दीवाली 2025 : महंगाई में राहत, कर सुधार और ‘बचत उत्सव’ का भारत


अनिल अनूप

✍️ संपादकीय टिप्पणी: भारत में हर दीवाली केवल दीपों का त्योहार नहीं — यह आर्थिक संकेतों और उपभोक्ता विश्वास का भी जश्न है। इस वर्ष की दिवाली में जो हलचल नजर आ रही है, वह न केवल बाजार की खरीदारी बल्कि देश की आर्थिक दिशा का भी प्रतिबिंब है।

इस दीवाली का माहौल कुछ अलग है। सबसे पहले, महंगाई में ऐतिहासिक गिरावट ने उपभोक्ता की जेब को सीधी राहत दी; इसके साथ ही सरकार के कर सुधारों और कृषि-क्षेत्र में भारी निवेश ने त्योहारी बाजारों में खरीदारी को नया उत्साह दिया है। संक्षेप में — यह वह समय है जब खर्च और बचत दोनों साथ-साथ चल रहे हैं।

इसे भी पढें  श्रीजड़खोर गोधाम में पहली बार भव्य श्रीगोपाष्टमी महोत्सव, राजस्थान सरकार एवं गोपालन निदेशालय के सहयोग से आयोजन

महंगाई में ऐतिहासिक गिरावट — उपभोक्ता राहत की साँस

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, सितंबर 2025 में उपभोक्ता मुद्रास्फीति (CPI) घटकर **1.54%** दर्ज हुई — यह दर पिछले आठ वर्षों में सबसे निचली है। नतीजतन, जरूरी वस्तुओं के दामों में नरमी आई है और आम घरों की क्रय-शक्ति में सुधार दिख रहा है।

क्यों महत्वपूर्ण है यह कमी?

पहला कारण यह है कि खाने-पीने की चीज़ों, विशेषकर सब्ज़ियों और दालों की कीमतों में गिरावट ने रोज़मर्रा के खर्चों को कम किया। दूसरी बात यह कि बूस्टेड खाद्य उत्पादन और बेहतर आपूर्ति-शृंखला ने मुद्रास्फीति-दबाव घटाया — जिसका सीधा लाभ त्योहारी खरीदारी पर पड़ा। 1

कृषि क्षेत्र: दीवाली से पहले बड़ा पैकेज

किसानों के लिए भी यह दीवाली सौभाग्य लेकर आई — 11 अक्तूबर, 2025 को प्रधानमंत्री ने कृषि-सेक्टर के लिए 42,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेशों की योजना का शुभारंभ और शिलान्यास किया। इनमें ‘प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना’ और ‘दलहन आत्मनिर्भरता मिशन’ जैसी योजनाएं शामिल हैं जो कृषि उत्पादकता और ग्रामीण आय बढ़ाने को लक्षित करती हैं। यह निवेश ग्रामीण क्रय-शक्ति को सुदृढ़ करेगा और त्योहारी बाजारों में ग्रामीण मांग को बढ़ाएगा। 2

इसे भी पढें  सृजन और सन्नाटा : वह जो शहर-शहर भटका, शब्दों में जीवन ढूँढता रहा…

जीएसटी सुधार: कर ढाँचे का सरलीकरण और खरीदारी पर असर

सरकार ने सितंबर 2025 में जीएसटी सुधार लागू कर कर स्लैब्स को सरलीकृत किया — अब मुख्य स्लैब्स 5% और 18% पर केंद्रित हैं (कुछ ‘sin’ वस्तुओं के लिए 40% अलग) — जिससे उपभोक्ता वस्तुओं पर कर-भार कम हुआ और कीमतों में स्पष्ट गिरावट देखने को मिली। इस कदम का त्योहारी खरीद पर सकारात्मक असर साफ़ दिखाई दे रहा है। 3

नतीजा:

कम कर दरें = सस्ती कीमतें = बढ़ी हुई खपत। व्यापारी और विनिर्माण इकाइयों ने भी उत्पादन बढ़ाया है, जिससे आपूर्ति-साइड पर भी मजबूती आई।

बचत उत्सव — खर्च के साथ-साथ बचत

सरकार ने जो कर सुधार और आयकर में छूट बताई हैं, उसके आधार पर अनुमान है कि परिवारों की कुल बचत में बड़ी बढ़त संभव है — और यही वजह है कि इस बार के त्यौहार को ‘बचत उत्सव’ कहा जा रहा है। केवल खरीदारी ही नहीं बढ़ी; निवेश (विशेषकर सोना/चाँदी) में भी उछाल दिखा है — जिससे यह स्पष्ट होता है कि उपभोक्ता अब खर्च और सुरक्षा — दोनों की योजनाएँ बना रहे हैं। 4

इसे भी पढें  बदलते दौर में सनातन धर्म को संगठनों की ढाल की आवश्यकता – एक सांस्कृतिक संदेश

स्वदेशी उत्पादन और MSME को मिलेगा लाभ

त्योहारों पर ‘वोकल फॉर लोकल’ का प्रभाव साफ़ दिख रहा है — घरेलू निर्माताओं, कारीगरों और MSME सेक्टर को मजबूती मिली है। चूँकि घरेलू मांग बढ़ी है, इसलिए रोजगार और उत्पादन दोनों को मदद मिल रही है — जो दीर्घकालिक आर्थिक स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Language »
Scroll to Top