
अनिल अनूप की खास प्रस्तुति
उत्तर प्रदेश (यूपी) में शिक्षा व्यवस्था का बड़ा हिस्सा प्राथमिक और उच्च विद्यालयों के शिक्षकों पर टिका है। लेकिन वास्तविकता यह है कि शिक्षक केवल पढ़ाने का कार्य ही नहीं करते, बल्कि उन्हें चुनावी ड्यूटी, जनगणना, विभागीय रिपोर्ट और अन्य सरकारी कामों में भी झोंक दिया जाता है। यही वह बिंदु है जहां सवाल उठता है – मुद्दा क्या है और क्यों जरूरी है? क्या शिक्षकों का समय और ऊर्जा शिक्षा पर केंद्रित रहना चाहिए या उन्हें अन्य सरकारी कामों में भी लगाया जाना चाहिए?
यूपी में शिक्षा की स्थिति और शिक्षक संख्या
UDISE+ रिपोर्ट (2023-24) के अनुसार यूपी में लगभग 16.2 लाख शिक्षक कार्यरत हैं, जो 2.6 लाख स्कूलों में पढ़ाते हैं। इतने बड़े पैमाने पर शिक्षा की जिम्मेदारी उठाने के बावजूद शिक्षकों का एक बड़ा हिस्सा साल के कई महीनों तक गैर-शैक्षिक कार्यों में व्यस्त रहता है।
ये कहते हैं 👇
प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन के जिला एवं मांडलिक मंत्री प्रदीप कुमार वर्मा ने कहा कि शिक्षक समाज की सबसे अहम कड़ी हैं और उनकी भूमिका बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की है। लेकिन जब उन्हें शिक्षा के अतिरिक्त विभिन्न गैर-शैक्षिक कार्यों में लगाया जाता है, तो इससे शिक्षण कार्य प्रभावित होता है। उनका मानना है कि सरकार को शिक्षकों की ऊर्जा और समय का उपयोग मुख्यतः शिक्षण प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाने में करना चाहिए ताकि नई पीढ़ी को बेहतर भविष्य मिल सके।
शिक्षक और गैर-शैक्षिक कार्य: असली तस्वीर
यूपी में शिक्षकों से कराए जाने वाले गैर-शैक्षिक कार्य इस प्रकार हैं:
चुनावी ड्यूटी (मतदान अधिकारी, प्रेज़ाइडिंग ऑफिसर, बूथ प्रभारी)
जनगणना और सामाजिक सर्वेक्षण
UDISE+ और विभागीय रिपोर्टिंग
स्वास्थ्य/टीकाकरण अभियान
आपदा प्रबंधन और अन्य सरकारी कार्यक्रम

यह सब मिलाकर मूल सवाल को जन्म देता है कि मुद्दा क्या है और क्यों जरूरी है शिक्षकों को इन कार्यों में लगाना, जबकि उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी छात्रों को पढ़ाना है।
शिक्षा पर असर : क्यों बढ़ रही है चिंता
1. पढ़ाई का समय घटता है – चुनावी ड्यूटी और सर्वे कार्यों में जाने से कक्षाएँ बाधित होती हैं।
2. एकल शिक्षक स्कूल प्रभावित – एकमात्र शिक्षक के अनुपस्थित होने पर पूरा स्कूल ठप हो जाता है।
3. मनोवैज्ञानिक दबाव – बार-बार अतिरिक्त कार्यभार से शिक्षकों का मनोबल गिरता है।
4. गुणवत्ता में गिरावट – लगातार रुकावट से छात्रों की सीखने की गति धीमी होती है।
कानूनी और नीतिगत पक्ष
चुनाव आयोग मानता है कि शिक्षकों को मतदान ड्यूटी पर लगाया जा सकता है, पर तभी जब अन्य विकल्प उपलब्ध न हों।
आलाहाबाद हाईकोर्ट (2025) ने भी कहा कि बच्चों की पढ़ाई को प्रभावित किए बिना ही शिक्षकों की ड्यूटी तय की जानी चाहिए।
यहां फिर से वही प्रश्न उभरता है – मुद्दा क्या है और क्यों जरूरी है कि शिक्षकों की बजाय वैकल्पिक स्टाफ का उपयोग न किया जाए?
उदाहरण
2024 लोकसभा चुनाव में यूपी के हजारों शिक्षक हफ्तों तक ड्यूटी पर लगे रहे। परिणामस्वरूप कई स्कूलों की कक्षाएँ बंद रहीं।
COVID-19 के दौरान शिक्षकों को स्वास्थ्य अभियान और वैक्सीनेशन ड्यूटी में लगाया गया, जिससे शिक्षा पूरी तरह प्रभावित हुई।
समाधान की दिशा
1. चुनाव और सर्वे कार्यों के लिए अलग स्थायी स्टाफ की नियुक्ति।
2. रिपोर्टिंग और डाटा एंट्री के लिए तकनीकी कर्मियों की तैनाती।
3. एकल शिक्षक स्कूलों को क्लस्टर स्कूल मॉडल से जोड़ा जाए।
4. गैर-शैक्षिक कार्यों में शिक्षकों की भागीदारी पर कानूनी सीमा तय हो।
स्पष्ट है कि यूपी की शिक्षा व्यवस्था में सुधार तभी संभव है जब शिक्षकों को उनकी मूल जिम्मेदारी यानी पढ़ाने पर केंद्रित रहने दिया जाए। गैर-शैक्षिक कार्यों में उनकी संलिप्तता से बच्चों का भविष्य प्रभावित होता है। इसलिए मुद्दा क्या है और क्यों जरूरी है – यह सिर्फ शिक्षकों की चिंता नहीं, बल्कि पूरे समाज और देश की शिक्षा-गुणवत्ता का सवाल है।

सरकार द्वारा शिक्षा सुरक्षा दोनों का बजट अन्य देशों की तुलना में भारत में बहुत कम है। जिसका परिणाम सामने है आपके सटीक विश्लेषण के लिए साधुवाद
हर सरकारी कर्मचारी अपने पैतृक विभाग से दूर होता जा रहा है और विशेष कर शिक्षकों को निर्वाचन विभाग का कार्य अधिक दबाव के अंदर करवाया जा रहा है.
वैसे एक चिंता का विषय यह भी है कि दूसरे देशों की बधाई भारत में शिक्षा और रक्षा पर कम बजट में किया जा रहा है।
आपका विश्लेषण में काफी सटीक बातें और सार्थक बातें पढ़ने को मिली बहुत-बहुत धन्यवाद
शिक्षकों को गैस शैक्षणिक कार्यक्रम में लगाने की स्थिति पूरे देश भर में बहुत हीं दयनीय हैं। परिणाम स्वरुप हमारी शिक्षा व्यवस्था पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है। एक शिक्षक को जनगणना, आर्थिक गणना, पशु गणना, निर्वाचनकार्य, किसी भी आपात स्थिति, यहां तक की आज कल नेताओं की सभाओं में भीड़ जुटाने का भी जिम्मा दे दिया जाता हैं।
कुल मिला कर शिक्षा के अधिकार पर खतरनाक हमला हैं।