
हिमांशु मोदी की रिपोर्ट |
कामां — दशकों से राजस्थान के डीग जिले के उपखंड कामां के नौनेरा, सहेडा, ऐंचवाडा सहित लगभग 14 गांवों के किसान जलभराव की त्रासदी से जूझते आए हैं। सरकारों का दौर, नेताओं का दौरा — सब कुछ हुआ, पर समस्या ज्यों की त्यों बनी रही। लेकिन अब, उस लम्बे समय की निराशा को पार करते हुए, संत रामपाल ट्रस्ट ने एक ऐसा प्रत्यक्ष और ठोस समाधान पेश किया है जिसे देखने के बाद ग्रामीणों में एक नई आशा की लहर दौड़ गई है।
यह खबर हिमांशु मोदी की पड़ताल आधारित रिपोर्ट है, जिसमें हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे दशकों पुरानी समस्या ने आज एक नए मोड़ को छुआ — और कैसे ट्रस्ट की पहल ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक कदम बढ़ाया है।
पुरानी जकड़न: दशकों से विकराल समस्या
कामां के नौनेरा, सहेडा, ऐंचवाडा समेत कई गांव डूब क्षेत्र में आते हैं। हर बरसात में खेतों में पानी भर जाता था जो महीनों तक निकल नहीं पाता। यह दिक्कत स्थलाकृतिक, प्रशासनिक और राजनीतिक जटिलताओं का परिणाम रही:
- कई बार ज्ञापन दिए गए, पर समाधान नहीं हुआ।
- नेताओं के दौरे और वादों तक सीमित रहा सारा प्रयास।
- कई किसानों को पलायन करना पड़ा, कृषि भूमि छोड़नी पड़ी।
- जनप्रतिनिधियों के प्रयास सिर्फ मीडिया कवरेज तक सीमित रहे।

वर्ष 2025 में सांसद संजना जाटव और विधायक नोक्षम चौधरी ने क्षेत्र का दौरा किया। कुछ पंपसेट की स्वीकृति भी मिली, पर प्रणालीगत उपाय न बन सका। प्रशासनिक कमज़ोरी और इच्छाशक्ति की कमी ने हालात को जस का तस रखा।
विश्वास की नई कड़ी: संत रामपाल ट्रस्ट की पहल
जब सरकार चुप रही, तब संत रामपाल जी महाराज का नाम गांवों में आशा के साथ उभरा। किसानों ने ट्रस्ट से मदद मांगी, और ट्रस्ट ने त्वरित निर्णय लेकर राहत अभियान शुरू किया।
- 32 सौ मीटर पाइपलाइन भेजी गई।
- 4 पंपसेट (60 हॉर्सपावर) और जनरेटर इकाइयाँ स्थापित की गईं।
- सामग्री ट्रस्ट की गाड़ियों से ऐंचवाडा तक पहुंचाई गई।
- स्थानीय लोगों ने श्रमदान कर इस कार्य में भाग लिया।
ट्रस्ट ने पूरी लागत वहन की — योजना, क्रियान्वयन और रखरखाव तक। जब प्रणाली चलनी शुरू हुई, तो पानी तेज़ी से निकलने लगा और किसानों को वर्षों बाद राहत मिली।
समस्या से समाधान तक: अमल की प्रक्रिया
ट्रस्ट की टीम ने फील्ड सर्वे कर संभावित निकासी मार्ग तय किए। प्रमुख चरण इस प्रकार रहे:
- उपयुक्त मार्ग चयन एवं ढलान अध्ययन।
- चार 60 HP पंपसेट की स्थापना।
- 32 सौ मीटर पाइपलाइन बिछाना।
- केबल, वाल्व और क्लैंप से कनेक्शन सुनिश्चित करना।
- जनरेटर सेट से वैकल्पिक बिजली आपूर्ति तैयार करना।
- ग्रामीणों की सहभागिता से परियोजना को पूर्ण करना।
इन उपायों से पानी निकलना सरल हुआ और खेत फिर से उपजाऊ बनने लगे।
ग्रामीणों की प्रतिक्रिया: आशा की झड़ी
कई किसानों ने अपनी भावनाएँ साझा कीं:
“सरकारों की सुनवाई नहीं थी; बाबा ने तुरंत मदद भेजी।”
“हमारे खेतों से पानी निकलना किसी चमत्कार जैसा है।”
“अब हम निर्भर नहीं रहेंगे — उपकरण हमें जीवन भर उपयोग के लिए हैं।”
“बाबा की टीम ने खेतों में उतर कर काम किया, यह पहली बार हुआ।”
यह भावनाएँ स्पष्ट करती हैं कि ट्रस्ट के प्रति ग्रामीणों का भरोसा सामाजिक चेतना में परिवर्तन की दिशा में बढ़ रहा है।
विश्लेषण: शासन बनाम सेवा
यह घटना केवल राहत कार्यक्रम नहीं, बल्कि शासन और धर्म आधारित सेवा के नए संबंध की मिसाल है।
- जहाँ शासन विफल रहा, वहाँ ट्रस्ट ने सक्रियता दिखाई।
- धार्मिक संस्था का पारदर्शी सामाजिक कार्य समाज को जोड़ता है।
- यह मॉडल भविष्य में अन्य डूब क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है।
आगे की राह : साझा ज़िम्मेदारी
इस सफलता के बाद अब ज़रूरत है मिलजुली स्थायित्व की:
- उपकरणों का रखरखाव सुनिश्चित करना।
- पंचायत और प्रशासन को भागीदार बनाना।
- कृषि पुनरारंभ और उत्पादन वृद्धि पर ध्यान देना।
- शासन की जवाबदेही और नीतिगत सुधार पर बल देना।
दशकों की जलभराव समस्या को शासन हल नहीं कर पाया, पर संत रामपाल ट्रस्ट ने समाधान की मिसाल पेश की। पाइपलाइन, पंपसेट और ग्रामीण सहभागिता के माध्यम से विश्वास की नयी रेखा खींची गई है। यह कथा केवल कामां के किसानों की नहीं, बल्कि समाज की आत्मनिर्भरता की पुनर्स्थापना है।
