
बड़बोलापन या सियासत का नया अध्याय : साझा खुशियों से उठे चुनावी दावे
ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
कानपुर। डिफेंस कॉलोनी स्थित सोलंकी कोठी बुधवार को ईद और दिवाली की साझा खुशियों से गुलजार थी। यहां माहौल सिर्फ त्योहार का नहीं बल्कि राजनीति का भी था। रामलाल और रहीम खान अपने नेता के स्वागत में गुलाब की माला और “संघर्ष को सलामी” की तख्ती लेकर पहुंचे। नारे लगे, तालियां बजीं और फिर सामने आए पूर्व विधायक इरफान सोलंकी अपनी बेगम के साथ। गले मिलने और हाथ मिलाने का सिलसिला ऐसा था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
यही मौका था जब इरफान ने अपने अंदाज में एलान किया—“अल्लाह और शहरवासियों का शुक्रगुजार हूं, लेकिन 2027 में एक और अहसान करना होगा।” उनका दावा था कि पहली बार इतिहास बनेगा जब पति-पत्नी दोनों एक साथ विधानसभा में मौजूद रहेंगे। यह बयान कानपुर की राजनीति में बड़बोलापन या सियासत का नया अध्याय कहे जाने लगा है।
बड़बोलापन या सियासत का नया अध्याय : सपा की मजबूत सीटें और उम्मीदें
कानपुर की सियासी किताब बताती है कि समाजवादी पार्टी (सपा) की पकड़ कुछ सीटों पर मजबूत है। छावनी और सीसामऊ में जातिगत समीकरण सपा के पक्ष में जाते हैं। वहीं, आर्यनगर में अमिताभ बाजपेई की साफ-सुथरी छवि और संघर्ष ने उन्हें जनता का प्रिय नेता बना दिया है। यही वजह है कि बड़े-बड़े धुरंधर भी यहां टिक नहीं पाए।
बिल्हौर, अकबरपुर रनियां, कल्याणपुर और बिठूर में सपा मुकाबले की स्थिति में है। बिल्हौर में रचना सिंह की सक्रियता ने पार्टी में नया जोश भरा है, जबकि अकबरपुर रनियां में वारसी कुनबे के खिलाफ भाजपा के भीतर असंतोष सपा के लिए अवसर बन सकता है। कल्याणपुर की राजनीति भी अनिश्चित है, जहां कभी भी समीकरण बदल सकते हैं।
बड़बोलापन या सियासत का नया अध्याय : मजबूत किले और चुनौतियां
इरफान भले ही पूरे शहर की सीटों पर सपा के परचम की बात करें, लेकिन हकीकत यह है कि सतीश महाना (महाराजपुर), महेश त्रिवेदी (किदवईनगर) और सुरेंद्र मैथानी (गोविंदनगर) जैसे दिग्गज नेताओं का तोड़ किसी भी पार्टी के पास नहीं है। ऐसे में इरफान का दावा कहीं न कहीं अतिशयोक्ति यानी बड़बोलापन ज्यादा लगता है।
हालांकि, सपा की अंदरूनी राजनीति में उथल-पुथल जारी है। कुछ चेहरे इरफान और उनकी पत्नी नसीम को आगे बढ़ाकर अपने विरोधियों को कमजोर करने की योजना बना रहे हैं। पार्टी नेतृत्व के भीतर भी छावनी सीट को लेकर खींचतान है, जहां मौजूदा विधायक मोहम्मद हसन रूमी का टिकट कटवाना आसान नहीं दिखता।
बड़बोलापन या सियासत का नया अध्याय : रूमी की खिलाफत और अंदरूनी खींचतान
छावनी सीट 2027 में किसके खाते में जाएगी, यह फैसला अखिलेश यादव करेंगे। लेकिन संगठन के भीतर कुछ झंडाबरदार पहले ही रूमी की खिलाफत में जुट गए हैं। बीते दिनों लालबंगला-डिफेंस कॉलोनी की सड़क योजना के शिलान्यास समारोह का वीडियो वायरल किया गया, जिसमें रूमी भाजपा नेताओं के साथ मंच साझा करते दिखे। इस तस्वीर को उनके विरोधियों ने उनकी निष्ठा पर सवाल उठाने के लिए उछाल दिया।
यहां साफ दिखता है कि इरफान की महत्वाकांक्षा को लेकर पार्टी में मतभेद भी हैं और रणनीति भी।
बड़बोलापन या सियासत का नया अध्याय : भावनाओं से भरा स्वागत
36 महीने की सजा पूरी करने के बाद इरफान सोलंकी की पहली आजादी का दिन उनके समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए यादगार रहा। नगर अध्यक्ष फजल महमूद से लेकर सीसामऊ विधायक अमिताभ बाजपेई तक, सब उन्हें बधाई देने पहुंचे। अमिताभ को देखकर इरफान भावुक हो उठे और गले लगकर पुराने संघर्षों को याद किया।
मौके पर मोहल्ले के विधायक हसन रूमी भी पहुंचे, जिन्हें देखकर इरफान ने गले लगाते हुए कहा कि वे उस समय को कभी नहीं भूल सकते जब पुलिस ने उनके घर पर धावा बोला था और पूरा परिवार सहम गया था। उन्होंने कहा—“मेरी बेगम को विधायक बनाकर कानपुर ने अहसान किया है, अब 2027 में एक और अहसान करना है।”
बड़बोलापन या सियासत का नया अध्याय : क्या वाकई इतिहास बनेगा?
इरफान का दावा है कि 2027 में कानपुर से न सिर्फ उनकी पत्नी, बल्कि वे खुद भी विधायक बनेंगे। यानी इतिहास में पहली बार मियां-बीवी दोनों विधानसभा में होंगे। इसके अलावा, उनका कहना है कि सपा सभी 10 विधानसभा सीटें और दोनों लोकसभा सीटें जीतकर दिखाएगी।
लेकिन सवाल यही है कि क्या यह बड़बोलापन या सियासत का नया अध्याय होगा? राजनीतिक समीकरण, भाजपा के दिग्गजों की मौजूदगी और सपा की अंदरूनी खींचतान देखकर यह दावा मुश्किल लगता है। फिर भी, इरफान सोलंकी का आत्मविश्वास यह संकेत देता है कि कानपुर की सियासत में आने वाले समय में कई नए मोड़ देखने को मिलेंगे।
बड़बोलापन या सियासत का नया अध्याय, यह अभी कहना मुश्किल है। लेकिन इतना तय है कि इरफान सोलंकी की वापसी ने कानपुर की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। त्योहार की खुशियों के बीच से उठी उनकी आवाज ने 2027 के चुनावी संग्राम की झलक दिखा दी है। अगर उनके दावे पूरे हुए तो यह इतिहास होगा, और अगर न हुए तो इसे सिर्फ बड़बोलापन कहा जाएगा।