विशेष फीचर दिल से निभाया ; २५१ बार कन्यादान : : मानवता को नया अर्थ देने वाली एक अद्भुत कहानी

मानवता का महादान — जब सूरत के महेश भाई सवानी बने 251 अनाथ बेटियों के पिता


मन्नू भाई गुजराती की रिपोर्ट

भारत की संस्कृति में बेटियाँ सिर्फ परिवार का हिस्सा नहीं, बल्कि घर की शान, आशीर्वाद और जीवन की सबसे कोमल अभिव्यक्ति मानी जाती हैं।
लेकिन विडंबना देखिए, इसी देश में कुछ बेटियाँ ऐसी भी हैं जिन्हें बचपन से ही पिता की छाया नसीब नहीं होती।
कभी दुर्घटना, कभी बीमारी और कभी सामाजिक-आर्थिक संकट उनके सिर से वह साया छीन लेता है, जो किसी भी बालिका का सहज अधिकार होता है।

ऐसे दौर में अगर कोई व्यक्ति आगे बढ़कर उन अनाथ और बेसहारा बेटियों का हाथ थाम ले, उन्हें पिता का नाम, सहारा और सम्मान दे,
तो वह केवल एक इंसान नहीं, स्वयं एक संस्था बन जाता है।
सूरत के उद्योगपति और समाजसेवी महेश भाई सवानी इसी श्रेणी के व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने
251 से अधिक अनाथ और आर्थिक रूप से कमजोर बेटियों के विवाह कराकर मानवता की एक अद्भुत मिसाल पेश की है।

उन्होंने सिर्फ आर्थिक मदद भर नहीं की, बल्कि स्वयं पिता की भूमिका निभाते हुए कन्यादान किया,
आशीर्वाद दिया और विदाई के भावुक क्षणों में उन बेटियों के आंसू पोंछे, जिन्हें जीवन ने बहुत जल्दी बड़ा होने पर मजबूर कर दिया था।

एक सामान्य घटना नहीं, संवेदना से शुरू हुई असाधारण यात्रा

महेश भाई सवानी का यह अभियान किसी सरकारी योजना या राजनीतिक महत्वाकांक्षा की उपज नहीं है।
यह यात्रा शुरू हुई एक व्यक्तिगत पीड़ा से, एक ऐसे अनुभव से, जिसने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया।
परिवार में आई एक दुर्घटना और उसके बाद महसूस हुई कमी ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया कि
पिता के न रहने पर परिवार, खासकर बेटियों की दुनिया कितनी असुरक्षित और डरी हुई हो जाती है।

कहा जाता है, “दर्द वही समझता है जो खुद उससे गुज़रा हो।”
शायद इसी कारण महेश भाई ने यह तय किया कि अगर ईश्वर ने उन्हें सामर्थ्य दी है,
तो उनका कर्तव्य बनता है कि वे उन बेटियों का सहारा बनें, जो हालात की मार से अनाथ हो चुकी हैं।

धीरे-धीरे यह व्यक्तिगत संकल्प एक सामूहिक प्रयास में बदलता गया और आज यह एक मानवीय मिशन बन चुका है,
जिसमें सैकड़ों बेटियाँ अपने नए जीवन की शुरुआत कर चुकी हैं। इन विवाहों में कई बेटियाँ ऐसी थीं:

  • जिनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई थी,
  • जिनके परिवार के पास शादी के खर्च की कोई संभावना नहीं थी,
  • जिनके घर में केवल माँ या कोई वृद्ध दादा-दादी ही सहारे के रूप में बच गए थे,
  • या जो पूरी तरह अनाथ आश्रमों में पली-बढ़ी थीं।

इन सभी के लिए महेश भाई सिर्फ “दाता” नहीं, सचमुच के “पिता” बनकर सामने आए।

विवाह सिर्फ रस्म नहीं, सुरक्षा और सम्मान का वचन

भारतीय समाज में विवाह महज़ एक समारोह नहीं होता।
यह भावनाओं, रिश्तों, अपेक्षाओं और संस्कारों का संगम है।
यहाँ विवाह के साथ सिर्फ दो लोग नहीं जुड़ते, बल्कि दो परिवारों का भविष्य बदलता है।
लेकिन जब किसी बेटी का पिता नहीं होता, तो यह पूरी प्रक्रिया उसके लिए भारी चिंता और असुरक्षा का कारण बन जाती है।

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कई बार रिश्तेदार जिम्मेदारी लेने से कतराते हैं, समाज एक सीमा तक सहानुभूति तो दिखाता है
लेकिन आर्थिक या सामाजिक स्तर पर सामने आने में हिचकिचाता है।
ऐसे में अनाथ या बेसहारा बेटियों का विवाह परिवारों पर असंभव बोझ बनकर सामने आता है।

यहीं से शुरू होती है महेश भाई की भूमिका। वे केवल यह घोषणा नहीं करते कि वे विवाह कराएंगे,
बल्कि वे इस पूरे आयोजन को एक सम्मानजनक सामाजिक प्रक्रिया में बदल देते हैं,
जिसमें न तो दान की झलक होती है, न दया की, बल्कि केवल साझेदारी और स्नेह नजर आता है।

उनके द्वारा किए गए इन सामूहिक विवाहों की खासियत यह है कि:

  • बेटियों से कोई दहेज नहीं लिया जाता,
  • उन्हें गृहस्थी चलाने के लिए आवश्यक सामग्री सम्मानपूर्वक दी जाती है,
  • समारोह पूरी गरिमा और वैभव के साथ आयोजित होता है,
  • हर बेटी और दूल्हा-दुल्हन के परिवार से व्यक्तिगत संवाद किया जाता है,
  • विवाह के बाद भी जरूरत पड़ने पर सहायता और मार्गदर्शन उपलब्ध कराया जाता है।

इस तरह, उनकी जिम्मेदारी केवल “फेरे” होने तक सीमित नहीं रहती,
बल्कि वह जीवनभर चलने वाले संरक्षण और स्नेह की शुरुआत भर होती है।

251 बेटियाँ, 251 कहानियाँ — हर कहानी में एक नया सवेरा

इन 251 से अधिक बेटियों में से प्रत्येक की अपनी निजी कहानी है।
कोई सड़क दुर्घटना में पिता को खो चुकी थी, किसी के पिता बीमारी से चल बसे,
तो किसी के घर का कमाने वाला ही अचानक दुनिया छोड़ गया और पूरा परिवार अंधेरे में डूब गया।

एक बेटी की कहानी अक्सर सुनाई जाती है, जिसने अपने विवाह के दिन कहा था:

“जब पिताजी नहीं रहे, तो लगा कि मेरा भविष्य भी यहीं खत्म हो गया है।
लेकिन जब महेश भाई ने कहा — ‘अब मैं हूँ न, चिंता मत करो’ तो लगा जैसे भगवान ने मेरे लिए रास्ता भेज दिया।”

एक अन्य बेटी याद करती है:

“जब उन्होंने कन्यादान के समय मेरा हाथ दूल्हे के हाथ में रखा, तो मुझे महसूस हुआ कि सचमुच कोई पिता मुझे विदा कर रहा है।
मेरी माँ रो रही थीं, मैं भी रो रही थी, और महेश भाई की आँखों में भी आँसू थे।”

ऐसी सैकड़ों भावनात्मक स्मृतियाँ इस मानवीय अभियान से जुड़ी हुई हैं,
जिन्हें शब्दों में बांध पाना मुश्किल है।
लेकिन हर कहानी यह साबित करती है कि समाज में अभी भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो
सिर्फ अपना नहीं, दूसरों का जीवन भी संवारने की सोच रखते हैं

समूह विवाह, लेकिन हर बेटी के लिए व्यक्तिगत सम्मान

सूरत में आयोजित इन विवाह समारोहों को यदि सिर्फ “समूह विवाह” कह दिया जाए,
तो यह बात अधूरी रह जाएगी।
दरअसल, यह एक भव्य पारिवारिक आयोजन की तरह होता है,
जिसमें हर बेटी को व्यक्तिगत रूप से तैयार किया जाता है,
उसका सम्मान, उसकी भावनाएँ और उसकी गरिमा पूरी संवेदनशीलता के साथ संभाली जाती है।

विवाह मंडप सजा होता है, बाकायदा बारात आती है, रस्में होती हैं,
संगीत, हँसी, शुभकामनाएँ और भावुक विदाई — सब कुछ वैसे ही होता है, जैसे किसी भी सामान्य विवाह में होता है।
फर्क बस इतना है कि यहाँ एक नहीं, अनेक बेटियाँ एक साथ अपने नए घर की ओर विदा होती हैं
और उन सबके पिता के रूप में खड़े होते हैं महेश भाई सवानी

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उनकी कोशिश रहती है कि किसी बेटी को यह महसूस न हो कि उसका विवाह “सहायता” से हो रहा है,
बल्कि उसे यह महसूस हो कि यह विवाह भी उतना ही सम्मानजनक और सहज है
जितना किसी भी संपन्न परिवार की बेटी का होता है।

धर्म, दान और मानवता — तीनों का अनोखा संगम

महेश भाई अक्सर कहते हैं कि “सच्चा धर्म वही है जो मानवता की सेवा से शुरू होता है।”
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च अपने-अपने रूप में श्रद्धा के प्रतीक हो सकते हैं,
लेकिन एक अनाथ बेटी के सिर पर हाथ रखना, उसका भविष्य सुरक्षित करना,
शायद किसी भी धार्मिक अनुष्ठान से कहीं बड़ा और पावन कार्य है।

उनके इस अभियान में न तो किसी विशेष धर्म का प्रचार है, न किसी विचारधारा की राजनीति।
यहाँ केवल एक ही विचार है — “बेटी की इज़्ज़त, बेटी का भविष्य और बेटी की मुस्कान।”
यही कारण है कि समाज के हर वर्ग के लोग इस प्रयास की सराहना करते हैं और इसे एक मानवीय आंदोलन के रूप में देखते हैं।

क्या समाज ऐसे उदाहरणों से बदल सकता है?

सवाल यह है कि क्या महेश भाई सवानी जैसे अकेले एक व्यक्ति के प्रयास से समाज की तस्वीर बदल सकती है?
इस प्रश्न का उत्तर है — हाँ, बदल सकती है, बशर्ते समाज इन उदाहरणों से प्रेरणा ले।

भारत में आज भी हजारों, बल्कि लाखों बेटियाँ ऐसी हैं जिनके पिता नहीं हैं, या जिनके पास विवाह के लिए आवश्यक आर्थिक संसाधन नहीं हैं।
अगर हर शहर में, हर प्रदेश में कुछ सक्षम लोग
“कम से कम कुछ बेटियों” की जिम्मेदारी ले लें,
तो अनगिनत घरों में रोशनी लौट सकती है।

ऐसे प्रयासों से:

  • अनाथ और बेसहारा बेटियों का भविष्य सुरक्षित हो सकता है,
  • दहेज जैसी कुप्रथाओं की जड़ें कमजोर हो सकती हैं,
  • सामूहिक विवाह जैसे सामाजिक प्रयोगों को नया सम्मान मिल सकता है,
  • और सबसे बढ़कर — समाज में साझेदारी और संवेदनशीलता की संस्कृति मजबूत हो सकती है।

महेश भाई का मॉडल — सामाजिक परिवर्तन का एक जीवंत खाका

महेश भाई सवानी का काम सिर्फ “दान” नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित मॉडल है,
जिसे अगर सही तरह अपनाया जाए, तो यह देशभर में सामाजिक बदलाव का आधार बन सकता है।

इस मॉडल की कुछ खास विशेषताएँ हैं:

1. पारदर्शिता और समानता

सभी बेटियों को समान रूप से देखा और सम्मानित किया जाता है।
किसी के साथ भेदभाव नहीं होता, न क्षेत्र, न जाति, न धर्म के आधार पर।
गृहस्थी की सामग्री भी लगभग समान प्रकार से दी जाती है, ताकि किसी को खुद को कमतर महसूस न हो।

2. दीर्घकालिक सहयोग

विवाह के बाद रिश्ता खत्म नहीं होता।
जिन परिवारों को आगे भी किसी मार्गदर्शन या सहयोग की आवश्यकता होती है,
वहाँ तक भी मदद पहुँचाने की कोशिश की जाती है।
यह सिर्फ “एक दिन” का आयोजन नहीं, बल्कि लंबे रिश्ते की शुरुआत है।

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3. शिक्षा और आत्मनिर्भरता पर ज़ोर

बेटियों को विवाह से पहले और बाद में शिक्षा के महत्व के बारे में समझाया जाता है।
संदेश साफ है — “विवाह ज़रूरी है, लेकिन आत्मनिर्भरता उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है।”
कई बेटियाँ शादी के बाद भी पढ़ाई जारी रखती हैं, नौकरी करती हैं, और अपने घर-परिवार की मजबूती बनती हैं।

4. सामूहिकता और सामाजिक सहभागिता

ये विवाह सिर्फ एक व्यक्ति की उदारता नहीं, बल्कि पूरे समाज की सहभागिता से सम्पन्न होते हैं।
कई लोग आयोजन में सहयोग देते हैं, स्वयंसेवक बनकर जिम्मेदारी उठाते हैं,
जिससे यह कार्यक्रम एक सामाजिक उत्सव का रूप ले लेता है।

5. दहेज की मानसिकता के खिलाफ सशक्त संदेश

इन विवाहों में दहेज को सख्ती से नकारा जाता है।
यह संदेश दिया जाता है कि बेटी की इज़्ज़त और उसकी शिक्षा ही सबसे बड़ा धन है,
न कि वह सामान जो अक्सर दहेज के नाम पर खरीदा और लादा जाता है।

जब एक इंसान स्वयं एक संस्था बन जाता है

समय के साथ यह साफ हो चुका है कि महेश भाई सवानी सिर्फ एक व्यक्ति नहीं रहे।
उनका नाम अब एक संस्था, एक विचार और एक मिसाल के रूप में लिया जाता है।
उनके प्रयासों ने अनगिनत लोगों को प्रेरित किया है कि वे भी अपनी क्षमता के अनुसार समाज के लिए कुछ ठोस करें।

251 अनाथ और बेसहारा बेटियों के विवाह कराने का कार्य
सिर्फ आँकड़ा भर लग सकता है, लेकिन हर संख्या के पीछे एक भरा-पूरा घर,
एक सुरक्षित भविष्य और एक माँ के भरोसे की कहानी छिपी हुई है।
यह वह काम है, जिसे केवल पैसे से नहीं, दिल की उदारता से ही किया जा सकता है।

अंत में — 251 बेटियाँ, 251 मुस्कानें और एक पिता की छाया

इस कहानी का सार बहुत सीधा, लेकिन बहुत गहरा है —
पिता होना हमेशा खून का रिश्ता नहीं होता,
बल्कि यह भावना और जिम्मेदारी का रिश्ता है।
सूरत के महेश भाई सवानी ने यह साबित किया है कि
अगर इरादा सच्चा हो, तो एक व्यक्ति भी सैकड़ों बेटियों के लिए “पिता” बन सकता है

251 बेटियों का विवाह, 251 आशीर्वाद,
251 परिवारों की आँखों में कृतज्ञता के आँसू और एक इंसान की करुणा पर खड़ा यह पूरा प्रयास
आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत संदेश छोड़ता है —
मानवता अभी भी जिंदा है, बस उसे जागने के लिए कुछ साहसी दिलों की जरूरत होती है।

सचमुच, अगर दुनिया में कोई सबसे बड़ा तीर्थ है,
तो वह किसी भव्य इमारत में नहीं, बल्कि
किसी अनाथ बेटी की मुस्कान में बसने वाली श्रद्धा में है।
और यह मुस्कान महेश भाई सवानी ने 251 बार नहीं,
251 ज़िंदगियों में रोशन की है — एक ऐसा उजाला, जो लंबे समय तक प्रेरणा देता रहेगा।

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