अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ: समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आज़म खान एक बार फिर सुर्खियों में हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से उनकी मुलाकात ने राजनीतिक हलकों में नई हलचल मचा दी है। जेल से रिहाई के बाद यह उनकी दूसरी मुलाकात थी, लेकिन इस बार उनकी आवाज़ में दर्द, लाचारी और बेबसी साफ झलक रही थी। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा — “इतना जुल्म सहने के बाद भी जिंदा हूं।” उनके इस बयान ने उत्तर प्रदेश की सियासत में गूंज पैदा कर दी है।
राजनीतिक सन्नाटा तोड़ा, मगर लहजा थका हुआ
आज़म खान जब अखिलेश यादव से मिलने के बाद मीडिया के सामने आए, तो वह पहले वाले तेज-तर्रार नेता नहीं दिखे। उनकी बातों में कड़वाहट नहीं थी, बल्कि एक थका हुआ दर्द था। उन्होंने कहा कि वह पुराने लम्हों को याद करने और अपनी पीड़ा साझा करने आए हैं। उन्होंने बताया कि जिस तरह से जांच एजेंसियां उनके परिवार के साथ पेश आईं, वह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
यह मुलाकात महज़ औपचारिक नहीं थी। यह उस नेता की भावनाओं का विस्फोट था, जिसने कभी रामपुर की राजनीति पर बादशाहत की थी, लेकिन अब वही नेता खुद को “हम पर तरस खाइए, हमारी बर्बादी का इंतज़ाम मत करिए” जैसे शब्दों में बयान कर रहा है।
“जंगलराज में जाने के लिए जो सुरक्षा चाहिए, वह मेरे पास नहीं”
जब उनसे पूछा गया कि वे बिहार चुनाव में प्रचार के लिए क्यों नहीं गए, तो उन्होंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा — “बिहार में जंगलराज है। जंगलराज में जाने के लिए जो सुरक्षा चाहिए, वो मेरे पास नहीं।” उनके इस बयान ने न सिर्फ बिहार बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीतिक फिज़ा में भी हलचल मचा दी।
उन्होंने तेजस्वी यादव द्वारा ओवैसी पर की गई टिप्पणी पर भी अपनी राय दी। बोले — “उन्हें मुझसे सबक लेना चाहिए। क्यों बेवजह नफरत की दुकान सजाना। मेरे तनखैये वाले बयान पर जेल हो सकती है, मुर्गी चोरी पर सजा हो सकती है, तो इस तरह की बयानबाजी से बचना चाहिए।”
राजनीति से दूरी या मजबूरी?
आज़म खान की राजनीतिक सक्रियता पिछले कुछ समय से बेहद सीमित है। जेल से निकलने के बाद भी वह सार्वजनिक कार्यक्रमों में नज़र नहीं आए। पार्टी बैठकों से दूरी और जनसभाओं में अनुपस्थिति को लेकर सवाल उठते रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि वह फिलहाल राजनीतिक उपेक्षा और कानूनी दबावों से मानसिक रूप से थके हुए हैं।
एक समय था जब रामपुर से लेकर लखनऊ तक उनका प्रभाव निर्विवाद था। लेकिन आज वही नेता कह रहा है कि “इतना जुल्म सहने के बाद भी जिंदा हूं।” यह वाक्य केवल एक दर्द नहीं, बल्कि राजनीति के उस अंधेरे गलियारे की गवाही है जहां सत्ता और प्रतिशोध का खेल इंसान को तोड़ देता है।
“हम पर तरस खाइए” — इस पुकार के पीछे की कहानी
यह वाक्य सिर्फ एक भावनात्मक अपील नहीं है। यह एक सियासी प्रतीक है — उस दौर का जब एक नेता अपनी पूरी ताकत के बावजूद असहाय महसूस करता है। आज़म खान की यह करुण पुकार दर्शाती है कि सत्ता में चाहे कोई भी हो, सत्ता के दुरुपयोग का सबसे बड़ा शिकार वही होता है जिसने कभी व्यवस्था को चुनौती दी हो।
आज जब वह कहते हैं “हम पर तरस खाइए, हमारी बर्बादी का इंतज़ाम मत करिए”, तो वह केवल अपने लिए नहीं, बल्कि उन सभी के लिए बोल रहे हैं जो न्याय की प्रतीक्षा में अपने आत्मसम्मान के साथ संघर्ष कर रहे हैं।
अखिलेश-आज़म मुलाकात का राजनीतिक मतलब
इस मुलाकात का राजनीतिक अर्थ भी है। समाजवादी पार्टी के लिए आज़म खान सिर्फ एक वरिष्ठ नेता नहीं, बल्कि पार्टी की बौद्धिक रीढ़ रहे हैं। लंबे समय तक सपा की मुस्लिम राजनीति का चेहरा आज़म खान ही रहे। उनकी चुप्पी पार्टी के भीतर एक खालीपन पैदा करती रही है।
अखिलेश यादव के लिए यह मुलाकात जरूरी थी, क्योंकि आने वाले चुनावों में सपा को मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट रखना है। दूसरी ओर, आज़म खान को भी यह जताना था कि वह अभी भी समाजवादी परिवार का हिस्सा हैं, भले ही हालात ने उन्हें किनारे कर दिया हो।
क्या यह मुलाकात नई शुरुआत है?
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह मुलाकात सियासी समीकरणों को फिर से गढ़ने की कोशिश हो सकती है। आज़म खान के दर्द को सार्वजनिक रूप से सामने लाने का मकसद शायद यही है कि पार्टी उनके अनुभव और संघर्ष को फिर से स्वीकार करे।
हालांकि यह कहना जल्दबाजी होगी कि वह पूरी तरह सक्रिय राजनीति में लौटेंगे या नहीं, लेकिन इतना तय है कि उनकी यह करुण पुकार अब जनता और मीडिया दोनों के बीच चर्चा का विषय बन चुकी है।
जनता के लिए संदेश — राजनीति का इंसानी चेहरा
आज़म खान का यह बयान हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि राजनीति केवल सत्ता की लड़ाई नहीं है, यह इंसानी भावनाओं, टूटे आत्मसम्मानों और न्याय की लड़ाई का भी मंच है। जब एक वरिष्ठ नेता कहता है कि “हम पर तरस खाइए”, तो वह किसी दल से नहीं, पूरे समाज से एक संवेदनशील प्रतिक्रिया की उम्मीद कर रहा होता है।
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1. आज़म खान और अखिलेश यादव की मुलाकात क्यों चर्चा में है?
यह मुलाकात आज़म खान की रिहाई के बाद दूसरी थी। इसमें उन्होंने सरकार के व्यवहार पर दर्द जताया और राजनीतिक दूरी पर भी संकेत दिए।
2. आज़म खान ने बिहार चुनाव को लेकर क्या कहा?
उन्होंने कहा कि बिहार में जंगलराज है और वहां जाने के लिए जिस सुरक्षा की जरूरत है, वह उनके पास नहीं है।
3. “हम पर तरस खाइए” वाले बयान का क्या मतलब है?
यह बयान उनकी राजनीतिक लाचारी और मानसिक पीड़ा का प्रतीक है। उन्होंने इसे सत्ता के दुरुपयोग और अन्याय के खिलाफ एक भावनात्मक पुकार के रूप में दिया।
4. क्या आज़म खान राजनीति से दूर हो गए हैं?
वह सक्रिय राजनीति से फिलहाल दूर हैं, लेकिन उनके बयान यह संकेत देते हैं कि वे अभी भी सियासत के केंद्र में बने रहना चाहते हैं।









