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November 22, 2024 8:00 pm

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तो मोदी के सबसे बडे़ मंत्रिमंडल में एक भी मुस्लिम नहीं… जानते हैं क्यों? पढिए पूरी खबर

10 पाठकों ने अब तक पढा

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

नौ जून को नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल के लिए पदभार संभाला और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी दलों के 71 लोगों को केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शपथ दिलाई गई। यह नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) की अब तक की सबसे बड़ी मंत्रिपरिषद है। 

हालांकि, इस बार की मंत्रिपरिषद में कोई भी मुस्लिम सांसद शामिल नहीं है, जो भारतीय इतिहास में पहली बार हुआ है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है और इसका असर भारतीय राजनीति पर लंबे समय तक देखा जा सकता है।

लोकसभा में एनडीए के 293 सांसदों में एक भी मुस्लिम, सिख या ईसाई नहीं है। राजनीतिक विशेषज्ञों और विपक्षी पार्टियों का मानना है कि देश में मुसलमानों की घटती राजनीतिक भागीदारी चिंताजनक है।

दूसरी तरफ़, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इन दावों को खारिज करती है। पार्टी का कहना है कि वे धर्म या जाति के आधार पर टिकट नहीं बांटते और उनके निर्वाचित जनप्रतिनिधि सभी के फायदे के लिए काम करते हैं, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो। भाजपा का दावा है कि उनकी नीति समावेशी और विकासपरक है, जो सभी समुदायों के हित में है।

अठारहवीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 240 सीटों पर जीत मिली और सहयोगी दलों के साथ मिलकर एनडीए के पास लोकसभा में कुल 293 सीटें हैं। आठ जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 72 लोगों ने मंत्रिपरिषद की शपथ ली, जिनमें 61 बीजेपी से और 11 एनडीए के घटक दलों से हैं। यह संख्या 2014 के बाद से एनडीए के मंत्रियों की सबसे बड़ी संख्या है, जब 46 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई थी। 2019 में यह संख्या बढ़कर 57 हो गई थी।

इस बार, इतिहास में पहली बार, नई सरकार के शपथ ग्रहण में किसी भी मुस्लिम चेहरे को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। 2014 और 2019 में एनडीए सरकार में एक मुस्लिम व्यक्ति को अल्पसंख्यक मामलों का केंद्रीय मंत्री बनाया गया था। इस बार किरेन रिजिजू, जो एक बौद्ध हैं, को अल्पसंख्यक मामलों के विभाग का केंद्रीय मंत्री बनाया गया है और जॉर्ज कूरियन, जो ईसाई हैं, को उनके विभाग में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है।

2014 में डॉक्टर नजमा हेपतुल्ला को अल्पसंख्यक मामलों का केंद्रीय मंत्री बनाया गया था, जो फिलहाल मणिपुर की राज्यपाल हैं। 2019 में मुख़्तार अब्बास नक़वी को अल्पसंख्यक मामलों का केंद्रीय मंत्री बनाया गया था, जिन्होंने 2022 में इस्तीफ़ा दे दिया था। उनके बाद स्मृति इरानी को इस विभाग का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया।

2022 से ही बीजेपी सरकार में कोई मुस्लिम मंत्री नहीं है और न ही संसद के किसी सदन में कोई मुस्लिम सांसद। देशभर की विधानसभाओं में बीजेपी के पास एक हज़ार से अधिक विधायक हैं, लेकिन उनमें केवल एक मुस्लिम विधायक है।

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की आबादी में मुसलमानों की संख्या 17.22 करोड़ है और वे कुल जनसंख्या का 14.2 फ़ीसदी हैं। अठारहवीं लोकसभा के लिए हुए चुनावों में 24 मुस्लिम सांसद निर्वाचित हुए हैं, जिनमें 21 विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के घटक दलों से हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों और विपक्षी पार्टियों के अनुसार, मुसलमानों की घटती राजनीतिक भागीदारी चिंताजनक है, जबकि बीजेपी इन दावों को खारिज करती है और कहती है कि वे धर्म या जाति के आधार पर टिकट नहीं बांटते और उनके निर्वाचित जनप्रतिनिधि सभी के फायदे के लिए काम करते हैं।

बीजेपी के प्रवक्ता और पूर्व राज्यसभा सांसद ज़फ़र इस्लाम ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां बीजेपी को हराने के एजेंडे को पूरा करने के लिए मुसलमानों का इस्तेमाल करती रही हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर कोई पार्टी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देती है और मुसलमान उसे वोट नहीं करते हैं, तो कौन सी पार्टी उन्हें टिकट देगी? इस्लाम का मानना है कि जो भी उम्मीदवार चुनाव जीतते हैं, वे सभी समुदायों को लाभ पहुंचाने के मामले में भेदभाव नहीं करेंगे।

ऐतिहासिक दृष्टि से भारत में मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में संसद में प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। संसद में मुस्लिम प्रतिनिधित्व लगभग पांच प्रतिशत के आसपास ही रहा है, जबकि चुनाव लड़ने वाले मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या लगातार घट रही है। 

2019 के लोकसभा चुनाव में 115 मुस्लिम उम्मीदवार थे, जबकि 2024 में यह संख्या घटकर 78 पर पहुंच गई। इससे संकेत मिलता है कि मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने की प्रवृत्ति में कमी आई है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रवृत्ति मुसलमानों की घटती राजनीतिक भागीदारी को दर्शाती है, जो चिंताजनक है।

विपक्षी दलों का मानना है कि मुसलमानों की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देना जरूरी है, जबकि बीजेपी का दावा है कि वे सभी समुदायों के लिए समान रूप से काम करते हैं और टिकट देने के मामले में धर्म या जाति को प्राथमिकता नहीं देते।

सत्तारूढ़ एनडीए के 293 सांसदों में एक भी सिख या ईसाई सांसद नहीं है जिन्होंने इस बार का लोकसभा चुनाव जीता हो। हालांकि, मोदी सरकार ने अपनी मंत्रिपरिषद में एक ईसाई मंत्री और दो सिख मंत्रियों को शामिल किया है। 

जॉर्ज कूरियन इस मंत्रिपरिषद में क्रिश्चियन मंत्री हैं, जबकि सिख मंत्री हरदीप सिंह पुरी और रवनीत सिंह बिट्टू हैं। बिट्टू फिलहाल लोकसभा या राज्यसभा के सदस्य नहीं हैं। उन्हें इस बार के लोकसभा चुनाव में टिकट दिया गया था, लेकिन वे चुनाव हार गए।

मोदी सरकार ने अपने मंत्रिमंडल में समाज के अन्य वंचित समूहों को भी भागीदारी दी है। अंग्रेज़ी न्यूज़ वेबसाइट द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के मंत्रिमंडल में दस दलितों, 27 अन्य पिछड़ा वर्ग और पांच धार्मिक अल्पसंख्यकों को शामिल किया गया है। 

यह भागीदारी दिखाती है कि सरकार ने विभिन्न सामाजिक समूहों को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया है, भले ही मुसलमानों, सिखों और ईसाइयों का संसद में प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व कम हो। बीजेपी का दावा है कि वे सभी समुदायों के लिए समान रूप से काम करते हैं और उनके प्रतिनिधियों का चयन किसी विशेष धर्म या जाति पर आधारित नहीं होता।

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फ़ॉर पॉलिटिकल स्टडीज़ की एमेरिटा प्रोफ़ेसर ज़ोया हसन का कहना है कि मंत्रिमंडल में किसी मुसलमान का न होना कोई हैरत की बात नहीं है। उनका मानना है कि भले ही मंत्रिपरिषद जातियों और समुदायों के व्यापक प्रतिनिधित्व का दावा करती है, एक भी मुस्लिम मंत्री को शामिल न करने की बीजेपी की अनिच्छा किसी समुदाय को सत्ता से बाहर रखने की उसकी राजनीति को दर्शाती है। ज़ोया हसन के अनुसार, मुसलमानों को नाममात्र का प्रतिनिधित्व देने से भी पीछे हटना उन्हें हाशिये पर रखने के बड़े पैटर्न का संकेत देता है, जो लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांतों को कमजोर करता है।

अमेरिका के एमहर्स्ट कॉलेज में राजनीति विज्ञान के विज़िटिंग असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और नई दिल्ली स्थित सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फ़ेलो गिलीस वेरनियर्स का कहना है कि मुसलमानों को दरकिनार करने के मामले में बीजेपी का रवैया नहीं बदला है। एनडीए के सहयोगी दलों में किसी मुस्लिम का न होना इस बात का संकेत देता है कि मुसलमानों को दरकिनार किया जाना अब पूरी पार्टी में एक सामान्य स्वीकार्य बात हो गई है। वेरनियर्स के अनुसार, कांग्रेस ने भी बहुत अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिए हैं और 2014 में पार्टी के भीतर मुसलमानों का प्रतिनिधित्व भी घटा है, जिससे सार्वजनिक जीवन में मुसलमानों की भूमिका को कम किए जाने की प्रक्रिया तेज होती है।

अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, एनडीए के लोकसभा सांसदों में लगभग 33% अगड़ी जातियों से, 16% जाट और मराठा जैसी मंझोली जातियों से, 26% अन्य पिछड़ा वर्ग से, 13% अनुसूचित जाति से और 11% अनुसूचित जनजाति से आते हैं। इसकी तुलना में विपक्षी गठबंधन इंडिया के सांसदों में लगभग 12% अगड़ी और मंझोली जातियों से, 30% अन्य पिछड़ा वर्ग से, 17% अनुसूचित जाति से और 10% अनुसूचित जनजाति से आते हैं।

इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय राजनीति में विभिन्न जातियों और समुदायों के प्रतिनिधित्व में असमानता है। विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व न होना लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लिए चिंता का विषय है। ज़ोया हसन और गिलीस वेरनियर्स दोनों ही इस प्रवृत्ति को लोकतंत्र के लिए हानिकारक मानते हैं, क्योंकि यह समग्र प्रतिनिधित्व और समावेशी नीति के सिद्धांतों के खिलाफ है।

बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने की कोशिश की है, जैसा कि आपने कहा। इस राह में, उसने यूपी के निकाय चुनावों में 395 मुसलमानों को टिकट दिया, जिनमें 90% पसमांदा थे। यह एक बड़ी घटना के रूप में देखा गया। स्थानीय निकाय चुनावों में भी बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों को टिकट दिया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि बीजेपी को पार्टी के स्तर पर भी और स्थानीय स्तर पर भी मुसलमानों के प्रति अपनी उपस्थिति को मजबूत करने की इच्छा है।

राजनीतिक विश्लेषक असीम अली भी इसे मानते हैं कि बीजेपी को मुसलमान उम्मीदवारों के माध्यम से अपने अनुयायियों के विश्वास को बढ़ाने की चुनौती का सामना करना है। यह तब हो सकता है जब लोग स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ते हैं और स्थानीय प्रशासन के समर्थन को महत्वपूर्ण मानते हैं। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक भी यह बात मानते हैं कि विधानसभा और लोकसभा चुनावों में पार्टी की विचारधारा और उम्मीदवारों का चयन महत्वपूर्ण होता है, जिसमें बीजेपी मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट नहीं देती है और इसलिए मुसलमान मतदाता बीजेपी को वोट नहीं करते हैं।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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