राहुल गांधी के नाम खुला पत्र : जम्मू-कश्मीर के कांग्रेसी ‘सज्जनों’ की खामोशी आखिर किसके इशारे पर?

किसी जनसभा में मंच से संशोधन के दौरान

राहुल गांधी के नाम खुला पत्र

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(केवल कृष्ण पनगोत्रा द्वारा एक व्यंग्यात्मक लेकिन संवेदनशील खुला पत्र)

आदरणीय राहुल गांधी जी, जय हिंद!

आपसे संवाद स्थापित करने की हिम्मत जुटाने में मुझे थोड़ी देर लगी, पर हालात कुछ ऐसे बन गए कि अब चुप रहना अपने जमीर के खिलाफ लगता है।

मैं कोई राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं हूँ, बस एक शिक्षक, वरिष्ठ नागरिक और स्वतंत्र लेखक-पत्रकार के रूप में यह पत्र लिख रहा हूँ।

आपके व्यक्तित्व को मैं उस नजर से देखता हूँ, जिससे आम जनता देखती है —

न पार्टी की ऐनक लगाकर, न सत्ता की टोपी पहनकर।

जननायक राहुल गांधी — जनता से जुड़ाव की मिसाल

राहुल जी, आज के दौर में “जनप्रिय” होना उतना आसान नहीं जितना सोशल मीडिया पर दिखता है।

आपने जिस धैर्य से लोगों के बीच जाकर संवाद स्थापित किया, उनकी बात सुनी और सत्ता से इतर एक संवेदनशील नेता की छवि बनाई —

वह अपने आप में अद्वितीय है।

कई बार लगा कि लोग आपको कमतर साबित करने पर तुले हैं,

लेकिन जनमानस ने आपका “जननायक” रूप स्वीकार कर लिया।

ये तमाम कोशिशें नाकाम रहीं क्योंकि जनता अब चेहरों से ज़्यादा व्यवहार पहचानती है।

कहना न होगा कि कांग्रेस के इस जननायक राहुल गांधी ने कई बार पार्टी राजनीति से ऊपर उठकर

मानवता और संवैधानिक मूल्यों को प्राथमिकता दी है।

कभी किसी कैब ड्राइवर से आम इंसान की तरह बातचीत करते हैं,

तो कभी किसी छात्र की व्यथा सुनकर उस पर गौर करते हैं।

यही भाव आपको “जननायक” बनाता है —

ना कि केवल कांग्रेस का नेता।

अब मुद्दे पर आते हैं — जम्मू-कश्मीर कांग्रेस की “सज्जन खामोशी”

महोदय,

मैं यह पत्र इसलिए नहीं लिख रहा कि आपकी तारीफों के पुल बांध दूं।

बल्कि इसलिए लिख रहा हूं कि जम्मू-कश्मीर की कांग्रेस इकाई का मौन अब जनता को बेचैन करने लगा है।

जी हां, वही इकाई जो आपके नाम पर राजनीति करती है,

लेकिन जब “न्याय” की बात आती है, तो अचानक गूंगी-बहरी बन जाती है।

डोडा से आम आदमी पार्टी के विधायक मेहराज मलिक की गिरफ्तारी पर कांग्रेस नेताओं की चुप्पी,

सवाल उठाती है कि आखिर “संवेदनशील राजनीति” का क्या मतलब रह गया?

क्या अब राजनीति केवल तब तक ही संवेदनशील रहती है,

जब तक मामला “अपने दल” से जुड़ा हो?

मेहराज मलिक — जनता का बेटा या राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी?

राहुल जी,

मेहराज मलिक कोई साधारण नाम नहीं है।

वे जम्मू-कश्मीर के डोडा क्षेत्र से विधायक,

एक प्रखर अधिवक्ता, और

आम जनता के बीच लोकप्रिय चेहरा हैं।

लोग उन्हें “गरीबों का वकील” कहते हैं।

उन पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) लगाकर जेल भेज दिया गया —

एक ऐसा कानून जो आतंकवादियों पर लगाया जाता है,

न कि जनता के हक की बात करने वाले जनप्रतिनिधियों पर।

अब जरा सोचिए —

भाजपा को छोड़कर जम्मू-कश्मीर की लगभग हर पार्टी ने इस गिरफ्तारी को अनुचित और अलोकतांत्रिक कहा।

मगर कांग्रेस?

वो अब भी खामोश है, मानो यह मामला किसी दूसरे ग्रह का हो।

कांग्रेस की यह चुप्पी किस ओर इशारा करती है?

क्या यह वही पार्टी है जिसने संविधान की आत्मा को सबसे पहले अपनी विचारधारा में जगह दी थी?

क्या यह वही कांग्रेस है, जो गांधी और नेहरू के सिद्धांतों पर “मानवता” को सर्वोपरि मानती थी?

आपकी ही पार्टी के कुछ “सज्जन नेता” आज इस सोच से इतने दूर जा चुके हैं कि

उनके लिए दलगत सीमाएँ ही अंतिम धर्म बन गई हैं।

महोदय, यही वो खामोशी है जो आपकी “जननायक छवि” पर भी एक छाया डालती है।

क्योंकि जनता यह मानती है कि राहुल गांधी वह नेता हैं जो अन्याय के खिलाफ खड़े होते हैं — चाहे पीड़ित किसी भी पार्टी से हो।

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सोनम वांगचुक का उदाहरण और दोहरा व्यवहार

आपको याद होगा, हाल ही में लद्दाख के पर्यावरणविद और इनोवेटर सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी पर आपने और आपकी पार्टी ने

स्पष्ट रूप से चिंता जताई थी।

और सही भी किया था।

वांगचुक ने सिर्फ लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की थी —

ताकि वहां की पहचान और पर्यावरण सुरक्षित रहे।

उनकी आवाज़ जन हित की आवाज़ थी,

न कि किसी पार्टी का घोषणापत्र।

पर वही कांग्रेस, जो वांगचुक की गिरफ्तारी पर आवाज़ उठाती है,

वो मेहराज मलिक की गिरफ्तारी पर खामोश क्यों है?

क्या इसलिए कि वे “आम आदमी पार्टी” से हैं?

या इसलिए कि जम्मू-कश्मीर में यह मामला “राजनीतिक समीकरणों” को छेड़ देता है?

जननायक राजनीति बनाम दलगत सीमाएँ

महोदय,

आपको जानकर हैरानी नहीं होगी कि जम्मू-कश्मीर की जनता अब इन विरोधाभासों को बहुत बारीकी से समझती है।

लोग जानते हैं कि राहुल गांधी की राजनीति “पार्टी” से ऊपर उठकर “जनता” के लिए है।

आप जब भारत जोड़ो यात्रा के दौरान गांवों, कस्बों, पहाड़ों से गुज़रे,

तो जनता ने आपको “अपना नेता” कहा —

न कि केवल कांग्रेस का चेहरा।

फिर आपकी पार्टी की कुछ इकाइयाँ, विशेषकर जम्मू-कश्मीर कांग्रेस,

क्यों अब भी “पुरानी राजनीति” के बोझ तले दबी हुई हैं?

क्यों वे मानवाधिकार, संवैधानिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों के मुद्दों पर मौन साधे हुए हैं?

क्या यह चुप्पी केवल रणनीतिक है?

या फिर ये वही चुप्पी है जो जनता और कांग्रेस के बीच संवाद की दीवार बनती जा रही है?

मेहराज मलिक और राहुल गांधी — दो नाविक एक ही धारा के

राहुल जी,

अगर आप दलगत सीमाओं से ऊपर उठकर देखें तो

मेहराज मलिक और आप एक ही नाव में सवार लगते हैं।

दोनों जनप्रिय हैं,

दोनों के खिलाफ राजनीतिक साजिशों की तलवारें लहराई जाती रही हैं,

और दोनों ही “जनता की आवाज़” को राजनीतिक गलियारों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं।

फिर यह कैसे हो गया कि

जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के “सज्जन”

एक ऐसे व्यक्ति के पक्ष में एक शब्द तक नहीं बोल पा रहे,

जो जनता की भलाई के लिए जेल में है?

राहुल गांधी से उम्मीद — मौन तोड़िए, संदेश दीजिए

महोदय,

आपके एक शब्द से हजारों कार्यकर्ता दिशा पाते हैं।

आपके बयान से पूरी पार्टी का रुख तय होता है।

अगर आप कहें कि मानवता राजनीति से ऊपर है,

तो कांग्रेस के नेता उसे अपने व्यवहार में उतारने लगेंगे। 

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आज जम्मू-कश्मीर की जनता यह चाहती है कि

आप खुलकर कहें —

“अन्याय चाहे किसी के साथ भी हो, कांग्रेस उसकी आवाज़ बनेगी।”

यह एक संदेश नहीं, बल्कि कांग्रेस की आत्मा का पुनर्जागरण होगा।

एक विनम्र निवेदन — कांग्रेस को जनता से जोड़े रखें

अगर जम्मू-कश्मीर कांग्रेस यूनिट इस मानसिकता से ऊपर नहीं उठी,

तो पार्टी का जनता से संवाद टूट जाएगा।

और जब संवाद टूटता है,

तो नारा बचता है — लेकिन विश्वास चला जाता है।

जनता अब केवल वादे नहीं चाहती,

वह संवेदनशीलता, साहस और ईमानदारी देखना चाहती है।

राहुल गांधी, आप इन तीनों के प्रतीक हैं —

बस अब ज़रूरत है कि आपकी ही पार्टी आपके इस भाव को आत्मसात करे।

अंतिम शब्द

मेहराज मलिक के पक्ष में बोलना

किसी पार्टी या व्यक्ति के पक्ष में बोलना नहीं है,

यह आम जनता के पक्ष में खड़ा होना है।

और यही तो आपकी राजनीति की आत्मा है, राहुल जी।

इस उम्मीद के साथ कि

आपकी आवाज़ जम्मू-कश्मीर के मौन को तोड़ेगी,

और वहां की कांग्रेस इकाई को संवेदनशील राजनीति की ओर लौटाएगी —

मैं यह खुला पत्र समाप्त करता हूँ।

आपका —

केवल कृष्ण पनगोत्रा

स्वतंत्र लेखक-पत्रकार

जम्मू वासी

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