खदान की खामोशी में गूंज रही चीखें, मजदूर जिंदा दफन हो गए — सोनभद्र खदान हादसा की सच को दबाने की साजिश






खदान की खामोशी में गूंज रही चीखें — सोनभद्र खदान हादसा | चुन्नीलाल प्रधान


चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

सोनभद्र खदान हादसा: उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के ओबरा क्षेत्र की कृष्णा माइनिंग खदान में हुई यह त्रासदी सिर्फ एक दुर्घटना नहीं दिखती। सात मजदूरों की जान जाने के बाद उठे सवाल, पहले की चेतावनियाँ और प्रशासनिक कागज़ात मिलकर यह संकेत देते हैं कि सोनभद्र खदान हादसा एक गहरी सिस्टमिक विफलता और संभवत: सच दबाने की साजिश का परिणाम भी हो सकता है।

मौके की तस्वीर — कैसे हुआ यह विनाश

खदान की अंदरूनी सुरंगों में मलबा ढहने से मजदूरों का दफन होना कितना भयावह है, इसे शब्दों में परिभाषित करना मुश्किल है। स्थानीय लोगों और पारिवारिक सदस्यों का कहना है कि उस दिन खदान में सुरक्षा इंतज़ाम और बचाव उपकरण नहीं थे। घटनास्थल पर मौजूद दृश्य बताते हैं कि सोनभद्र खदान हादसा एक क्षणिक दुर्घटना के रूप में नहीं, बल्कि पहले से बढ़ते जोखिम की परिणति था।

पहले की चेतावनियाँ — क्या अनसुनी कर दी गईं?

विकास शाक्य और अन्य सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा एनजीटी व संबंधित विभागों को पहले ही सूचनाएँ और तकनीकी रिपोर्टें दी गई थीं। ऋतिशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (OA 1050/2024) के कागजात में स्पष्ट चित्रण था कि कृष्णा माइनिंग खदान जलस्तर से नीचे अनधिकृत खुदाई कर रही है और भारी ब्लास्टिंग से बड़े हादसे की संभावना है। इन चेतावनियों के बावजूद, जिन दस्तावेज़ों और वीडियो-प्रमाणों को पेश किया गया था, वे केन्द्र या स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली कार्रवाई में बदलने में विफल रहे — और परिणामस्वरूप यह सोनभद्र खदान हादसा हुआ।

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प्रशासन पर आरोप — झूठे हलफनामे और जांच की निष्पक्षता

विकास शाक्य ने मजिस्ट्रेट जांच को ‘खूनी दिखावा’ कहा है और आरोप लगाया है कि जिन अधिकारियों ने पहले एनजीटी के समक्ष खदान को सुरक्षित बताया, वही अब अपनी जांच चला रहे हैं। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या वही तंत्र निष्पक्ष रूप से सोनभद्र खदान हादसा की तह तक जा पाएगा? परिवारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि केवल स्वतंत्र न्यायाधीश-आधारित आयोग ही निष्पक्षता सुनिश्चित कर सकता है।

महत्वपूर्ण: यदि पहले दी गई सूचनाओं और तकनीकी रिपोर्टों को गंभीरता से लिया गया होता तो संभव है कि सोनभद्र खदान हादसा रोका जा सकता था।

कानूनी और नियामकीय जवाबदेही

खान एवं खनिज अधिनियम 1957 (संशोधित 2023) के तहत मासिक भौतिक सत्यापन करना कर्तव्य है। परन्तु मौके पर जिन दस्तावेजों की मांग की गई, उनमें लेखपाल व राजस्व निरीक्षक की रिपोर्टें अनुपस्थित पाईं गईं। यदि यह सच है, तो यह सिर्फ लापरवाही नहीं—यह नियामकीय जवाबदेही की असफलता है जिस कारण सोनभद्र खदान हादसा जैसी घटनाएँ दोहराई जा सकती हैं।

संयुक्त जांच दल की रिपोर्ट पर सवाल

9 अगस्त 2024 को गठित संयुक्त जांच दल ने कहा था कि खदान पर पर्याप्त सुरक्षा थी और भारी ब्लास्टिंग नहीं होती। पर स्थानीय साधनों और तकनीकी विशेषज्ञों ने उस निष्कर्ष को खंडित कर दिया। ऐसे विरोधाभासों के बीच यह स्पष्ट है कि जब रिपोर्टें कागज़ों में बनी रहती हैं और जमीन पर सत्यापन नहीं होता, तो परिणामस्वरूप वह दर्दनाक सोनभद्र खदान हादसा घटता है जिसकी हमने व्यथा देखी।

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पीड़ित परिवारों की आवाज़ और मांगें

पीड़ितों के परिजन न्याय चाहते हैं — मुआवजा, पारदर्शी जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई। सामाजिक कार्यकर्ता विकास शाक्य ने मुख्यमंत्री से मजिस्ट्रेटिव जांच रद्द कर के किसी सेवानिवृत्त हाईकोर्ट न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग की माँग की है। उनका तर्क है कि केवल स्वतंत्र न्यायिक जाँच ही सोनभद्र खदान हादसा की वास्तविकता को उजागर कर सकती है।

स्थानीय जनआंदोलन और राजनीतिक दबाव

घटना के बाद स्थानीय लोग, मानवाधिकार संगठन और कुछ राजनैतिक दलों ने जोरदार प्रतिक्रिया दी है। धरने, प्रदर्शन और सोशल मीडिया अभियानों के माध्यम से न्याय की माँग जोर पकड़ रही है। प्रशासन पर पारदर्शिता लाने के लिए जन-चेतना बढ़ रही है ताकि सोनभद्र खदान हादसा जैसी घटनाओं पर पुनरावृत्ति रोकी जा सके।

क्या सुधार संभव हैं? – सुझाव और आवश्यक कदम

  • तुरंत स्वतंत्र न्यायिक आयोग का गठन कर के सोनभद्र खदान हादसा की पूर्ण जांच कराना।
  • पीड़ित परिवारों को तत्काल आर्थिक सहायता और दीर्घकालिक मुआवजा सुनिश्चित करना।
  • खदानों के लाइसेंसों का ऑडिट और अनधिकृत खुदाई पर तुरंत कार्रवाई।
  • स्थानीय स्तर पर मासिक भौतिक सत्यापन की एक सुरक्षित और सार्वजनिक रिकॉर्ड प्रणाली लागू करना।

सोनभद्र खदान हादसा केवल एक निजी दुःख नहीं है—यह सामाजिक सुरक्षा और प्रशासनिक जवाबदेही का टेस्ट भी है। यदि हम आज निष्पक्षता और पारदर्शिता की माँग नहीं उठाते तो कल भी ऐसे हादसे दोहराए जा सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. सोनभद्र खदान हादसा कहाँ और कब हुआ?
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यह हादसा ओबरा क्षेत्र की कृष्णा माइनिंग खदान में हुआ। स्थानीय रिपोर्टों और eyewitness के हवाले से घटना हाल की तारीख़ में हुई है; आधिकारिक समय व तिथि की पुष्टि प्रशासन द्वारा जारी की जाएगी।

2. कितने मजदूरों की मौत हुई और क्या मुआवजा दिया गया?

रिपोर्ट के अनुसार सात मजदूरों की मौत हुई। फिलहाल आधिकारिक मुआवजे की घोषणा नहीं हुई है; पीड़ित परिवार न्यायिक जांच व प्रशासनिक कार्रवाई की माँग कर रहे हैं।

3. क्या पहले से चेतावनी मिली थी कि खदान असुरक्षित है?

हाँ। सामाजिक कार्यकर्ताओं और अधिवक्ताओं ने पहले एनजीटी व संबंधित विभागों को रिपोर्टें और तकनीकी साक्ष्य दिए थे, जिनमें अवैध खुदाई और जोखिम का जिक्र था। बावजूद इसके उचित कार्रवाई नहीं की गई, जिससे सोनभद्र खदान हादसा घटा।

4. क्या जांच निष्पक्ष है?

वर्तमान में मजिस्ट्रेटिव जांच चल रही है, पर परिजन और सामाजिक कार्यकर्ता न्यायिक जांच की माँग कर रहे हैं ताकि सोनभद्र खदान हादसा की गहन और निष्पक्ष तहकीकात संभव हो।

5. आम नागरिक क्या कर सकते हैं?

लोकल प्रतिनिधियों से संपर्क करके, सोशल मीडिया पर सत्य साझा कर के और शांतिपूर्ण रूप से पारदर्शिता की माँग करके आप मदद कर सकते हैं। साथ ही मानवाधिकार व कानूनी संगठनों को समर्थन देना असर दिखा सकता है।

रिपोर्टर: चुन्नीलाल प्रधान | संवाददाता: ओबरा, सोनभद्र

नोट: यह रिपोर्ट उपलब्ध स्थानीय स्रोतों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और प्राथमिक गवाहों के बयानों के आधार पर तैयार की गई है। आधिकारिक दस्तावेज़ और सरकारी बयान मिलने पर अपडेट प्रदान किया जाएगा।


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