बरसन लागे बदरिया, रुम झूम के : जब बारिश ने रच दी तबाही की कहानी

गांव में भारी बारिश के दौरान लोग कमर-भर पानी में फंसे हुए, एक महिला बच्चे को गोद में लिए हुए दिख रही है, पीछे मिट्टी के घर और घने पेड़ हैं।






-🔴 मोहन द्विवेदी की खास पड़ताल

जब बादल खुशी नहीं, संकट लाए

बरसात को भारत में सदियों से समृद्धि, हरियाली और जीवन का प्रतीक माना गया है। लोकगीतों में जब “बरसन लागे बदरिया, रुम झूम के” गूंजता है, तो किसान के चेहरे पर मुस्कान फैल जाती है। लेकिन 2025 के इस वर्ष, यही बदरिया कई राज्यों में मौत, तबाही और बेघरपन की दास्तां बन गई। असामान्य वर्षा, लगातार क्लाउडबर्स्ट, नदियों का उफान और पर्वतीय इलाकों में भूस्खलन ने पूरे देश में हाहाकार मचा रखा है। आइए देखें, इस बार बरसात ने किन-किन इलाकों को संकट के गर्त में धकेला।

प्रभावित राज्यों की स्थिति: हर दिशा में बाढ़ और बेबसी

इस बार की बारिश ने उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम — किसी को नहीं छोड़ा। पश्चिम बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और बिहार — लगभग पूरा देश जलविपदा की गिरफ्त में है।

पश्चिम बंगाल

दार्जिलिंग और कोलकाता में बारिश ने रिकॉर्ड तोड़ दिए। दार्जिलिंग में भूस्खलन और तेज़ बारिश से 18 से अधिक लोगों की मौत हुई जबकि कोलकाता में 24 घंटे में 250 मिलीमीटर से ज्यादा पानी बरसा, जिससे कई इलाके जलमग्न हो गए और 12 लोगों की जान चली गई।

पंजाब

1,400 से ज्यादा गाँव बाढ़ में डूब गए हैं। खेतों में पकी फसलें बर्बाद हो चुकी हैं और नदियाँ खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। मरने वालों की संख्या 55 से अधिक बताई जा रही है।

हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर

हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में बारिश के साथ मौत बरसी। बिलासपुर ज़िले में एक बस पर हुए भूस्खलन में 15 यात्रियों की दर्दनाक मौत हो गई। वहीं जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले में क्लाउडबर्स्ट से 68 लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए।

महाराष्ट्र

यहाँ पानी से अधिक नुकसान फसलों का हुआ है। करीब 68.7 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर फसलें नष्ट हो चुकी हैं। राज्य सरकार ने किसानों के लिए ₹31,628 करोड़ का अब तक का सबसे बड़ा राहत पैकेज घोषित किया है।

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दक्षिण भारत

ओडिशा, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में लगातार भारी वर्षा के कारण निचले इलाकों में पानी भर गया है, सड़कों पर यातायात ठप है और बिजली आपूर्ति बाधित है।

उत्तराखंड और हिमाचल

हरसिल और किन्नौर क्षेत्रों में भूस्खलन से कई घर जमींदोज़ हो गए हैं। हर बारिश इन राज्यों के लिए मौत का नया खतरा बन चुकी है।

बारिश की तबाही का भूगोल: आँकड़ों में त्रासदी

भारत मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, अक्टूबर 2025 में सामान्य से 115% अधिक वर्षा दर्ज की गई। मॉनसून की वापसी में देरी और चक्रवातीय गतिविधियों ने मौसम के स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया है। यह असंतुलित मौसम प्रवृत्ति भविष्य में और गहरी जलविपदा का संकेत दे रही है।

लोगों की पीड़ा : जब घर उजड़ते हैं

किसान की आँखों से बारिश

पंजाब के मोगा ज़िले के किसान गुरप्रीत सिंह बताते हैं— “धान की फसल तो अच्छी थी, पर अब खेत में सिर्फ पानी है। दो महीने की मेहनत एक रात में खत्म हो गई।” यह कहानी हजारों किसानों की कहानी है, जिनकी फसलें बाढ़ में बह गईं और मुआवजे की उम्मीदों में बस इंतज़ार बाकी है।

शहरी संकट : कोलकाता और मुंबई की सच्चाई

कोलकाता की गलियाँ झीलों में बदल गई हैं। घरों में घुटनों तक पानी, बिजली की कमी और मच्छरों का आतंक अब रोजमर्रा की बात है। मुंबई में भी कई जगहों पर बारिश ने ट्रैफिक व्यवस्था को पंगु बना दिया। लोअर परेल, धारावी, वडाला जैसे इलाकों में जलजमाव के कारण सैकड़ों परिवारों को अस्थायी राहत शिविरों में भेजा गया।

पहाड़ों में मौत की खामोशी

हिमाचल के बिलासपुर में बस पर भूस्खलन की घटना में एक ही परिवार के चार सदस्यों की मौत ने राज्य को झकझोर दिया। दरजींग में बचाव दलों को फंसे लोगों तक पहुँचने में कई घंटे लग गए, क्योंकि सड़कें ही गायब हो चुकी थीं।

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प्रशासनिक मोर्चा : राहत और राजनीति दोनों

बारिश की आपदा ने प्रशासनिक मशीनरी की परीक्षा भी ले ली है। पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने मुआवजे की घोषणा कर दी है, पर राहत का वितरण धीमी गति से हो रहा है। महाराष्ट्र सरकार ने किसानों के लिए ₹31,628 करोड़ का विशेष राहत पैकेज जारी किया है। कर्नाटक में 12.5 लाख हेक्टेयर फसल प्रभावित हुई है, जिसके लिए ₹2,000 करोड़ की राहत की घोषणा हुई। पंजाब में केंद्र और राज्य के बीच SDRF फंड के उपयोग को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। कोलकाता नगरपालिका ने जलनिकासी और बिजली बहाली के लिए 300 पंपिंग टीमों को 24×7 काम पर लगाया है, फिर भी राहत हर हाथ तक नहीं पहुँच पा रही।

आर्थिक और सामाजिक असर: जब बरसात बन जाए विपत्ति

इस वर्ष की बेमौसम बारिश ने न केवल जानें ली हैं बल्कि अर्थव्यवस्था को भी गहरी चोट पहुंचाई है। कृषि क्षेत्र को सबसे अधिक नुकसान हुआ है — खरीफ फसलें पूरी तरह डूब गईं। कपास, धान और सब्ज़ी उत्पादक किसानों को भारी घाटा हुआ है। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और पंजाब के कई छोटे व्यापारी अब दिवालिया होने की कगार पर हैं क्योंकि गोदाम और दुकानों का माल पानी में बह गया। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी स्थिति भयावह है। बाढ़ग्रस्त इलाकों में मलेरिया, डेंगू, डायरिया और टाइफॉइड जैसे जलजनित रोग फैल रहे हैं। स्वच्छ पानी और दवाइयों की कमी ने ग्रामीण इलाकों में संकट को और गहरा किया है।

चुनौतियाँ और सवाल

  • क्या हम तैयार थे? मौसम विभाग की चेतावनियाँ थीं, लेकिन जिला प्रशासन और शहरी निकायों की तैयारी नदारद रही।
  • क्या राहत पहुँच रही है? कई जगहों पर मुआवजा सर्वेक्षण में देरी और भ्रष्टाचार की शिकायतें हैं।
  • क्या भविष्य में ऐसी आपदा को रोका जा सकता है? विशेषज्ञों का मानना है कि जलनिकासी, भूमि उपयोग और अवैध निर्माण पर सख्ती लाए बिना ऐसी घटनाएँ बढ़ती जाएँगी।
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आगे की राह : समाधान और सुधार

आपदा पूर्व चेतावनी तंत्र का सुदृढ़ीकरण

IMD और राज्य मौसम केंद्रों को आधुनिक तकनीकों (AI आधारित फोरकास्ट मॉडल, सैटेलाइट मैपिंग) से लैस करना होगा ताकि स्थानीय स्तर पर चेतावनी समय से पहुँच सके।

भूमि उपयोग नीति में सुधार

नदी किनारे और भूस्खलन संभावित इलाकों में निर्माण पर प्रतिबंध लागू करना आवश्यक है।

कृषि और बीमा सुधार

फसल बीमा योजनाओं को सरल, पारदर्शी और स्वचालित बनाना चाहिए ताकि किसान को तुरंत मुआवजा मिले।

बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण

नालों, सड़कों और पुलों की नियमित सफाई और रखरखाव के लिए स्थानीय निकायों को विशेष फंड आवंटित किए जाएँ।

सामुदायिक भागीदारी

आपदा प्रबंधन को सरकारी जिम्मेदारी भर नहीं बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी भी बनाना होगा। पंचायतें, स्वयंसेवी संगठन और स्थानीय नागरिक आपदा से पहले और बाद में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

बरसन लागे बदरिया… मगर अब डर के साथ

“बरसन लागे बदरिया, रुम झूम के” अब खुशी का गीत नहीं, बल्कि चेतावनी बन चुका है। यह बरसात हमारे विकास मॉडल, जल नीति और पर्यावरणीय दृष्टिकोण की असल परीक्षा है। प्रकृति अब बार-बार यह संदेश दे रही है कि अगर हम उसके संतुलन से खिलवाड़ करेंगे तो हर बूंद हमें सवाल पूछेगी। भारत को अब राहत और मुआवजे से आगे बढ़कर “पूर्व तैयारी” और “दीर्घकालीन पुनर्वास” की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।



दशरथ मांझी हथौड़ी और छैनी से गहलौर पहाड़ी को काटते हुए; सुनहरी सांझ की रोशनी में उनके दृढ़ हाव-भाव और बनती सड़क का पास का दृश्य
माउंटेन मैन दशरथ मांझी — 22 वर्षों के अथक संघर्ष से गहलौर पहाड़ी में रास्ता बनाते हुए।

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