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November 21, 2024 11:37 pm

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वक्फ प्रथा : इतिहास, नियंत्रण और वर्तमान परिप्रेक्ष्य

17 पाठकों ने अब तक पढा

-अनिल अनूप

वक्फ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है ऐसी संपत्ति जो परमार्थ के लिए दान की गई हो। इसमें धार्मिक कार्य भी शामिल हो सकते हैं, लेकिन इस संपत्ति को दान करते समय दानकर्ता यह साफ कर देता है कि वह या उसके वारिस इसे वापस नहीं ले सकते। यदि कोई संपत्ति एक सीमित समय के लिए दान की जाती है और पहले से यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि उसका उपयोग केवल एक निश्चित अवधि तक परमार्थ कार्यों के लिए किया जाएगा, तो उसे वक्फ नहीं माना जाएगा। वक्फ की गई संपत्ति अब दानकर्ता की नहीं रहती, इसलिए उसे वापस लेने का सवाल ही पैदा नहीं होता। जो व्यक्ति अपनी संपत्ति को वक्फ करता है, उसे वाकिफ कहा जाता है, और संपत्ति के प्रबंधन के लिए वह किसी मुतावली यानी न्यासी को नियुक्त करता है। मुतावली को प्रबंधन के एवज में वक्फ की आय का एक हिस्सा दिया जा सकता है।

भारत में यह प्रथा बहुत पुरानी है और इस्लाम से पहले भी यहां मंदिर, अनाथालय, गोशालाएं, और अन्य धार्मिक संस्थाएं इसी तरह से संचालित होती थीं। अंग्रेजों के भारत आने से पहले मस्जिदें, दरगाहें, मदरसे और यतीमखाने भी वक्फ प्रथा के माध्यम से चलाए जाते थे। हालांकि वक्फ, वाकिफ, और मुतावली जैसे शब्द अरबी भाषा के हैं, लेकिन यह धारणा गलत है कि यह प्रथा इस्लाम के आगमन के बाद ही शुरू हुई थी।

1857 की आजादी की लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने भारत में सत्ता का नियंत्रण बनाए रखने के लिए एक योजना बनाई। इस योजना के तहत उन्होंने मुस्लिम लीग का गठन किया और वक्फ संपत्तियों का केंद्रीकरण करके विदेशी मूल के शेखों और सैयदों को इसका प्रबंधन सौंप दिया। इससे न केवल अंग्रेजों को समर्थन मिला, बल्कि भारतीय मुसलमानों को भी नियंत्रित किया जा सका। वक्फ संपत्तियों के नियंत्रण से शेखों और सैयदों को अपार संपत्ति और सत्ता मिली, जिससे उन्हें भारत में एक मजहबी पक्ष के रूप में स्थापित करने में मदद मिली।

जब भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों की संपत्ति का प्रश्न उठा, तो कांग्रेस सरकार ने इसे वक्फ बोर्ड के हवाले कर दिया, जो कि एक गलत निर्णय था। वह संपत्ति पाकिस्तान गए मुसलमानों की नहीं थी, और इसे भारत में शरण लेने वाले हिंदू-सिखों में बांटा जाना चाहिए था। लेकिन कांग्रेस ने अंग्रेजों की ही तरह वक्फ संपत्तियों का नियंत्रण शेखों और सैयदों को सौंप दिया।

आज जब भाजपा सरकार वक्फ बोर्डों में सुधार की कोशिश कर रही है, तो स्थानीय मुसलमान खुश हैं कि उन्हें अपनी धार्मिक संपत्तियों का नियंत्रण मिलेगा। लेकिन एटीएम (अरब, तुर्क और मुगल) मूल के मुसलमान और कांग्रेस इस पर विरोध कर रहे हैं। प्रश्न यह है कि क्या वक्फ बोर्डों को समाप्त कर देना चाहिए?

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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