बुंदेलखंड का पाठा इलाका—नाम सुनते ही आंखों के सामने ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियां, पथरीली ज़मीन, विरल हरियाली और दूर-दूर तक फैले छोटे-छोटे गांव उभर आते हैं। यह वही पाठा है, जो भौगोलिक रूप से जितना दुर्गम है, उतना ही प्रशासनिक और स्वास्थ्य व्यवस्था के लिहाज़ से उपेक्षित भी। बुंदेलखंड के दक्षिणी छोर पर फैला यह पठारी क्षेत्र मुख्यतः चित्रकूट, बांदा और आसपास के सीमावर्ती अंचलों में विस्तृत है, जहां आदिवासी और वंचित समुदायों की आबादी बहुल है। यहां स्वास्थ्य सुविधा की चर्चा करना, दरअसल उस संघर्ष की कथा कहना है, जिसमें जीवन हर रोज़ जोखिम उठाकर आगे बढ़ता है।
दुर्गमता ही सबसे बड़ी बीमारी
पाठा के गांवों तक पहुंचना ही किसी परीक्षा से कम नहीं। बरसात में नाले उफनते हैं, कच्चे रास्ते टूट जाते हैं और एंबुलेंस तो दूर, मोटरसाइकिल भी कई बार जवाब दे देती है। ऐसे में बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक ले जाना अक्सर परिवार और गांव की सामूहिक कोशिश बन जाता है। कई मामलों में चारपाई पर मरीज को लादकर किलोमीटरों पैदल चलना पड़ता है। यही दुर्गमता स्वास्थ्य सेवा की पहली और सबसे बड़ी बाधा है—जिसका समाधान काग़ज़ों में तो दिखता है, लेकिन ज़मीन पर नहीं।
काग़ज़ों की उपलब्धता बनाम ज़मीनी हकीकत
सरकारी दस्तावेज़ बताते हैं कि पाठा क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), उपकेंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) की एक निर्धारित संख्या मौजूद है। योजनाओं के अनुसार, हर कुछ किलोमीटर पर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। पर वास्तविकता यह है कि कई केंद्र या तो भवन मात्र हैं, या स्टाफ़ के अभाव में निष्क्रिय। कहीं डॉक्टर नहीं, तो कहीं दवाइयां नहीं। कई उपकेंद्रों पर ताले लटके रहते हैं, और जिन पर ताले नहीं, वहां एक-दो कर्मचारी ही किसी तरह व्यवस्था संभालते नज़र आते हैं।
आदिवासी जीवन और स्वास्थ्य का रिश्ता
पाठा क्षेत्र में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय निवास करता है। इन समुदायों का जीवन जंगल, खेती और पारंपरिक ज्ञान से जुड़ा है। बीमार होने पर आज भी कई परिवार पहले झाड़-फूंक या घरेलू नुस्खों का सहारा लेते हैं—क्योंकि सरकारी स्वास्थ्य तंत्र उन तक समय पर पहुंचता ही नहीं। यह केवल अंधविश्वास का मामला नहीं, बल्कि व्यवस्था की अनुपलब्धता का परिणाम है।
मातृत्व: सबसे संवेदनशील मोर्चा
पाठा में प्रसूता महिलाओं की स्थिति इस संकट का सबसे मार्मिक पहलू है। सरकारी योजनाओं के अनुसार गर्भवती महिलाओं को नियमित जांच, पोषण और संस्थागत प्रसव की सुविधा मिलनी चाहिए। काग़ज़ों में यह सब मौजूद है, लेकिन ज़मीनी तस्वीर अलग है। रात के अंधेरे में, बरसात या सर्दी में, गर्भवती महिला को अस्पताल तक ले जाना किसी जोखिम भरे अभियान जैसा होता है।
नवजात शिशु: जीवन की पहली परीक्षा
नवजात शिशुओं के लिए पाठा का जीवन जन्म लेते ही कठिन हो जाता है। कुपोषण, एनीमिया और संक्रमण यहां आम समस्याएं हैं। टीकाकरण और पोषण योजनाएं हैं, लेकिन दुर्गमता और निगरानी की कमी के कारण उनका असर सीमित है। रेफरल सिस्टम की कमजोरी कई बार मासूम जानों पर भारी पड़ती है।
डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ़ का संकट
पाठा क्षेत्र में डॉक्टरों की तैनाती हमेशा से चुनौती रही है। सीमित सुविधाएं और संसाधनों की कमी के कारण डॉक्टर यहां लंबे समय तक टिकना नहीं चाहते। परिणामस्वरूप, कई केंद्र संविदा या अस्थायी स्टाफ़ के भरोसे चलते हैं और गुणवत्ता प्रभावित होती है।

वांछित स्वास्थ्य सुविधा: सिर्फ़ भवन नहीं, भरोसा चाहिए
पाठा को जिन स्वास्थ्य सुविधाओं की ज़रूरत है, वे सिर्फ़ नए भवन या योजनाएं नहीं हैं। स्थायी मानव संसाधन, बेहतर सड़क-संचार, मोबाइल मेडिकल यूनिट्स और भरोसेमंद रेफरल सिस्टम—यही वे आधार हैं, जिन पर पाठा की सेहत टिकी होनी चाहिए।
निष्कर्ष: नीति नहीं, प्राथमिकता चाहिए
पाठा क्षेत्र की स्वास्थ्य व्यवस्था यह सवाल पूछती है कि क्या विकास का मतलब सिर्फ़ शहरों तक सीमित रहेगा? जब तक स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं, बल्कि औपचारिकता समझा जाएगा, तब तक पाठा के गांवों में बीमार व्यवस्था ही राज करेगी। ज़रूरत है काग़ज़ से निकलकर ज़िंदगी तक पहुंचने वाले फैसलों की।
पाठा स्वास्थ्य व्यवस्था: सवाल-जवाब
पाठा क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधा सबसे बड़ी समस्या क्यों है?
दुर्गम भौगोलिक स्थिति, खराब सड़कें, स्टाफ़ की कमी और योजनाओं का कमजोर क्रियान्वयन इसकी मुख्य वजहें हैं।
प्रसूता महिलाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा क्या है?
समय पर एंबुलेंस और संस्थागत प्रसव की सुविधा न मिल पाना, जिससे जटिलताएं बढ़ जाती हैं।
समाधान की दिशा में क्या किया जा सकता है?
स्थायी डॉक्टरों की तैनाती, मोबाइल मेडिकल यूनिट्स, बेहतर सड़क-संचार और समुदाय आधारित स्वास्थ्य मॉडल अपनाए जा सकते हैं।






