पंजाब में प्रवासी मज़दूरों पर संकट : पंचायतों के प्रतिबंध से उद्योग–कृषि तक हड़कंप

बड़े बैग लेकर पंजाब से अपने घर लौटते प्रवासी मज़दूर, पंचायतों के प्रतिबंध और असुरक्षा के बीच घर वापसी

 – अनिल अनूप

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प्रवासी मज़दूरों पर प्रतिबंध की शुरुआत और बढ़ता असर

पंजाब में 18–20 लाख प्रवासी मज़दूर कृषि, उद्योग और निर्माण की रीढ़ हैं। लेकिन होशियारपुर में पाँच वर्षीय बच्चे की हत्या के बाद कई पंचायतों ने प्रवासी मज़दूरों को काम और मकान न देने के प्रस्ताव पास कर दिए।

नतीजतन, मोहाली, बठिंडा और जालंधर तक यह अभियान फैलने लगा। पंचायतें बिना वैध दस्तावेज़ वाले मज़दूरों को गांवों में प्रवेश देने से मना कर रही हैं।

अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका

कृषि क्षेत्र पर दबाव

धान और गेहूँ की कटाई-बुआई में प्रवासी मज़दूरों की कमी से लागत बढ़ने और उत्पादन घटने की संभावना है।

उद्योग पर असर

लुधियाना के वस्त्र, खेल-सामग्री, मशीनरी और साइकिल पार्ट्स उद्योग प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर हैं। मज़दूरों के पलायन से उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

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निर्माण और रियल एस्टेट

भवन निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट धीमे पड़ने लगे हैं।

इस कारण, स्थानीय बाजार और किराये के मकान खाली होने का खतरा भी बढ़ गया है।

सोशल मीडिया पर बढ़ती नफ़रत और अलगाववादी साजिश

सोशल मीडिया पर “भैया” जैसे अपमानजनक शब्दों वाले मीम और वीडियो शेयर किए जा रहे हैं। कनाडा, अमेरिका और यूरोप में बैठे अलगाववादी समूह पंजाब में अपने समर्थकों के जरिए प्रवासी मज़दूरों के खिलाफ माहौल बना रहे हैं।

इसी बीच, व्हाट्सऐप और टेलीग्राम समूहों में भय फैलाने वाले संदेश तेज़ी से बढ़े हैं।

इसके विपरीत, पंजाब पहले भी अलगाववाद की आग झेल चुका है और यह ट्रेंड भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है।

भेदभाव और असुरक्षा का गहराता संकट

लुधियाना, जालंधर, अमृतसर और पठानकोट की मज़दूर बस्तियों में मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। वेतन के दिन लूटपाट, पुलिस की उदासीनता और “भैया” जैसे शब्द प्रवासी मज़दूरों को असुरक्षित महसूस कराते हैं।

इसलिए, चुनावों में वोट बैंक बनने के बावजूद इनकी आवाज़ नीतिगत स्तर पर नहीं सुनी जाती।

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राजनीतिक बयानबाज़ी और कानूनी चुनौती

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चरणजीत सिंह चन्नी द्वारा चुनाव प्रचार में “भैया” शब्द का इस्तेमाल करना इस मुद्दे के राजनीतिकरण का संकेत है।

साथ ही, मुंडो संगतियां गाँव से प्रवासी मज़दूरों को निकालने के खिलाफ पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में दायर याचिका ने इस विवाद को संवैधानिक सवाल बना दिया है।

यह मामला संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 के तहत समानता और जीवन के अधिकार को सीधा चुनौती देता है।

सामाजिक ताने-बाने में दरार का खतरा

पंजाब की ताक़त उसकी विविधता है। प्रवासी मज़दूरों के पलायन से सांप्रदायिक और क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकता है। “पंजाबी बनाम बाहरी” जैसी मानसिकता आने वाले चुनावों तक स्थायी राजनीतिक मुद्दा बन सकती है।

यदि ऐसा हुआ तो, इसका असर न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि पंजाब की संस्कृति और मनोविज्ञान पर भी पड़ेगा।

समाधान के रास्ते : सरकार और समाज दोनों की भूमिका

1. व्यक्तिगत अपराध पर सामूहिक दंड न हो।

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2. सुरक्षा और न्याय : प्रवासी मज़दूरों को कानूनी और प्रशासनिक सहायता मिले।

3. सामाजिक संवादक्ष: पंचायत, उद्योगपति, धार्मिक संस्थान और श्रमिक संगठन एक साथ बैठकर हल निकालें।

4. सरकारी योजनाएँ: प्रवासी मज़दूरों के लिए आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधाएँ सुनिश्चित हों।

5. सोशल मीडिया निगरानी: अफ़वाह फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई हो।

सम्मान और सुरक्षा की उम्मीद

आज पंजाब की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अपराधियों को सज़ा देते हुए मेहनती प्रवासी मज़दूरों के सम्मान और रोज़गार की गारंटी कैसे दी जाए।

यही वजह है कि, यह केवल राजनीति नहीं बल्कि पंजाब के भविष्य का सवाल बन चुका है।

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