ठाकुर के के सिंह की रिपोर्ट
मथुरा। जैत क्षेत्र का भरतिया गांव इन दिनों भक्ति की अमिट गूंज से सराबोर है। यहां 24 अक्टूबर से शुरू हुआ राधा नाम का अखंड संकीर्तन पूरे वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा भर रहा है। दिन में महिलाएं और रात में पुरुष मिलकर निरंतर राधे कृष्ण नाम जाप कर रहे हैं। इस संकीर्तन ने न केवल गांव में भक्ति की ज्योति प्रज्ज्वलित की है, बल्कि आसपास के ग्रामीणों को भी इससे जोड़ दिया है।
भरतिया गांव का यह अखंड संकीर्तन आगामी एक वर्ष तक निरंतर चलेगा। इस दौरान गांव के मंदिर में दिन-रात राधा कृष्ण नाम संकीर्तन की ध्वनि गूंजती रहेगी। भक्ति के इस महासंगीत ने न सिर्फ गांव की आध्यात्मिक धारा को गति दी है बल्कि राजस्थान और आसपास के जिलों से श्रद्धालुओं का आगमन लगातार बढ़ रहा है।
राधा नाम संकीर्तन से गूंज उठा मथुरा का भरतिया गांव
24 अक्टूबर को मंदिर में राधा कृष्ण का अखंड संकीर्तन आरंभ हुआ था। धीरे-धीरे इसकी पवित्र ध्वनि गांव से निकलकर आसपास के इलाकों तक फैल गई। जब लोगों ने देखा कि निरंतर भक्ति रस बह रहा है, तो वे भी जुड़ने लगे। परम संत राघवदास महाराज के सानिध्य में चल रहे इस आयोजन ने हजारों भक्तों को एक सूत्र में बांध दिया है।
महिलाएं दिन के समय भक्ति गीत गाकर राधे नाम संकीर्तन को गति देती हैं, जबकि रात में पुरुष भक्त कीर्तन को संभालते हैं। इस तरह गांव में 24 घंटे नाम जाप की धारा प्रवाहित हो रही है। यह दृश्य भक्ति और एकता का अद्भुत उदाहरण बन गया है।
देवोत्थान एकादशी पर हुआ तुलसी-शालिग्राम विवाह
सिर्फ नाम संकीर्तन ही नहीं, बल्कि गांव के मंदिर में समय-समय पर विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं। हाल ही में देवोत्थान एकादशी के पावन अवसर पर शालिग्राम-तुलसी विवाह की रस्म बड़े विधि-विधान से संपन्न की गई। इस अवसर पर सैकड़ों ग्रामीण भक्तिमय वातावरण में झूम उठे।
राधा नाम संकीर्तन के इस कार्यक्रम में विशेष रूप से राजस्थान के जोधपुर और जैतारण क्षेत्रों से भक्तजन पहुंच रहे हैं। चूरमा-बाटी का प्रसाद तैयार कर आने वाले श्रद्धालुओं को परोसा जा रहा है। भक्ति और सेवा का यह संगम गांव के हर कोने में नई चेतना भर रहा है।
राघवदास महाराज बोले – कलियुग में नाम ही मोक्ष का आधार
परम संत राघवदास महाराज ने बताया कि कलियुग में केवल राधा कृष्ण नाम ही मोक्ष का सच्चा मार्ग है। उन्होंने कहा, “आज जब भौतिकता और स्वार्थ की दौड़ तेज हो गई है, ऐसे समय में यह नाम संकीर्तन आत्मा को शांति और समाज को एकता का संदेश देता है।”
संकीर्तन में शामिल महिला भक्तों ने भी अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि राधे नाम के जाप से उनके मन को अपार शांति मिली है। एक वयोवृद्ध महिला ने कहा कि “इस उम्र में भी जब हम भक्ति में डूबते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे जीवन सफल हो गया।”
गांव के समाजसेवियों और युवाओं की सक्रिय भूमिका
समाजसेवी ठाकुर के के सिंह ने बताया कि भरतिया गांव का राधा नाम संकीर्तन अब एक जनआंदोलन का रूप ले चुका है। उन्होंने कहा, “इसमें गांव की वृद्धाएं, महिलाएं, बच्चे और युवा सभी भाग ले रहे हैं। हर किसी के चेहरे पर भक्ति की आभा स्पष्ट झलकती है।”
संकीर्तन में हरि शरण महाराज, मोहनदास महाराज, जुगल सिंह, केहरी सिंह, मोहन सिंह चाहर, अर्जुन सिंह ठनुआ, जसवंत सिंह, नरेंद्र सिंह, भोजेंद्र सिंह, गौरव सिंह, राजा चौधरी, कुलदीप फौजदार, आशीष, जॉनी राजावत, सचिन सिंह, सुघड़ सिंह, गणपत सिंह, धर्म सिंह, सीनू सेठ, अजय पाल सिंह, सत्येंद्र झा, बादल सिंह और तारा सिंह सहित सैकड़ों भक्त मौजूद रहे।
भरतिया गांव बना आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र
लगातार चल रहे राधा नाम संकीर्तन ने भरतिया गांव को आध्यात्मिक पर्यटन के रूप में भी पहचान दिलाई है। आसपास के जिलों से श्रद्धालु यहां पहुंचकर नाम जाप में भाग लेते हैं और भक्ति रस का अनुभव करते हैं। यह आयोजन स्थानीय अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक चेतना दोनों को प्रोत्साहित कर रहा है।
भक्तों का मानना है कि इस अखंड नाम संकीर्तन से गांव में शांति, एकता और सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण बना है। सभी लोगों ने मिलकर निश्चय किया है कि यह परंपरा आगे भी निरंतर जारी रखी जाएगी।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
भरतिया गांव में राधा नाम संकीर्तन कब से शुरू हुआ?
यह अखंड राधा नाम संकीर्तन 24 अक्टूबर से गांव के मंदिर परिसर में आरंभ हुआ है।
इस संकीर्तन की अवधि कितनी है?
यह अखंड राधा नाम संकीर्तन एक वर्ष तक निरंतर चलेगा।
संकीर्तन में कौन-कौन भाग ले रहे हैं?
गांव की महिलाएं, पुरुष, वृद्धजन और राजस्थान से आए भक्त इसमें तन्मयता से भाग ले रहे हैं।
देवोत्थान एकादशी पर क्या आयोजन हुआ?
देवोत्थान एकादशी के अवसर पर शालिग्राम-तुलसी विवाह की रस्म विधिविधान से संपन्न की गई।
राधा नाम संकीर्तन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
कलियुग में केवल परम नाम ही मोक्ष का आधार है। राधा नाम संकीर्तन का उद्देश्य समाज में भक्ति, एकता और शांति का संदेश फैलाना है।









