लखनऊ जनपद के बन्थरा थाना क्षेत्र में अवैध लकड़ी कटान और उसकी खुलेआम ढुलाई का मामला लगातार गहराता जा रहा है। स्थानीय ग्रामीणों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, यह अवैध गतिविधि किसी छिपे हुए अपराध की तरह नहीं, बल्कि एक संगठित और संरक्षित नेटवर्क के रूप में संचालित हो रही है। आरोप है कि वन विभाग के कुछ अधिकारियों की कथित मिलीभगत और संरक्षण के चलते लकड़ी माफिया बेखौफ होकर प्रतिबंधित पेड़ों की कटाई कर रहे हैं।
वन विभाग की चुप्पी पर उठते सवाल
सूत्रों का कहना है कि बन्थरा क्षेत्र में आम, नीम, शीशम और सागौन जैसे संरक्षित पेड़ों की अवैध कटाई लंबे समय से जारी है। हैरानी की बात यह है कि इस संबंध में वन विभाग को कई बार लिखित व मौखिक सूचनाएं दी जा चुकी हैं। इसके बावजूद न तो कोई ठोस कार्रवाई हुई और न ही अवैध गतिविधियों पर प्रभावी रोक लग पाई। इससे यह संदेह और गहरा हो जाता है कि कहीं न कहीं विभागीय स्तर पर जानबूझकर आंखें मूंदी जा रही हैं।
लकड़ी ठेकेदारों पर गंभीर आरोप
स्थानीय लोगों के अनुसार, लकड़ी ठेकेदार मान सिंह और अर्जुन कुमार अपने सहयोगियों के साथ क्षेत्र में सक्रिय बताए जा रहे हैं। आरोप है कि रात के अंधेरे में अवैध रूप से पेड़ों की कटाई कर लकड़ी को डाला और ट्रकों में लोड किया जाता है, फिर उसे सीधे क्षेत्र की आरा मशीनों तक पहुंचाया जाता है। यह पूरा काम इस तरह से किया जाता है कि किसी को शक न हो, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि अब यह सब किसी से छिपा नहीं रहा।
आरा मशीनों तक पहुंचती अवैध लकड़ी
जानकारी के मुताबिक, वन विभाग को यह भी भली-भांति पता है कि अवैध लकड़ी किन-किन आरा मशीनों पर पहुंचाई जा रही है। इसके बावजूद कार्रवाई न होना, कथित तौर पर भ्रष्टाचार और अवैध लेन-देन की ओर इशारा करता है। आरोप यह भी हैं कि आरा मशीन संचालकों से नियमित रूप से “सुविधा शुल्क” लिया जाता है, जिससे पूरा नेटवर्क निर्बाध रूप से चलता रहे।
18 दिसंबर 2025 की घटना
दिनांक 18 दिसंबर 2025 को एक डाला वाहन (संख्या: UP 41 AT 0369) को बन्थरा क्षेत्र में लकड़ी से लदा हुआ देखा गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, यह वाहन एक आरा मशीन की ओर जाता हुआ नजर आया, जो कथित तौर पर एक प्रभावशाली स्थानीय नेता से जुड़ी बताई जा रही है। यदि यह जानकारी सही है, तो मामला केवल अवैध कटान तक सीमित नहीं रह जाता, बल्कि सत्ता और अपराध के गठजोड़ की ओर भी संकेत करता है।
ग्रामीणों में भय और आक्रोश
अवैध कटान का सबसे बड़ा असर ग्रामीणों और पर्यावरण पर पड़ रहा है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से न केवल हरित आवरण नष्ट हो रहा है, बल्कि भूजल स्तर, स्थानीय जलवायु और किसानों की आजीविका पर भी सीधा प्रभाव पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि जब वे विरोध करते हैं, तो उन्हें डराया-धमकाया जाता है, जिससे आम लोग खुलकर शिकायत करने से भी कतराने लगे हैं।
प्रशासनिक जिम्मेदारी और जवाबदेही
सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि वन विभाग, पुलिस प्रशासन और स्थानीय शासन को इन गतिविधियों की जानकारी है, तो अब तक निर्णायक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या यह केवल लापरवाही है या फिर एक सोची-समझी चुप्पी? विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो यह नेटवर्क और भी मजबूत होता जाएगा।
कार्रवाई की मांग
स्थानीय नागरिकों और पर्यावरण प्रेमियों ने शासन और उच्च अधिकारियों से मांग की है कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए। अवैध कटान, परिवहन और आरा मशीनों की भूमिका की गहन पड़ताल होनी चाहिए। साथ ही दोषी अधिकारियों और लकड़ी माफियाओं के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके।
❓ अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
बन्थरा क्षेत्र में अवैध लकड़ी कटान क्यों बढ़ रहा है?
स्थानीय लोगों के अनुसार, प्रशासनिक ढिलाई और कथित संरक्षण के कारण अवैध कटान पर प्रभावी रोक नहीं लग पा रही है।
कौन-कौन से पेड़ अवैध रूप से काटे जा रहे हैं?
आम, नीम, शीशम और सागौन जैसे मूल्यवान और संरक्षित पेड़ों की कटाई के आरोप सामने आए हैं।
क्या वन विभाग को इसकी जानकारी है?
सूत्रों के मुताबिक, विभाग को कई बार सूचित किया गया है, लेकिन अब तक ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
ग्रामीणों पर इसका क्या असर पड़ रहा है?
पर्यावरणीय नुकसान के साथ-साथ भय का माहौल बन रहा है और ग्रामीणों की आजीविका भी प्रभावित हो रही है।







