रात के अंधेरे में खाद का खेल : नेपाल बॉर्डर से जुड़े जिलों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी, पूरे यूपी में जांच का दायरा बढ़ा

उत्तर प्रदेश–नेपाल सीमा पर रात में खाद की अवैध बिक्री, यूरिया डीएपी एनपीके की कालाबाजारी, POS डिवाइस और सीमा पार तस्करी का प्रतीकात्मक दृश्य


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कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में खाद की कालाबाजारी को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इस बार मामला केवल शिकायतों या किसानों के आरोपों तक सीमित नहीं है, बल्कि पॉइंट ऑफ सेल (POS) डिवाइस से निकले आधिकारिक आंकड़ों ने खुद विभाग को चौंका दिया है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट हुआ है कि प्रदेश के कई जिलों—खासतौर पर नेपाल सीमा से सटे जिलों—में रात आठ बजे के बाद बड़े पैमाने पर खाद की बिक्री दिखाई गई है।

यही नहीं, प्रारंभिक जांच में यह भी सामने आया कि कुछ दुकानदारों ने अपनी कुल बिक्री का 40 से 50 प्रतिशत हिस्सा रात के समय दर्ज किया है। जबकि व्यवहारिक रूप से यह न तो संभव लगता है और न ही नियमों के अनुरूप। इसी आधार पर कृषि विभाग ने पूरे प्रदेश में सघन जांच शुरू कर दी है और अब तक 320 विक्रेताओं के लाइसेंस निरस्त किए जा चुके हैं।

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नेपाल बॉर्डर से जुड़े जिलों में सबसे अधिक संदिग्ध बिक्री

कृषि विभाग के अनुसार जिन जिलों में रात आठ बजे के बाद खाद बिक्री के मामले सबसे ज्यादा सामने आए हैं, वे सभी नेपाल सीमा से किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं।

आंकड़ों के मुताबिक—
लखीमपुर खीरी में 52 विक्रेताओं, महाराजगंज में 25, पीलीभीत में 57, श्रावस्ती में 52, सिद्धार्थनगर में 57, बहराइच में 29, बलरामपुर में 71 विक्रेताओं द्वारा रात आठ बजे के बाद खाद बिक्री दर्ज की गई।

जब इन आंकड़ों का विश्लेषण किया गया तो यह सामने आया कि कई दुकानों पर दिन की तुलना में रात की बिक्री असामान्य रूप से अधिक थी। कृषि विभाग के अधिकारियों का मानना है कि यह पैटर्न सामान्य किसान-व्यवहार से मेल नहीं खाता।

POS डिवाइस से खुली पोल

प्रदेश में खाद वितरण को पारदर्शी बनाने के लिए सरकार ने POS डिवाइस को अनिवार्य किया है। किसान का आधार सत्यापन, समय और मात्रा—सब कुछ डिजिटल रूप से दर्ज होता है।

लेकिन इसी तकनीक ने अब कालाबाजारी की आशंका को उजागर कर दिया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि—
रात में दुकानें सामान्यतः बंद रहती हैं, किसानों की आवाजाही भी सीमित होती है, इतनी बड़ी मात्रा में रात की बिक्री केवल कागजों में संभव है।

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आशंका है कि खाद की यह खेप बॉर्डर पार नेपाल भेजी गई या फिर ऊंचे दामों पर गुपचुप तरीके से बेची गई।

320 लाइसेंस निरस्त, लेकिन सवाल बाकी

कृषि विभाग ने कड़ा रुख अपनाते हुए इन सात जिलों के 320 खाद विक्रेताओं के लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिए हैं।

हालांकि, यह कार्रवाई अपने आप में कई सवाल छोड़ जाती है—
क्या केवल लाइसेंस निरस्तीकरण से कालाबाजारी रुकेगी?
वर्षों से चल रही इस व्यवस्था में क्या अकेले दुकानदार दोषी हैं?
परिवहन, भंडारण और निगरानी तंत्र की भूमिका क्या रही?

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यह समस्या जमीनी स्तर पर गहरी जड़ें जमा चुकी है और केवल दंडात्मक कार्रवाई से इसका समाधान संभव नहीं।

प्रदेश में खाद की उपलब्धता: कागजों में भरपूर

कृषि विभाग के ताजा आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में इस समय— 9.57 लाख टन यूरिया, 3.77 लाख टन डीएपी, 3.67 लाख टन एनपीके उर्वरक उपलब्ध है।

इसके अलावा प्रतिदिन औसतन 54,249 टन यूरिया का वितरण किया जा रहा है। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो प्रदेश में किसी प्रकार की कमी नहीं होनी चाहिए।

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लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग तस्वीर पेश करती है।

पूर्वांचल और तराई में किसानों की परेशानी

नेपाल सीमा से सटे जिलों के अलावा पूर्वांचल और तराई क्षेत्र के कई जिलों से भी खाद की किल्लत और कालाबाजारी की शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं।

किसानों का कहना है कि—
दुकानों पर खाद “स्टॉक खत्म” बताई जाती है।
मजबूरी में उन्हें निजी स्रोतों से महंगे दामों पर खाद लेनी पड़ती है।
कई जगह खाद के साथ “अन्य उत्पाद” लेने की शर्त लगाई जाती है।

यह स्थिति खासतौर पर छोटे और सीमांत किसानों के लिए बेहद चिंताजनक है।

❓ सवाल–जवाब

रात में खाद बिक्री संदिग्ध क्यों मानी जा रही है?

क्योंकि रात में दुकानें बंद रहती हैं और किसानों की आवाजाही बहुत कम होती है, ऐसे में बड़ी मात्रा में बिक्री व्यवहारिक नहीं है।

किन जिलों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी मिली?

नेपाल सीमा से जुड़े लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, बहराइच और महाराजगंज में।

सरकार आगे क्या कदम उठाने जा रही है?

POS डेटा की रीयल-टाइम निगरानी, ऑटो अलर्ट सिस्टम और विशेष उड़नदस्तों की तैनाती।

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