ब्यूरो रिपोर्ट, चित्रकूट।
चित्रकूट से रिपोर्ट: संवाददाता। चित्रकूट जिले के वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह राणा के साथ हुए कथित साज़िशन सड़क हादसे को अब चार साल बीत चुके हैं, लेकिन न्याय की राह आज भी लंबी और अनिश्चित है। 14 अगस्त 2021 को हुआ यह हादसा केवल एक सड़क दुर्घटना नहीं था, बल्कि पत्रकारिता की सच्चाई लिखने की कीमत चुकाने जैसा एक सोचा-समझा हमला बताया जा रहा है।
हादसे की पृष्ठभूमि: एक आवाज़ को दबाने की कोशिश
संजय सिंह राणा लंबे समय से चित्रकूट जिले में सक्रिय पत्रकार हैं, जिन्होंने सामाजिक और प्रशासनिक गड़बड़ियों को उजागर करने का कार्य किया है। वे सरकारी योजनाओं की अनियमितताओं और जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं। 14 अगस्त 2021 को रामनगर ब्लॉक की ओर जाते समय राष्ट्रीय राजमार्ग पर उनकी बाइक को तेज रफ्तार वाहन ने टक्कर मारी, जिसमें वे गंभीर रूप से घायल हो गए। चश्मदीदों के अनुसार, आरोपी वाहन चालक मौके से फरार हो गया। चार साल बीत जाने के बावजूद, पुलिस उस वाहन या उसके चालक का अब तक कोई सुराग नहीं ढूंढ सकी है।
जांच या लीपापोती? पुलिस की भूमिका पर सवाल
घटना के बाद रैपुरा पुलिस ने केवल औपचारिकता निभाई। पत्रकार राणा ने बार-बार निष्पक्ष जांच और एफआईआर दर्ज करने की मांग की, लेकिन उन्हें हर बार “जांच जारी है” कहकर टाल दिया गया। 15 अगस्त 2025 को उन्होंने प्रभारी निरीक्षक विनोद कुमार शुक्ल को पुनः आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई, पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
“चार साल बीत जाने के बाद भी पुलिस ने न तो जांच की और न ही एफआईआर दर्ज की। आखिर पुलिस प्रशासन के ऊपर कौन सा दबाव है कि एक पत्रकार के ऊपर हुए जानलेवा एक्सीडेंट की अभी तक प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गई?”
सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया
चित्रकूट प्रेस क्लब, जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और कई मीडिया संगठनों ने इस घटना की निंदा की है। उनका कहना है कि यह मामला प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। एक पत्रकार संघ के सदस्य ने कहा —
“जब एक पत्रकार, जो जनता की आवाज़ बनता है, उसी की आवाज़ को दबाने की कोशिश हो, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।”
अब भी अनुत्तरित सवाल
- चार साल बाद भी एफआईआर दर्ज क्यों नहीं हुई?
- किसके दबाव में जांच को टालमटोल किया गया?
- क्या इस मामले में कोई राजनीतिक या प्रशासनिक प्रभाव काम कर रहा है?
- अगर यह सामान्य दुर्घटना थी तो वाहन और चालक अभी तक अज्ञात क्यों हैं?
- पत्रकार सुरक्षा कानून के अभाव में पत्रकार कहां जाए?
पत्रकार सुरक्षा पर प्रश्न
यह घटना भारत में पत्रकार सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करती है। कई पत्रकार सच्चाई सामने लाने की कोशिश में धमकियों और हमलों का सामना करते हैं। ऐसे में संजय सिंह राणा का मामला न्याय व्यवस्था की निष्क्रियता पर गंभीर प्रश्न उठाता है। न तो उन्हें आर्थिक सहायता मिली, और न ही किसी सरकारी विभाग ने उनकी सुध ली।
न्याय की उम्मीद और आगे की राह
अब पत्रकार संजय सिंह राणा ने चित्रकूट के पुलिस अधीक्षक से मामले की पुनः जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि यदि प्रशासन ने अब भी चुप्पी साधी, तो वे प्रदेश स्तर पर आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे।
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर चोट
यह केवल एक व्यक्ति की लड़ाई नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की परीक्षा है जो प्रेस की स्वतंत्रता पर गर्व करती है। जब सच्चाई लिखने वाला ही पीड़ित हो जाए, तो यह लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार जैसा है।
निष्कर्ष
चार साल बाद भी न्याय की उम्मीद ज़िंदा है। संजय सिंह राणा अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं। यह मामला इस बात का प्रतीक है कि सच्चाई लिखने की कीमत आज भी एक पत्रकार को चुकानी पड़ रही है। समाज और प्रशासन से अब यही उम्मीद है कि वे सच्चाई के साथ खड़े हों।







