
महाराष्ट्र बाढ़ से ग्रामीण जीवन अस्त-व्यस्त
सदानंद इंगीली की रिपोर्ट
महाराष्ट्र बाढ़ इस समय ग्रामीण महाराष्ट्र के लिए एक गहरी आपदा बन चुकी है। खासकर यवतमाल, वर्धा और चंद्रपुर जिलों में बारिश के बाद नदियों का जलस्तर इतना बढ़ गया कि गांवों के गांव जलमग्न हो गए। यवतमाल जिला प्रशासन की शुरुआती रिपोर्ट बताती है कि अकेले इस जिले में पच्चीस हजार हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि बाढ़ के पानी में डूब चुकी है।
गांवों के रास्ते कट जाने से हजारों लोग फंसे रहे और बाद में प्रशासन को नावों और बचाव दलों के जरिए उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना पड़ा।
महाराष्ट्र बाढ़ ने किसानों की मेहनत डुबोई
महाराष्ट्र बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित किसान हुए हैं। खरीफ सीजन की मुख्य फसलें—सोयाबीन, कपास और अरहर—लगभग पूरी तरह से बर्बाद हो गई हैं। कृषि विभाग की प्रारंभिक आकलन रिपोर्ट में दर्ज किया गया है कि सिर्फ यवतमाल और उसके आसपास के इलाकों में किसानों को तीन सौ करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। यह नुकसान सिर्फ फसल तक सीमित नहीं है बल्कि बीज, खाद और कीटनाशकों पर किए गए निवेश के साथ-साथ जमीन की उत्पादकता पर भी असर डालेगा। किसानों का कहना है कि साल भर की मेहनत मिट्टी में मिल गई है और अब उनके सामने दोहरी चुनौती है—एक तरफ फसल की बर्बादी और दूसरी ओर कर्ज का बोझ।
महाराष्ट्र बाढ़ से गांवों का हाल बेहाल
महाराष्ट्र बाढ़ ने ग्रामीण ढांचे को भी बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया है। यवतमाल जिले की उमरखेड़ और पांढरकावड़ा तहसीलों में कई गांव पूरी तरह से डूब गए। कच्चे मकानों के गिर जाने से सैकड़ों परिवार बेघर हो गए हैं। सड़कों के टूट जाने और छोटे पुल बह जाने से आवागमन पूरी तरह से ठप हो गया है। कई गांवों में अब भी पीने के पानी और भोजन की भारी किल्लत बनी हुई है।
ग्रामीण इलाकों के स्कूल और पंचायत भवन भी बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुए हैं, जिसके चलते स्थानीय जीवन व्यवस्था लंबे समय तक प्रभावित रहने की आशंका है।
महाराष्ट्र बाढ़ और प्रशासन की चुनौती
प्रशासन के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती राहत और पुनर्वास का काम है। जिला प्रशासन ने यवतमाल में पैंतीस राहत शिविर स्थापित किए हैं, जिनमें हजारों लोग ठहरे हुए हैं। एनडीआरएफ की टीमें और स्थानीय पुलिसकर्मी दिन-रात प्रभावित क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। हालांकि, ग्रामीणों का आरोप है कि राहत सामग्री सभी गांवों तक नहीं पहुंच रही और कई परिवार अब भी सरकारी मदद का इंतजार कर रहे हैं।
महाराष्ट्र बाढ़ से किसानों की व्यथा
किसानों की पीड़ा शब्दों में बयां करना कठिन है। यवतमाल के उमरखेड़ के किसान गणेश पाटिल बताते हैं कि उन्होंने कपास की बुआई पर अस्सी हजार रुपये खर्च किए थे लेकिन पूरी फसल बर्बाद हो गई। उनके अनुसार अब उनके पास परिवार चलाने के लिए भी कोई साधन नहीं बचा। इसी तरह कई किसानों ने शिकायत की कि उन्होंने सहकारी बैंकों और साहूकारों से कर्ज लेकर खेती की थी और अब बाढ़ ने उनकी पूरी मेहनत को डुबो दिया है।
महाराष्ट्र बाढ़ का आर्थिक असर
महाराष्ट्र बाढ़ का असर राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गहरा पड़ेगा। यवतमाल और विदर्भ क्षेत्र कपास और सोयाबीन उत्पादन के लिए जाना जाता है और यहां से हर साल हजारों टन उपज देश के विभिन्न हिस्सों में जाती है। इस बार बाढ़ ने उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि कपास उद्योग और तेल मिलों पर भी इसका प्रतिकूल असर होगा। स्थानीय स्तर पर रोजगार और बाजार की स्थिति बिगड़ जाएगी।
महाराष्ट्र बाढ़ और स्वास्थ्य संकट
बाढ़ का पानी कई गांवों में अब भी जमा हुआ है, जिसके चलते स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तेजी से उभर रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में डायरिया, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों के मामले बढ़ने लगे हैं। स्वास्थ्य विभाग ने मेडिकल टीमें तैनात की हैं, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि दवाइयों और डॉक्टरों की उपलब्धता पर्याप्त नहीं है। लगातार गंदे पानी के संपर्क में रहने से बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है।
महाराष्ट्र बाढ़ पर विशेषज्ञों की राय
जलवायु विशेषज्ञों का मानना है कि महाराष्ट्र बाढ़ की यह त्रासदी बदलते मौसम पैटर्न का नतीजा है। लगातार अनियमित बारिश और अचानक से तेज़ वर्षा ग्रामीण इलाकों में तबाही मचा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले वर्षों में इस तरह की आपदाएं और बढ़ सकती हैं यदि जल प्रबंधन और बाढ़ नियंत्रण की योजनाओं को प्राथमिकता नहीं दी गई।
महाराष्ट्र बाढ़ से निपटने के प्रयास
राज्य सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए त्वरित मुआवजा योजना की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने यवतमाल जिले का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया और प्रति किसान दस हजार रुपये की अंतरिम राहत देने की घोषणा की। लेकिन किसानों का कहना है कि यह मदद उनके नुकसान की भरपाई के लिए बेहद अपर्याप्त है। किसान संगठनों ने सरकार से मांग की है कि व्यापक पैमाने पर नुकसान का आकलन किया जाए और फसलों के साथ-साथ मकानों, पशुधन और ग्रामीण ढांचे की भरपाई के लिए भी योजना बनाई जाए।
महाराष्ट्र बाढ़ इस बार ग्रामीण इलाकों में अभूतपूर्व तबाही लेकर आई है। यवतमाल और आसपास के जिलों के हजारों किसानों की फसलें, घर और रोज़गार के साधन बर्बाद हो गए हैं। तीन सौ करोड़ रुपये से अधिक की क्षति और पच्चीस हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन के डूबने के बाद अब सरकार और समाज के सामने यह चुनौती है कि किसानों को स्थायी राहत कैसे दी जाए। इस आपदा से सीख लेते हुए दीर्घकालिक बाढ़ प्रबंधन योजनाओं को लागू करना समय की मांग है, ताकि भविष्य में ग्रामीण महाराष्ट्र को ऐसी त्रासदी का सामना न करना पड़े।
