
हिमांशु मोदी की रिपोर्ट
भारत में दीपावली केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह अंधकार से प्रकाश की, अज्ञान से ज्ञान की और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। किंतु जब दीपावली ब्रजभूमि में आती है, तो इसका रूप अलौकिक और रसभरा हो जाता है। ब्रज की धरती पर दीपावली का अर्थ है – श्रीकृष्ण की लीलाओं में रम जाना, प्रेम के दीप जलाना और भक्ति के रंगों में नहाना।
ब्रजभूमि: जहां हर कण में बसी है कृष्ण की लीलाएं
ब्रज मंडल – जिसमें मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, नंदगांव, बरसाना, गोकुल, राधाकुंड और बल्देव जैसे पवित्र स्थल आते हैं – केवल भौगोलिक क्षेत्र नहीं है। यह वह भूमि है जहां कृष्ण ने बचपन की लीलाएं कीं, गोपियों संग रास रचाया और यशोदा के स्नेह में लिपटे। हर धूलकण में “राधे-कृष्ण” का नाम गूंजता है।
मथुरा की दीपावली: श्रीकृष्ण जन्मभूमि का आलोक पर्व
मथुरा में दीपावली का आरंभ कार्तिक कृष्ण पक्ष से होता है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर हजारों दीपों, झालरों और फूलों से सजाया जाता है। श्रद्धालु “जय कन्हैया लाल की” के जयघोष के साथ दीप प्रज्ज्वलित करते हैं। गलियों में दीपों की कतारें एक सजीव ज्योति-रेखा प्रतीत होती हैं।
वृंदावन की दीपावली: रासलीला और भक्ति की पराकाष्ठा
वृंदावन में दीपावली केवल एक रात्रि का उत्सव नहीं, बल्कि भक्ति-प्रवाह है। बांके बिहारी मंदिर, राधा रमण मंदिर और इस्कॉन मंदिर में दीपमालाओं की सजावट होती है। भक्त “हरि नाम संकीर्तन” में लीन हो जाते हैं। यमुना तट पर दीपों की लहरें आध्यात्मिक आनंद का अनुभव कराती हैं।
गोवर्धन पूजा: दीपावली के अगले दिन ब्रज का अनूठा उत्सव
दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा मनाई जाती है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति को गोबर, मिट्टी और फूलों से सजाया जाता है। श्रद्धालु सात प्रदक्षिणाएं करते हुए “गोवर्धन महाराज की जय” का जयघोष करते हैं। यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार और भक्ति का प्रतीक है।
बरसाना की दीपावली: राधा रानी के नगर में रास और रोशनी
बरसाना में दीपावली के अवसर पर रासलीला और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। राधा रानी मंदिर में दीपों की श्रृंखला और झांकियां श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।
गोकुल और नंदगांव: मातृस्नेह और ग्रामीण उल्लास
गोकुल और नंदगांव में दीपावली पारंपरिक और ग्रामीण स्वरूप में मनाई जाती है। महिलाएं आंगनों में गोबर और मिट्टी से श्रीकृष्ण के चरणों के चिन्ह बनाती हैं। दीपक और भजन-कीर्तन से पूरा वातावरण भक्ति और उल्लास से भर जाता है।
यमद्वितीया: भाई-बहन के स्नेह का ब्रज संस्करण
दीपावली के पांचवें दिन भाई दूज या यमद्वितीया मनाई जाती है। बहनें यमुना तट पर दीप जलाती हैं और अपने भाइयों के लिए स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना करती हैं।
दीपदान की परंपरा: यमुना और मन के तट पर उजाला
ब्रज की दीपावली में हजारों दीपक यमुना तट पर प्रवाहित किए जाते हैं। यह न केवल नदी में दीप बहाने का प्रतीक है, बल्कि मन के अंधकार को दूर करने का भी संदेश है।
अंतिम संदेश: ब्रज की दीपावली, मन का उजाला
ब्रज की दीपावली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि ईश्वर और मानव के बीच प्रेम का सेतु है। दीपावली का असली अर्थ है – दिल में प्रेम और भक्ति का दीप जलाना।