कोषागार महाघोटाला : 7 साल तक “कागज़ों में ज़िंदा”, खातों में करोड़ों—और सिस्टम की आंखों पर पट्टी

✍️ संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
IMG_COM_202512190117579550
previous arrow
next arrow

चित्रकूट का कोषागार—जो जिले के सरकारी भुगतान, पेंशन वितरण और वित्तीय अनुशासन का “अंतिम दरवाज़ा” माना जाता है—वहीं से ऐसा खेल चला कि सरकारी खजाने में लगातार सेंध लगती रही और साल-दर-साल ऑडिट की मोहरें, फाइलों की धूल और कंप्यूटर स्क्रीन की चमक—सब मिलकर भी उसे रोक नहीं पाए।

इस महाघोटाले की भयावहता सिर्फ रकम में नहीं, बल्कि उस अवधि में छिपी है जिसमें यह सब होता रहा। अगस्त 2018 से अक्टूबर 2025 तक, यानी सात वर्षों से अधिक समय तक, 93 पेंशन खातों के नाम पर करीब ₹43.13 करोड़ का फर्जी भुगतान होता रहा—और व्यवस्था इसे “सामान्य प्रक्रिया” मानकर आगे बढ़ाती रही।

यह घोटाला किसी एक दिन या एक व्यक्ति की करतूत नहीं था। यह एक धीमी, योजनाबद्ध और नेटवर्क-आधारित लूट थी—जिसमें कथित तौर पर कोषागार के भीतर के जिम्मेदार हाथ, बाहर के बिचौलिए/दलाल और कुछ पेंशन खाताधारक व उनके परिजन—सब मिलकर ऐसी चेन बनाते गए कि पैसा निकला भी, बंटा भी और वर्षों तक किसी को भनक तक नहीं लगी।

पेंशन नहीं—‘एरियर’ के नाम पर चलता रहा खेल

जांच एजेंसियों और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस महाघोटाले की मूल स्क्रिप्ट थी—पेंशन एरियर। एरियर ऐसा रास्ता था, जहां बड़ी रकम को “कानूनी” और “तकनीकी” बताकर पास कराया जा सकता था। इसी कमजोरी का फायदा उठाकर वर्षों तक मोटे भुगतान होते रहे।

इसे भी पढें  मानिकपुर में कुओं के निर्माण में धांधली , ठेकेदार रामकुमार यादव का बड़ा फर्जीवाड़ा उजागर

यही कारण है कि घोटाला उजागर होने के बाद शासन को पेंशन और एरियर को अलग-अलग हेड और अलग लिंक से जनरेट कराने की तैयारी करनी पड़ी, ताकि एक ही सिस्टम-पथ से दोबारा हेराफेरी न हो सके।

एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक के अनुसार यह गड़बड़ी 3 अगस्त 2018 से 6 अक्टूबर 2025 के बीच पूरी तरह “अनडिटेक्टेड” रही और 93 खातों में एरियर के नाम पर लगातार फर्जी ट्रांसफर होते रहे।

‘मुर्दा’ भी जिंदा रहे: लाइफ सर्टिफिकेट और रिकॉर्ड की साजिश

जांच में सामने आया कि इन 93 खातों में कम से कम 6 ऐसे पेंशनर थे जिनकी मृत्यु हो चुकी थी, लेकिन फिर भी उनके नाम पर खाते दोबारा सक्रिय कर भुगतान कराया गया।

एसआईटी के मिलान में यह भी पाया गया कि कई मामलों में मृत्यु प्रमाणपत्र जानबूझकर फाइलों में संलग्न नहीं किए गए। यह कोई साधारण चूक नहीं, बल्कि रिकॉर्ड-मैनेजमेंट के जरिए बनाया गया वह कवच था, जिसने भुगतान को वैध दिखाया और लूट को आसान बना दिया।

कैसे फूटा घोटाला: अचानक खातों में करोड़ों

अक्टूबर 2025 के आसपास इस घोटाले की परतें तब खुलनी शुरू हुईं जब कुछ खातों में बिना किसी स्पष्ट कारण के लाखों रुपये पहुंचने लगे। 10 सितंबर को एक शिकायत में सामने आया कि एक खाते में ₹45 लाख और दूसरे खाते में ₹31 लाख ट्रेजरी से ट्रांसफर हुए हैं।

इसे भी पढें  अवैध निर्माण का खेल बेनक़ाब: बार एसोसिएशन अध्यक्ष पर कार्रवाई की मांग तेज़

इन्हीं संकेतों के आधार पर अकाउंटेंट जनरल कार्यालय की स्पेशल ऑडिट टीम ने 6 से 10 अक्टूबर 2025 के बीच औचक निरीक्षण किया, जहां से इस “खाते-खाते” खेल की असल तस्वीर सामने आई।

एफआईआर और गिरफ्तारी की शुरुआत

जांच सामने आने के बाद 17 अक्टूबर 2025 को वरिष्ठ कोषाधिकारी रमेश सिंह ने कर्वी कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई। रिपोर्ट में चार कोषागार अधिकारियों/कर्मचारियों और 93 खाताधारकों को नामजद किया गया।

जिन नामों का उल्लेख हुआ, उनमें संदीप कुमार श्रीवास्तव, अशोक कुमार, विकास सिंह सचान और सेवानिवृत्त एटीओ अवधेश प्रताप सिंह शामिल हैं।

19 अक्टूबर 2025 को मामला और संवेदनशील तब हो गया जब प्रमुख आरोपी बताए गए संदीप कुमार श्रीवास्तव की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु की खबर सामने आई।

आंकड़े जो सिस्टम का पोस्टमार्टम करते हैं

करीब ₹43.13 करोड़ का फर्जी भुगतान, 93 पेंशन खाते, 7 वर्षों की अवधि, 250 से अधिक संदिग्ध बैंक खाते, प्रयागराज से बांदा तक फैला मनी-ट्रेल और अब तक 32 गिरफ्तारियां—यह सब मिलकर बताता है कि यह कोई साधारण वित्तीय गड़बड़ी नहीं, बल्कि एक संगठित सिंडीकेट था।

अब तक लगभग ₹3.65 करोड़ की रिकवरी हो पाई है, जबकि ₹39 करोड़ से अधिक की रकम का मनी-ट्रेल साइबर सेल की मदद से तलाशा जा रहा है।

विभागीय कार्रवाई: सख्ती के दावे, चुनौतियां बरकरार

घोटाला सामने आने के बाद 95 खातों को तत्काल सीज किया गया, लेकिन जांच बढ़ने पर यह संख्या 250 से अधिक तक पहुंच गई। एसआईटी आज भी सेंट्रल सर्वर और मूल फाइलों के मिलान में जुटी है।

रिकवरी के लिए कई आरोपियों ने कोर्ट का सहारा लिया। 26 पेंशनरों ने पूरी रकम जमा की, लेकिन शेष मामलों में जांच और वसूली की गति धीमी बनी हुई है।

सबसे बड़ा सवाल: 7 साल तक ऑडिट क्या करता रहा?

वार्षिक ऑडिट के बावजूद सात वर्षों तक यह गबन पकड़ में नहीं आया—यही इस घोटाले को सिस्टम फेल्योर बनाता है। जीवन प्रमाणपत्र, मृत्यु प्रमाणपत्र, बैंक रीकंसिलिएशन और सॉफ्टवेयर ऑथराइजेशन—हर स्तर पर चेक-पोस्ट फेल हुआ।

निष्कर्ष: यह सिर्फ चोरी नहीं, सरकारी भरोसे की लूट है

चित्रकूट का कोषागार घोटाला उस तंत्र का आईना है, जहां कागज़, कंप्यूटर और इंसान—तीनों मिलकर जनता के भरोसे को चुपचाप लूट सकते हैं। कार्रवाई चल रही है, लेकिन असली परीक्षा अभी बाकी है—क्या जांच उस “ब्रेन” तक पहुंचेगी जिसने इस सात साल की लूट को नियम बना दिया?

🔎 पाठकों के सवाल – जवाब

चित्रकूट कोषागार घोटाले में कुल कितनी राशि का गबन हुआ?

लगभग ₹43.13 करोड़ का फर्जी भुगतान सामने आया है।

अब तक कितने लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है?

अब तक कुल 32 लोगों को जेल भेजा जा चुका है।

क्या पूरा पैसा वापस आ पाएगा?

अब तक ₹3.65 करोड़ की रिकवरी हुई है, शेष राशि की मनी-ट्रेल साइबर सेल खंगाल रही है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Language »
Scroll to Top