चित्रकूट। परिषदीय विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा योजनाओं, कायाकल्प कार्यक्रम और करोड़ों रुपये के बजट की बात की जाती है, लेकिन जमीनी हकीकत आज भी इन दावों से कोसों दूर नजर आती है। कहीं जर्जर इमारतें बच्चों की जान के लिए खतरा बनी हुई हैं, तो कहीं टूटे-फूटे और गंदगी से भरे शौचालय नौनिहालों को अस्वस्थ परिस्थितियों में शौच के लिए मजबूर कर रहे हैं।
ऐसा ही एक गंभीर मामला सामने आया है रामनगर विकासखंड की ग्राम पंचायत अतरसुई के मजरे हरिजन पुरवा स्थित प्राथमिक विद्यालय का, जहां शिक्षा का मंदिर अव्यवस्था, उपेक्षा और प्रशासनिक उदासीनता की मिसाल बन चुका है।
जर्जर विद्यालय भवन बना खतरे की घंटी
प्राथमिक विद्यालय हरिजन पुरवा की इमारत लंबे समय से जर्जर अवस्था में है। दीवारों में दरारें, छत से झड़ता प्लास्टर और जगह-जगह सीलन इस बात का संकेत दे रही है कि यह भवन कभी भी बड़े हादसे को न्योता दे सकता है। छोटे-छोटे बच्चे इसी भवन के भीतर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं, जहां हर दिन उनकी जान जोखिम में रहती है।
शौचालयों की हालत बेहद दयनीय
विद्यालय में बने शौचालय टूटे-फूटे हैं और गंदगी से बजबजा रहे हैं। साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है। नतीजतन नौनिहाल बच्चों को अत्यंत गंदी जगहों में जाकर शौच क्रिया करनी पड़ती है, जो उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ मानवीय गरिमा पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
स्वच्छ विद्यालय अभियान और बाल स्वास्थ्य से जुड़े सरकारी दावे इन हालातों के सामने पूरी तरह खोखले नजर आते हैं।
पेयजल संकट से जूझते बच्चे
विद्यालय परिसर में लगा हैंडपंप लंबे समय से खराब पड़ा है। पेयजल की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। मध्यान्ह भोजन के बाद बच्चों को बर्तन धोने और पानी पीने के लिए विद्यालय परिसर से बाहर जाना पड़ता है, जिससे उनकी सुरक्षा पर भी सवाल उठते हैं।
प्रधानाध्यापक का पक्ष, ग्रामीणों के आरोप
विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्रीकांत का कहना है कि उन्होंने कई बार विद्यालय भवन की जर्जर स्थिति, टूटे शौचालय और खराब हैंडपंप की शिकायत खंड शिक्षा अधिकारी रामनगर, ग्राम प्रधान और सचिव से की है। लिखित शिकायतें भी दी गईं, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
वहीं ग्रामीणों का आरोप है कि प्रधानाध्यापक समय से विद्यालय नहीं आते और समय से पहले ही विद्यालय बंद कर चले जाते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, जब इस विषय में उनसे सवाल किया गया तो उन्होंने गैर-जिम्मेदाराना जवाब दिया, जिससे गांव में भारी आक्रोश व्याप्त है।
53 बच्चे, लेकिन सुविधाएं शून्य
विद्यालय में कुल 53 बच्चे नामांकित हैं। पहले यह विद्यालय मर्ज हो गया था, लेकिन बाद में पुनः संचालन शुरू हुआ। शिक्षा का कार्य किसी तरह कराया जा रहा है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं के अभाव में बच्चों का सर्वांगीण विकास बाधित हो रहा है।
स्थलीय निरीक्षण में उजागर हुई सच्चाई
“जीत आपकी—चलो गांव की ओर” जागरूकता अभियान के संस्थापक अध्यक्ष संजय सिंह राणा ने 16 दिसंबर 2025 को प्राथमिक विद्यालय हरिजन पुरवा का स्थलीय निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान विद्यालय भवन की जर्जर स्थिति, टूटे-फूटे शौचालय और खराब हैंडपंप की पुष्टि हुई।
प्रधानाध्यापक ने एक बार फिर बताया कि कई बार शिकायत करने के बावजूद जिम्मेदार अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे हैं, जिसके कारण विद्यालय की स्थिति दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है।
कायाकल्प का बजट कहां जा रहा?
सरकार द्वारा परिषदीय विद्यालयों के रख-रखाव, रंगाई-पुताई और मरम्मत के लिए हर वर्ष लाखों रुपये का बजट जारी किया जाता है। बावजूद इसके हरिजन पुरवा जैसे विद्यालयों की बदहाली यह सवाल खड़ा करती है कि यह धन आखिर कहां खर्च हो रहा है?
अब निगाहें जिला प्रशासन पर
ग्रामीणों और अभिभावकों की मांग है कि जिला प्रशासन तत्काल संज्ञान लेकर विद्यालय भवन की मरम्मत, शौचालयों के पुनर्निर्माण और पेयजल की समुचित व्यवस्था कराए। अन्यथा किसी भी अप्रिय घटना की जिम्मेदारी तय करना कठिन होगा।
पाठकों के सवाल–जवाब
विद्यालय की इमारत कितने समय से जर्जर है?
ग्रामीणों के अनुसार कई वर्षों से किसी प्रकार की मरम्मत या रंगाई-पुताई नहीं कराई गई है।
शौचालयों की सफाई की जिम्मेदारी किसकी है?
विद्यालय प्रबंधन, ग्राम पंचायत और शिक्षा विभाग की संयुक्त जिम्मेदारी बनती है।
पेयजल समस्या का समाधान कब होगा?
यदि प्रशासन संज्ञान ले तो हैंडपंप की मरम्मत तुरंत कराई जा सकती है।
अभिभावक शिकायत कहां दर्ज करा सकते हैं?
खंड शिक्षा अधिकारी, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी और जिला प्रशासन कार्यालय में।






