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November 2, 2024 3:00 am

पारिवारिक परंपरा और साख को बचाने, भिड़े हुए हैं खानदानी राजनीति की अगली पीढ़ी

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

लखनऊ: उत्तर प्रदेश समेत देश भर में चुनावी बिगुल बज चुका है। यूं तो हर दल और प्रत्याशी की राजनीतिक साख चुनाव मैदान में दांव पर है लेकिन कुछ ऐसे भी प्रत्याशी है, जिन पर अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है और इन प्रत्याशियों की जीत-हार पर उनके परिवार की राजनीतिक पूंजी भी दांव पर है। 

अब देखना दिलचस्प होगा कि अपनी नई राजनीतिक पारी में राजनीतिक परिवारों के ये नए सदस्य क्या करते हैं।

इन पर परिवार की विरासत बढ़ाने का जिम्मा

अरविंद राजभर

सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के बड़े बेटे अरविंद राजभर घोसी लोकसभा सीट से प्रत्याशी हैं। उन्हें बीजेपी का समर्थन प्राप्त है। हाल में उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने मऊ के दौरे पर बीजेपी कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर अरविंद को जिताने की अपील भी की थी। 

ओम प्रकाश राजभर पड़ोसी जिले गाजीपुर की जहूराबाद सीट से विधायक हैं। अभी तक सुभासपा ने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं की है। ऐसे में अरविंद पर यह भी जिम्मेदारी है कि सुभासपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतने वाले वह पहले नेता बनें।

प्रवीण निषाद

निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद एक बार फिर गोरखपुर से सटी संत कबीरनगर लोकसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी हैं। 

यूं तो प्रवीण निषाद बीजेपी के टिकट पर लड़ रहे हैं। मगर इस चुनाव में प्रतिष्ठा उनके पिता संजय निषाद की दांव पर है, क्योंकि इस सीट पर निषाद पार्टी का अच्छा प्रभाव रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी प्रवीण निषाद को इस सीट से जीत मिली थी।

आनंद गौड़

बीजेपी के पुराने नेता अक्षयबर लाल गौड़ के बेटे आनंद गौड़ को बीजेपी ने इस बार बहराइच से प्रत्याशी बनाया है। अक्षयबर अभी बहराइच से सांसद हैं, मगर पार्टी ने इस बार उनके बेटे पर भरोसा जताया है। 

अक्षयबर को 2019 में इस सीट से 5.25 लाख से अधिक वोट मिले थे। वह 2009 में भी से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। ऐसे में अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब आनंद पर है।

श्रेया वर्मा

पहले सपा और बाद में कांग्रेस के दिग्गज नेता और केंद्रीय मंत्री रहे बेनी प्रसाद वर्मा की तीसरी पीढ़ी राजनीति में एंट्री करने जा रही है। बेनी की पौत्री श्रेया वर्मा इस बार चुनाव मैदान में हैं। सपा ने उन्हें गोंडा से टिकट दिया है। 

बेनी इस सीट से 2009 में सांसद चुने गए थे। 2014 में भी वह चुनाव लड़े थे, मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। गोंडा लोकसभा क्षेत्र की कई विधानसभा सीटों पर भी बेनी का अच्छा प्रभाव था।

चंदन चौहान

लोकसभा चुनाव से पहले सपा गठबंधन से अलग होकर NDA में शामिल होने वाले राष्ट्रीय लोकदल ने चंदन चौहान को बिजनौर से उम्मीदवार बनाया है। 

चंदन के पिता 2009 में बिजनौर से सांसद रह चुके हैं। उनके दादा नारायण सिंह चौहान 1979 में यूपी के उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं। चंदन मौजूदा समय में मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट से विधायक हैं।

इकरा हसन

सपा विधायक नाहिद हसन की बहन इकरा हसन को सपा ने कैराना से उम्मीदवार बनाया है। नाहिद कैराना विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक हैं। नाहिद और उनके परिवार का कैराना में प्रभाव माना जाता है।

अक्षय यादव

सपा महासचिव रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव तीसरी बार फिरोजाबाद लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं। 

इससे पहले अक्षय 2014 और 2019 में भी इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, जिसमें 2014 में उन्हें जीत मिली थी। 2019 में इस सीट से बीजेपी के डॉ. चन्द्र सेन जादौन करीब 28,000 वोटों से जीते थे।

आदित्य यादव

सपा ने बदायूं लोकसभा सीट से शिवपाल का टिकट बदलकर उनके बेटे आदित्य यादव को मैदान में उतारा है। आदित्य पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। मगर इस चुनाव में आदित्य से अधिक उनके पिता शिवपाल यादव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। 

बदायूं को सपा की परंपरागत सीट माना जाता है। इस सीट से मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव 2009 और 2014 में सांसद चुने गए थे। 2019 में सपा को भले इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा था, मगर 1996 से 2014 तक यहां सपा ही जीता।

शशांक मणि त्रिपाठी

बीजपी ने देवरिया से शशांक मणि त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया है। शशांक के पिता प्रकाश मणि त्रिपाठी यहां से दो बार सांसद रह चुके हैं।

शशांक के परिवार की गिनती देवरिया के सम्मानित परिवारों में होती है। शशांक के बाबा गोरखपुर के जिलाधिकारी भी रह चुके हैं।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."