लेखक: अंजनी कुमार त्रिपाठी
“वक्फ़” — यह शब्द सुनते ही ज़ेहन में धर्म, संपत्ति, और विवाद – तीनों की परछाईं एक साथ उभरती है। कभी इसे धार्मिक न्यास माना गया, कभी सामुदायिक संपत्ति, तो कभी राजनीतिक औज़ार। पर आज, जब देश में वक्फ़ बोर्डों की भूमिका और अधिकारों पर फिर से बहस छिड़ी है, तब यह सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर यह संस्था अपने असल उद्देश्य से कितनी दूर जा चुकी है?
वक्फ़ का असल अर्थ और उद्देश्य
इस्लामी परंपरा में वक्फ़ का अर्थ होता है—ऐसी संपत्ति जो अल्लाह के नाम समर्पित कर दी जाए, ताकि उसकी आमदनी समाज के भले के काम आए। यानी किसी ने ज़मीन या भवन इस शर्त पर दान किया कि उससे मस्जिद, मदरसा, अस्पताल या ज़रूरतमंदों की मदद का काम हो। यह एक तरह से समाज के भीतर सामाजिक-आर्थिक न्याय का धार्मिक मॉडल था।
भारत में वक्फ़ संपत्तियों का जाल व्यापक है। गांवों से लेकर महानगरों तक, मस्जिदों, कब्रिस्तानों, मदरसों और धर्मार्थ संस्थानों के रूप में फैली ये ज़मीनें आज अरबों रुपये की कीमत रखती हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह संपत्ति अपने असली मकसद के लिए इस्तेमाल हो रही है?
वक्फ़ बोर्ड – नियामक या विवाद का केंद्र?
हर राज्य में बने वक्फ़ बोर्डों का दायित्व था कि वे इन संपत्तियों का संरक्षण करें, इनसे प्राप्त आमदनी को जनकल्याण के कार्यों में लगाएँ। लेकिन सालों से यह बोर्ड चर्चा में अधिक और सुधार में कम रहे हैं। भ्रष्टाचार, कब्ज़े, फर्जी लीज़, राजनीतिक दखल और पारदर्शिता की कमी—इन मुद्दों ने वक्फ़ बोर्डों की साख को कमजोर किया है।
वक्फ़ संशोधन कानून : सुधार या नियंत्रण का प्रयास?
हाल ही में पारित वक्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 ने इस पूरे विमर्श को नया मोड़ दे दिया है। सरकार का तर्क है कि यह कानून वक्फ़ संपत्तियों में पारदर्शिता लाएगा, डिजिटल पंजीकरण सुनिश्चित करेगा और अवैध कब्जों से संपत्ति को मुक्त कराएगा।
लेकिन मुस्लिम संगठनों और वक्फ़ संस्थाओं का कहना है कि यह सुधार नहीं, बल्कि हस्तक्षेप है। उनका आरोप है कि सरकार वक्फ़ संपत्तियों पर प्रशासनिक नियंत्रण बढ़ाकर धार्मिक स्वायत्तता को सीमित कर रही है।
न्यायपालिका की चौखट और ठहरी हुई धाराएँ
जब यह नया कानून लागू हुआ, तो कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में पहुँचीं। अदालत ने तत्काल कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई। न्यायालय ने यह माना कि धार्मिक सम्पत्ति का प्रश्न केवल प्रशासनिक विषय नहीं हो सकता — इसमें धर्म की संवेदनशीलता और संविधान की धार्मिक स्वतंत्रता का पहलू जुड़ा है।
जमीन और ज़मीर का सवाल
भारत में वक्फ़ संपत्ति का क्षेत्रफल करोड़ों वर्ग मीटर में फैला हुआ है। बहुत-सी ज़मीनें सरकारी रिकॉर्ड में हैं, कुछ विवादित हैं, और बहुत-सी पर वर्षों से कब्ज़े हैं। यही कब्ज़े स्थानीय तनाव का कारण बनते हैं — कभी गांवों में, कभी शहरों के विकास-प्रोजेक्ट्स में।
राजनीति और धर्म के बीच फँसी संस्था
वक्फ़ बोर्डों की राजनीति हमेशा से दिलचस्प रही है। यहां धर्म और सत्ता दोनों का संगम दिखता है। सरकारें चाहती हैं कि इनके माध्यम से सामाजिक-धार्मिक कार्यों पर नज़र रखी जाए, जबकि समुदाय चाहता है कि यह संस्था स्वतंत्र रहे। बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्य अक्सर राजनीतिक रस्साकशी में चुने जाते हैं। परिणामस्वरूप निर्णय-प्रक्रिया में व्यक्तिगत या राजनीतिक हित प्रवेश कर जाते हैं।
आंकड़े और असलियत के बीच की खाई
कागज़ों में लाखों संपत्तियाँ दर्ज हैं, पर जमीनी स्तर पर उनकी स्थिति अस्पष्ट है। बहुत-से वक्फ़ रिकॉर्ड पुराने ज़माने के हैं, जिनमें सीमांकन स्पष्ट नहीं। डिजिटल पंजीकरण का विचार सही दिशा में कदम है, बशर्ते इसे ईमानदारी से लागू किया जाए। अगर डेटाबेस पारदर्शी और सार्वजनिक हो, तो भ्रष्टाचार के रास्ते कम होंगे।
समाज के लिए क्या मायने रखता है वक्फ़?
धार्मिक दृष्टि से वक्फ़ का मकसद केवल धार्मिक संस्थानों का संचालन नहीं, बल्कि समाज की ज़रूरतों को पूरा करना था। शिक्षा, चिकित्सा, रोज़गार और राहत-कार्यों में इसका योगदान अहम हुआ करता था। पर आज वक्फ़ बोर्डों के पास ज़मीनें हैं, पर दिशा नहीं। यदि यह संपत्ति निचले तबके और शिक्षा या महिला कल्याण के लिए इस्तेमाल होती, तो शायद कोई विवाद नहीं उठता।
आगे का रास्ता : संतुलन और सुधार
- पारदर्शी पंजीकरण और ऑडिट: हर वक्फ़ संपत्ति का रिकॉर्ड सार्वजनिक किया जाए और वार्षिक रिपोर्ट अनिवार्य हो।
- राजनीतिक दखल से मुक्ति: वक्फ़ बोर्डों की नियुक्ति पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया से हो।
- कानूनी-न्यायिक आयोग: वक्फ़ विवादों के लिए विशेष न्यायाधिकरण का गठन हो।
- समुदाय की भागीदारी: स्थानीय मुस्लिम समाज को निर्णय-प्रक्रिया में जोड़ा जाए ताकि यह संस्था अपने सामाजिक स्वरूप में लौट सके।
वक़्त वक्त का वक्फ़ है — और अगर इसकी आत्मा को फिर से समाज-सेवा और न्याय के मूलभाव में लौटाया गया, तो यह संस्था न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक पुनरुत्थान का माध्यम बन सकती है।
सवाल-जवाब (FAQ)








