जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर बस अग्निकांड : 21 की मौत — लापरवाही, और इंतज़ाम की विफलता के बीच जली जिंदगी

आग से जली बस, फायर ब्रिगेड की कार्रवाई और मौके पर जांच करते लोग — जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर हुए बस हादसे के दृश्य

वल्लभ भाई लखेश्री की खास रिपोर्ट

Red and Blue Geometric Patterns Medical Facebook Post_20251110_094656_0000
previous arrow
next arrow

राजस्थान के जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर हुई भीषण बस आग ने दिवाली से पहले 21 लोगों की जान ले ली। यह केवल एक दुर्घटना नहीं—यह सुरक्षा नियमों की अनदेखी, परिवहन तंत्र की कमजोर निगरानी और मॉडिफिकेशन-मुक्त निजी बसों की घातक हकीकत का साक्ष्य है। विभिन्न श्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस हादसे ने कई स्तरों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

एक पल में उजड़ते जीवन: घटना का वक्त और शुरुआती संकेत

दोपहर के समय जैसलमेर से जोधपुर जा रही एक निजी एसी-स्लीपर बस के पिछले हिस्से से अचानक धुआँ निकलना शुरू हुआ। चालक ने गाड़ी किनारे रोकने की कोशिश की, लेकिन आग की गति इतनी तेज थी कि बस चंद मिनटों में लपटों में घिर गई।

प्राथमिक सूचना में 19 शव बस के अंदर पाए जाने की बात सामने आई, बाद में अस्पताल में दो और लोगों की मौत से मृतकों की संख्या 21 हो गई। सरकारी और मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक यह हादसा थईयात गाँव के पास हुआ।

गेट जाम और फायर ब्रिगेड की देरी

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बस के गेट लॉक हो जाने से यात्री बाहर नहीं निकल पाए। कई लोग खिड़कियाँ तोड़कर बचने की कोशिश करते रहे। फायर ब्रिगेड लगभग 45—50 मिनट बाद पहुँची, तब तक बस पूरी तरह जल चुकी थी। स्थानीय लोगों और आर्मी ने JCB की मदद से गेट तोड़कर कुछ यात्रियों को निकाला।

तकनीकी कारणों की आशंका : शॉर्ट-सर्किट या एसी गैस?

प्रारम्भिक जांच से पता चला कि आग संभवतः बस के पिछले हिस्से में हुए शॉर्ट-सर्किट या एसी गैस इंस्टॉलेशन से शुरू हुई। बस हाल ही में खरीदी गई थी और उसमें कस्टम मॉडिफिकेशन हुआ था, जिससे गलत वायरिंग और ज्वलनशील पदार्थों ने स्थिति को और भयानक बना दिया।

कौन बचा और कितने घायल — बचाव-प्रयासों की हतम-कहानी

करीब 35–50 यात्री सवार थे। घटनास्थल पर 19 शव मिले और दो घायल की मृत्यु से कुल संख्या 21 तक पहुँची। 15–20 से अधिक यात्री गंभीर रूप से झुलस गए। कई की पहचान हेतु DNA टेस्ट की व्यवस्था की गई।

इसे भी पढें  एक फूल दो माली : देवरिया में प्रेम प्रसंग बना जानलेवा, बर्थडे पार्टी के बहाने की गई हत्या

आर्मी/स्थानीय लोगों की भूमिका : JCB से तोड़ा गया दरवाजा

स्थानीय ग्रामीणों और आर्मी कर्मियों ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए पानी टैंकर और JCB से बस के जाम गेट को तोड़ा। कुछ लोगों को बाहर निकाला गया, लेकिन तब तक कई यात्री जल कर मर चुके थे।

सुरक्षा नियमों की धज्जियाँ : क्या था बस का ढांचा?

बस की गैलरी बहुत संकरी थी और इमरजेंसी एग्जिट केवल पीछे की ओर था। खिड़कियों पर जंजीर या लॉक लगे थे। बस में फायर उपकरण व अलार्म मौजूद नहीं थे। इन खामियों ने हादसे को भयावह बनाया।

परिवहन प्रणाली पर गंभीर आरोप : मॉडिफिकेशन, फिटनेस और परमिट

निजी बसों में स्लीपर मॉडिफिकेशन और एसी इंस्टॉलेशन अक्सर गैर-मानक तरीकों से किए जाते हैं। कई बसों के फिटनेस सर्टिफिकेट और परमिट भी फर्जी पाए गए हैं। यह हादसा प्रणालीगत निगरानी की कमी को उजागर करता है।

इसे भी पढें  आजमगढ़ का शैक्षणिक परिदृश्य : सरकारी बनाम प्राइवेट स्कूलों की नई दूरी

राजनीतिक प्रतिक्रिया और प्रशासनिक आदेश

घटना के बाद राज्य और केंद्र के नेताओं ने शोक व्यक्त किया। मुआवजा और जांच के आदेश दिए गए। कुछ अधिकारियों के सस्पेंशन और एफआईआर दर्ज करने की सूचना भी मिली है।

चिकित्सा चुनौती : जले हुए घायलों का इलाज और संसाधन

कई मरीजों के 50% से अधिक शरीर जले थे। जोधपुर और जैसलमेर के अस्पतालों में ग्रिन कॉरिडोर के माध्यम से उन्हें भेजा गया। स्थानीय स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा दबाव पड़ा।

सवाल जो अनुत्तरित हैं

  • क्या बस की खरीद और मॉडिफिकेशन नियमों के अनुरूप थे?
  • क्या वायरिंग प्रमाणित इलेक्ट्रिशियन ने की थी?
  • फायर ब्रिगेड में देरी किस वजह से हुई?
  • क्या फिटनेस सर्टिफिकेट वास्तविक थे?
  • क्या इमरजेंसी निकास सही ढंग से खुल सकता था?

विशेषज्ञों की राय : क्या बदले कानूनी मानक?

विशेषज्ञों ने कहा कि हर मॉडिफाइड बस को स्वतंत्र फायर-सेफ्टी सर्टिफिकेट मिले, छह महीने पर फिटनेस ऑडिट किया जाए और ड्राइवरों को इवैक्यूएशन ट्रेनिंग दी जाए।

सामाजिक और मानवीय आयाम: दर्द और प्रश्न

यह हादसा दिवाली की खुशियों को शोक में बदल गया। कई परिवार पूरी तरह उजड़ गए। स्थानीय लोगों में गहरा आक्रोश है और सवाल उठ रहे हैं कि क्या लाभ की कीमत जिंदगी से ज्यादा है?

क्या तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए? (सिफारिशें)

  • निजी और सार्वजनिक बसों का आपातकालीन ऑडिट।
  • अनुज्ञापन और फिटनेस सर्टिफिकेट का पुनरीक्षण।
  • फायर उपकरण और धुआँ अलार्म अनिवार्य।
  • आपातकालीन ड्रिल और प्रशिक्षण की व्यवस्था।
  • पारदर्शी मुआवजा व पुनर्वास नीति।

क्या यह सिर्फ़ एक हादसा है या चेतावनी?

यह दुर्घटना सिस्टमिक विफलता का दस्तावेज है। यदि नियमों का पालन और निगरानी होती, तो कई जानें बच सकती थीं। अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस सबक से सचमुच सीखेगा?

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Language »
Scroll to Top