
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट। जिले के बहुचर्चित कोषागार घोटाले की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं। सर्द मौसम के बावजूद एसआईटी की पैनी पूछताछ ने रिटायर्ड एटीओ से लेकर अकाउंटेंट तक सभी को पसीने-पसीने कर दिया।
मेटा विवरण: चित्रकूट के कोषागार घोटाले में एसआईटी की जांच 47वें दिन महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंची। रिटायर्ड एटीओ अवधेश प्रताप सिंह और तीन अकाउंटेंट से आमने-सामने पूछताछ में 10 विशेष खाते, डिजिटल हस्ताक्षर, पासवर्ड, मृत पेंशनरों के खाते और 43.13 करोड़ रुपये के संदिग्ध भुगतान पर चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं।
47वें दिन की जांच, दूसरी बार एसआईटी के सामने पहुंचे रिटायर्ड एटीओ
कोषागार घोटाले की लगातार 47 दिन से चल रही जांच शुक्रवार को एक बार फिर रिटायर्ड एटीओ अवधेश प्रताप सिंह के इर्द-गिर्द घूमती नजर आई। एसआईटी ने उन्हें दूसरी बार तलब कर न केवल विस्तार से पूछताछ की, बल्कि विभाग के तीनों अकाउंटेंट — योगेंद्र सिंह, राजेश और राजबहादुर — को भी आमने-सामने बैठाकर सवालों की बौछार कर दी।
सर्द मौसम में भी पूछताछ का माहौल इतना गर्म था कि रिटायर्ड एटीओ से लेकर तीनों अकाउंटेंट तक, सभी के चेहरों पर बार-बार पसीने की बूंदें झलकती रहीं। हर सवाल पर सफाई देने की कोशिशें होती रहीं, लेकिन एसआईटी द्वारा रखे गए दस्तावेज़, फाइलें और डिजिटल रिकॉर्ड ने कई बार इन सफाइयों को कमजोर कर दिया।
10 विशेष खाते और डिजिटल हस्ताक्षर पर टिका संदेह
जांच टीम ने रिटायर्ड एटीओ के कार्यकाल से जुड़ी करीब 30 फाइलें सामने रखीं। इन फाइलों में हुए ऑनलाइन भुगतान, हर पटल के रिकॉर्ड, डिजिटल हस्ताक्षर और भुगतान की राशि से लेकर पासवर्ड तक का बारीकी से परीक्षण किया गया। एसआईटी ने विशेष रूप से “10 विशेष खातों” के संचालन पर कई तथ्य रखे, जिन पर रिटायर्ड एटीओ और अकाउंटेंटों के जवाब उलझते गए।
आरोप है कि इन विशेष खातों के जरिए करोड़ों रुपये के संदिग्ध भुगतान किए गए। पूछताछ के दौरान रिटायर्ड एटीओ ने यह दलील दी कि अवकाश के दौरान कुछ अकाउंटेंटों ने उनके पासवर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग करते हुए फाइलों को आगे बढ़ाया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके अवकाश में फाइलें उसी सिस्टम से निपटाई गईं, जिसे केवल वे ही ऑपरेट करते थे।
जैसे ही यह आरोप सामने आए, विभाग के तीनों अकाउंटेंटों के चेहरों पर भी तनाव साफ दिखा। उन्होंने उल्टा दावा किया कि यह आरोप निराधार हैं और जब एटीओ अवकाश पर होते थे, तब उनके पटल की फाइलें खुद एटीओ ही आगे बढ़ाते थे। अकाउंटेंटों के मुताबिक, “बड़े अधिकारी होने के नाते एटीओ के पास पहले से ही उनके पटल के पासवर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर की जानकारी रहती थी।” इस तरह जवाबी आरोपों ने एसआईटी के सामने एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टालने का खेल भी उजागर कर दिया।
घोटाले में एटीओ, एकाउंटेंट और बिचौलियों की मिलीभगत की पड़ताल
कोषागार घोटाले में अब तक की जांच में एटीओ विकास सचान, एकाउंटेंट अशोक वर्मा, रिटायर्ड एटीओ अवधेश प्रताप सिंह के नाम सामने आ चुके हैं, जबकि एक एटीओ संदीप श्रीवास्तव की मृत्यु हो चुकी है। एसआईटी इन सभी की भूमिका को जोड़कर पूरी साजिश की कड़ियों को समझने की कोशिश कर रही है।
जांच के दौरान कोषागार से जुड़े कुछ बिचौलियों की भूमिका भी बेहद संदिग्ध पाई गई है। आरोप है कि ये बिचौलिए, नामजद अधिकारी और कर्मचारियों के संपर्क में थे और कमीशन के बूते मृत पेंशनरों के खातों से लेकर नए खाते खुलवाने तक की पूरी जुगाड़ में शामिल रहे। कई बिचौलिये तो स्वयं स्वीकार कर चुके हैं कि उन्हें लुभावने ऑफर भी विभागीय स्तर से ही दिए जाते थे।
93 पेंशनरों को 450 बार में 43.13 करोड़ का संदिग्ध भुगतान
एसआईटी की जांच में अब तक जो आंकड़े सामने आए हैं, वे पूरे तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। साल 2018 से 2025 के बीच अलग-अलग किस्तों में कुल 93 पेंशनरों को 450 बार में 43.13 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। कागजों पर यह सब कुछ नियमों के तहत दिखाने की कोशिश की गई, लेकिन भुगतान की प्रकृति और पैटर्न ने एसआईटी को सतर्क कर दिया।
बताया जा रहा है कि शुरुआत में मृत पेंशनरों के परिजनों से उनके खाते बंद न करने और मृत प्रमाण पत्र जमा न करने के लिए विभागीय स्तर से उन्हें कई “फायदे” गिनाए गए। एक-दो साल तक यह प्रयोग सफल रहा तो साजिश का दायरा बढ़ता चला गया। बाद में जीवित पेंशनरों और मृत पेंशनरों के परिजनों के नाम पर अलग-अलग खाते खोलकर भी भुगतान कराया जाने लगा।
आरोप यह भी है कि मृत प्रमाण पत्र लेकर आने वाले परिजनों से कुछ बिचौलिये और कर्मचारी लुभावने ऑफर देते हुए कहते थे कि “खाता बंद मत करिए, फायदा होगा।” इसके बाद नए खाते संचालित कराए जाते, भुगतान वहीं कराया जाता और बीच में बड़ा हिस्सा कमीशन के रूप में बंट जाता। इस चक्र में कई बार पेंशनर और परिजन भी लालच में आकर शामिल हो गए।
बिचौलिए गौरेंद्र और एटीओ विकास सचान की जमानत पर सुनवाई
कोषागार घोटाले में जेल में बंद एटीओ विकास सचान की जमानत याचिका पर छह दिसंबर को जिला जज की अदालत में सुनवाई प्रस्तावित है। तीन दिन पहले ही उनके अधिवक्ता ने अदालत में याचिका दाखिल की है।
इसी तरह घोटाले में आरोपी बिचौलिए गौरेंद्र की जमानत पर भी शनिवार को सुनवाई होनी है। उस पर आरोप है कि उसने अपनी मृत पेंशनर मां के खाते के अलावा एक अन्य खाते का संचालन कराकर तीन करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान कोषागार विभाग से हासिल किया। यह रकम कैसे, किन फाइलों और किन डिजिटल हस्ताक्षरों के माध्यम से पारित हुई, इस पर भी एसआईटी लगातार सवाल उठा रही है।
प्रथम जांच पूरी होने के कगार पर, कई महत्वपूर्ण कड़ियां जुड़ीं
– अरुण कुमार सिंह, एसपी के अनुसार, कोषागार घोटाले की प्रथम जांच लगभग पूरी होने की स्थिति में है। जांच के दौरान कई महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आ चुकी हैं। चाहे रिटायर्ड एटीओ हों या फिर अन्य विभागीय अधिकारी–कर्मचारी, जो भी संदेह के दायरे में आया है, उससे लगातार पूछताछ की जा रही है। रिटायर्ड एटीओ से दो बार, जबकि अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों से कई बार पूछताछ हो चुकी है।
एसपी का यह बयान साफ संकेत देता है कि एसआईटी जल्द ही अपनी प्रथम रिपोर्ट तैयार कर सकती है। हालांकि, घोटाले की राशि, अवधि और शामिल लोगों की संख्या को देखते हुए यह मामला आगे भी विस्तृत जांच की मांग करता है।
सिस्टम पर सवाल : पासवर्ड, डिजिटल हस्ताक्षर और निगरानी व्यवस्था पर चिंता
यह पूरा प्रकरण केवल कुछ व्यक्तियों की आपराधिक मंशा तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे वित्तीय सिस्टम की कमजोरियों को भी उजागर करता है। जिस तरह से पासवर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर की सुरक्षा को लेकर आरोप–प्रत्यारोप हो रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि डेटा सुरक्षा, लॉग ट्रेल और सुपरविजन की व्यवस्था में गंभीर खामियां रहीं।
यदि किसी अधिकारी के अवकाश के दौरान भी उसके डिजिटल हस्ताक्षर और पासवर्ड से फाइलें आगे बढ़ाई गईं, तो यह प्रश्न स्वाभाविक है कि सिस्टम में किस स्तर पर नियंत्रण और निगरानी विफल रही? वहीं, अगर अकाउंटेंटों का दावा सही मान लिया जाए कि बड़े अधिकारी के पास उनके पटल का पासवर्ड पहले से होता था, तो यह प्रथा ही नियमों के खिलाफ और अत्यंत खतरनाक है।
कोषागार घोटाले की जांच इस बात का भी परीक्षण है कि आने वाले समय में सरकार और विभाग किस तरह डिजिटल भुगतान, पेंशन वितरण और खातों की सुरक्षा को और अधिक पारदर्शी व जवाबदेह बना पाते हैं, ताकि पेंशनरों के नाम पर होने वाले ऐसे घोटालों की पुनरावृत्ति न हो।
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प्रश्न 1: चित्रकूट का कोषागार घोटाला क्या है?
यह घोटाला कोषागार विभाग के माध्यम से पेंशन भुगतान की आड़ में किए गए संदिग्ध और अवैध लेनदेन से जुड़ा है। जांच में सामने आया है कि मृत और जीवित दोनों प्रकार के पेंशनरों के नाम पर, अलग-अलग खातों के जरिए करोड़ों रुपये का भुगतान कराया गया। कई बार मृत पेंशनरों के खाते जानबूझकर बंद नहीं कराए गए और उनके नाम पर भी राशि जारी होती रही।
प्रश्न 2: एसआईटी की जांच में अब तक कौन–कौन से नाम सामने आए हैं?
इस घोटाले में एटीओ विकास सचान, एकाउंटेंट अशोक वर्मा, रिटायर्ड एटीओ अवधेश प्रताप सिंह के नाम जांच के दायरे में हैं, जबकि एक एटीओ संदीप श्रीवास्तव की मृत्यु हो चुकी है। इसके साथ ही, बिचौलिये गौरेंद्र के खिलाफ भी गंभीर आरोप हैं, जिस पर अपनी मृत मां और एक अन्य खाते के माध्यम से तीन करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान लेने का आरोप है।
प्रश्न 3: मृत पेंशनरों और उनके परिजनों को किस तरह जाल में फंसाया गया?
एसआईटी की जांच के अनुसार, 2018 से 2025 के बीच शातिरों ने पहले मृत पेंशनरों के परिजनों को खाते बंद न करने और मृत प्रमाण पत्र जमा न करने के लिए लुभावने ऑफर दिए। बताया गया कि खाते चलते रहने से उन्हें अतिरिक्त लाभ होगा। बाद में कई परिजनों और पेंशनरों के नाम पर अलग खाते खोलवाए गए, वहीं से भुगतान कराया गया और बीच की भारी-भरकम रकम कमीशन के रूप में बंटती रही।
प्रश्न 4: आगे इस घोटाले की जांच का अगला चरण क्या हो सकता है?
एसपी के मुताबिक, प्रथम जांच लगभग पूरी होने के कगार पर है और जल्द ही इसकी रिपोर्ट सामने आ सकती है। इसके बाद, जिन अधिकारियों–कर्मचारियों, बिचौलियों और लाभार्थियों की भूमिका संदिग्ध पाई जाएगी, उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई के साथ–साथ आपराधिक धाराओं में भी आगे की कार्यवाही संभव है। साथ ही, सरकार के स्तर से पासवर्ड, डिजिटल हस्ताक्षर और पेंशन भुगतान प्रक्रिया को और अधिक सुरक्षित और पारदर्शी बनाने पर भी जोर दिए जाने की उम्मीद है।






