा है

सच कहूँ तो हरिद्वार की अच्छाइयाँ उसकी कमियों पर भारी पड़ जाती हैं।
गंगा की लहरें, सूर्यास्त का दृश्य, मंत्रों की ध्वनि, पहाड़ों की हवा—ये सब मिलकर एक ऐसी अनुभूति देते हैं जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता।
यह शहर सिर्फ देखा नहीं जाता—यह मन में समा जाता है।

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ब्रह्ममुहूर्त का हरिद्वार—जब दुनिया सोती है और आध्यात्मिकता जागती है

अगली सुबह मैं ब्रह्ममुहूर्त में हर की पौड़ी पहुंचा।
धुंध में डूबा सूरज, शांत गंगा, योग और ध्यान करते लोग—वह दृश्य बिल्कुल अलौकिक था।
ऐसा लगता था जैसे प्रकृति और आत्मा एक-दूसरे में विलीन हो रहे हों।
हरिद्वार उस समय एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक जीवंत ऊर्जा का केंद्र प्रतीत होता है।

हरिद्वार को बेहतर बनाने के लिए कुछ जरूरी कदम

• आधुनिक भीड़ प्रबंधन

उन्नत बैरिकेडिंग, ऊंचे प्लेटफार्म, सीसीटीवी मॉनिटरिंग और निर्धारित मार्ग।

• गंगा किनारे सख्त नियम

गंदगी फैलाने वालों पर जुर्माना और जागरूकता अभियान।

• बेहतर ट्रैफिक व्यवस्था

समर्पित पार्किंग जोन, स्मार्ट सिग्नल और वैकल्पिक मार्ग।

• दुकानों और दलालों पर नियंत्रण

नियमित निरीक्षण और तय दरें।

• यात्रियों के लिए सूचना केंद्र

ताकि कोई भी गलतफहमी या शोषण का शिकार न बने।

हरिद्वार—जहां चुभन भी पवित्र लगती है

वापसी के समय मेरे मन में दो भाव थे—
एक *आनंद*, और एक *चुभन*।
लेकिन हरिद्वार की यही तो खूबसूरती है—
कि यह अपनी चुभनों के बावजूद बार-बार बुलाता है।


“आइए न देवभूमि हरिद्वार…
यहां आपको कुछ अद्भुत भी मिलेगा,
कुछ चुभन भी मिलेगी,
और दोनों मिलकर ही हरिद्वार को हरिद्वार बनाती हैं।”

—हिमांशु नौरियाल
©समाचार दर्पण के लिए विशेष फीचर


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