
ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
कुमाता औरत, बेरहम बाप: शाहजहांपुर में मिट्टी के ढेर से मिली नवजात की करुण कहानी
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई है। यहां कुमाता औरत, बेरहम बाप की संज्ञा पाने योग्य माता-पिता ने अपनी 20 दिन की मासूम बेटी को मिट्टी के ढेर में छोड़ दिया। यह बच्ची ज़िंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही है।
चरवाहे की सतर्कता और ग्रामीणों की मदद से यह मासूम मिट्टी के ढेर से निकाली जा सकी। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर एक मां और पिता कैसे अपनी औलाद के साथ इतनी बेरहमी कर सकते हैं?
कुमाता औरत, बेरहम बाप : मिट्टी में दबे छोटे हाथ की पुकार
रिपोर्ट्स के अनुसार, जब एक चरवाहा बकरियां चरा रहा था, तो उसे मिट्टी के ढेर से धीमी रोने की आवाज सुनाई दी। पास जाकर उसने देखा कि मिट्टी से एक नन्हा हाथ बाहर निकला हुआ है। तुरंत ग्रामीणों को बुलाया गया और फिर पुलिस की मदद से बच्ची को बाहर निकाला गया। यह दृश्य जिसने देखा उसकी आंखें नम हो गईं।
कुमाता औरत, बेरहम बाप : अस्पताल में संघर्ष करती मासूम
बचाई गई बच्ची को शाहजहांपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। अस्पताल के प्रिंसिपल डॉ. राजेश कुमार के अनुसार, जब बच्ची को लाया गया था तो उसके शरीर पर मिट्टी और ज़ख्म थे। उसकी नाक और मुंह में मिट्टी घुस गई थी, जिससे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी।
डॉ. कुमार ने बताया कि बच्ची को हाइपोक्सिया (ऑक्सीजन की कमी) और संक्रमण जैसी गंभीर समस्याएं हैं। कीड़ों और जानवरों के काटने के भी निशान उसके शरीर पर हैं। डॉक्टरों की टीम, जिसमें एक प्लास्टिक सर्जन भी शामिल है, उसे बचाने की कोशिश कर रही है। हालांकि, उसकी हालत अभी भी गंभीर है।
कुमाता औरत, बेरहम बाप : पुलिस की तलाश जारी
पुलिस का कहना है कि बच्ची के माता-पिता की तलाश की जा रही है। राज्य की चाइल्ड हेल्पलाइन को भी मामले की जानकारी दी गई है। लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि किसने इस नवजात को मिट्टी के हवाले किया। यह घटना सिर्फ अपराध नहीं बल्कि समाज की उस सोच का आईना है, जहां बेटियों को बोझ माना जाता है।
कुमाता औरत, बेरहम बाप : यह पहली घटना नहीं
यह पहली बार नहीं है जब किसी नवजात को इस तरह छोड़ा गया हो। साल 2019 में भी एक बच्ची को मिट्टी के घड़े में जिंदा डाल दिया गया था। हालांकि, कई सप्ताह इलाज के बाद वह स्वस्थ हो गई थी।
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भारत में लिंग अनुपात की असमानता ऐसे मामलों की जड़ है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि बेटे की चाहत की वजह से लाखों बेटियां भ्रूण हत्या और नवजात हत्या की शिकार होती हैं।
कुमाता औरत, बेरहम बाप : समाज की सोच और लिंग भेदभाव
भारत को दुनिया के सबसे खराब लिंग अनुपात वाले देशों में गिना जाता है। ग्रामीण और गरीब तबकों में लड़कियों को आज भी आर्थिक बोझ माना जाता है। कुमाता औरत, बेरहम बाप जैसी घटनाएं इसी मानसिकता का परिणाम हैं।
लड़कियों को जन्म से पहले ही अवैध लिंग परीक्षण कराकर गर्भपात के जरिए मार दिया जाता है। और जो जन्म ले भी लेती हैं, उन्हें इस तरह मिट्टी में दफना दिया जाता है।
कुमाता औरत, बेरहम बाप : सवाल जो हमें सोचने पर मजबूर करते हैं
क्या बेटियों का जीवन इतना सस्ता है कि उन्हें मिट्टी में दबा दिया जाए?
क्या माता-पिता का प्रेम सिर्फ बेटों तक सीमित है?
क्या समाज को अब भी यह समझ नहीं आया कि बेटियां ही घर की असली लक्ष्मी होती हैं?
कुमाता औरत, बेरहम बाप : बदलाव की ज़रूरत
समाज में बदलाव लाना होगा। सरकार और प्रशासन को ऐसे मामलों में सख्त कदम उठाने होंगे। साथ ही जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को समझाना होगा कि बेटियां बोझ नहीं, बल्कि बराबरी का हक रखने वाली इंसान हैं।
नवजात को मिट्टी में छोड़ने वाली कुमाता औरत, बेरहम बाप की सोच को बदलने के लिए शिक्षा, सख्त कानून और सामाजिक भागीदारी ज़रूरी है।
शाहजहांपुर की यह घटना सिर्फ एक बच्ची की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारी सामाजिक सोच पर सवाल खड़े करती है। जब तक समाज में बेटे-बेटी के बीच भेदभाव रहेगा, तब तक कुमाता औरत, बेरहम बाप जैसी घटनाएं होती रहेंगी।
यह समय है कि हम हर बेटी के जन्म का स्वागत करें, उसे सुरक्षित और सशक्त बनाएं। तभी सच्चे अर्थों में समाज सभ्य और मानवीय कहलाएगा।
