अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को दलितों के आरक्षण में कोटे के अंदर कोटा देने का फैसला सुनाया, जिसने भारत की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। इस फैसले के बाद दलित नेताओं और दलित पॉलिटिक्स में व्यापक बदलाव की आशंका जताई जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के भीतर अब अलग-अलग कैटेगरी बनाई जाएंगी, जिससे इन जातियों के भीतर भी सब-कैटेगरी के आधार पर आरक्षण का लाभ बांटा जाएगा। इससे दलितों की विभिन्न जातियों के बीच आरक्षण का लाभ एक समान नहीं रहेगा, बल्कि अब उन जातियों को ज्यादा लाभ मिलेगा जिन्होंने अब तक कम लाभ उठाया है।
इस फैसले से दलित राजनीति में एक विभाजन का संकेत मिल रहा है। पहले दलित राजनीति में एकता थी, जिसमें सभी दलित जातियों को एक समान मानते हुए उनका प्रतिनिधित्व किया जाता था। लेकिन अब, जब आरक्षण के लाभ को जातियों के भीतर बांटा जाएगा, तो दलित नेताओं के बीच नई जाति आधारित राजनीति की शुरुआत हो सकती है।
विशेष रूप से, दलित नेताओं जैसे मायावती, चिराग पासवान, उदित राज और प्रकाश आंबेडकर की राजनीतिक स्थिति पर असर पड़ सकता है। इन नेताओं ने दलितों की एकता और उनके अधिकारों की रक्षा की बात की है, लेकिन अब उनकी राजनीति जाति के अंदर बंट जाएगी। मायावती और चिराग पासवान जैसे नेता इस फैसले का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इससे दलितों के बीच विभाजन होगा और उनके राजनीतिक हित प्रभावित होंगे।
वहीं, संजय पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेता इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस फैसले से जातियों के भीतर जो कमजोर वर्ग हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ मिलेगा। संजय पासवान का मानना है कि जिन परिवारों ने तीन पीढ़ियों से आरक्षण का लाभ उठाया है, उन्हें अब इसकी जरूरत नहीं है।
दक्षिण भारत में भी दलित जातियों के भीतर सब-कैटेगरी की वजह से संघर्ष हो रहा है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में दलित जातियों के बीच आपसी टकराव और विरोध देखने को मिल रहा है। इन राज्यों में आरक्षण के लाभ को लेकर जातियों में संघर्ष बढ़ गया है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने इस फैसले को समर्थन देते हुए कहा कि जाति के आधार पर आरक्षण देने की बजाय, परिवार या व्यक्तिगत आधार पर इसे लागू करना चाहिए। उनका कहना है कि दलित राजनीति अब नई दिशा की ओर बढ़ रही है और जाति आधारित राजनीति का अंत हो सकता है।
कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दलित राजनीति में एक नई शुरुआत का संकेत दे रहा है, जिसमें जातियों के भीतर भी आरक्षण का लाभ बंटेगा। इससे दलित नेताओं की पहचान भी जाति के आधार पर होगी, न कि केवल दलित नेताओं के रूप में।
Author: samachar
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